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वक्फ संशोधन 2025: मुस्लिम समाज की अंदरूनी आवाज़ पर केंद्र सरकार का बड़ा कदम kadam Aajtak24 News |
नई दिल्ली - देश की कानूनी और सामाजिक व्यवस्था में बदलाव लाने वाले वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 ने एक नई बहस को जन्म दिया है—क्या यह कानून वाकई मुस्लिम समुदाय के भीतर लंबे समय से दबे पीड़ितों को न्याय दिलाएगा, या फिर यह बहुसंख्यकवाद की छाया में मुस्लिम राजनीति को पुनर्गठित करने का प्रयास है? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस अधिनियम को "मुस्लिम समुदाय की पीड़ा और शिकायतों के समाधान की दिशा में बड़ा कदम" बताया है। उनका दावा है कि उन्हें 2019 के बाद से मुस्लिम समाज, विशेष रूप से महिलाओं और विधवाओं से वक्फ संपत्तियों को लेकर 1700 से अधिक शिकायतें मिलीं, जो इस कानून के निर्माण की प्रेरणा बनीं।
भारत में वक्फ संपत्तियां ऐतिहासिक रूप से धार्मिक, सामाजिक और शैक्षणिक उद्देश्यों के लिए मुस्लिम समुदाय द्वारा दान की गई संपत्तियां होती हैं। लेकिन समय के साथ इनके प्रबंधन में घोर अनियमितताएं, भ्रष्टाचार और राजनीतिक हस्तक्षेप बढ़ता गया। कई स्थानों पर छोटे मुस्लिम समुदायों की संपत्तियों पर जबरन दावा, बिना दस्तावेजों के कब्जा, और धार्मिक प्रतिष्ठानों की मनमानी से जुड़े विवाद सामने आते रहे।
वक्फ अधिनियम, 1995 को संशोधित कर लाया गया यह नया कानून ‘वक्फ बाय यूजर’ जैसे प्रावधानों को समाप्त करता है, वक्फ बोर्ड की जवाबदेही बढ़ाता है, और गैर-मुस्लिम प्रतिनिधित्व को स्थान देता है। इससे एक ओर जहां पारदर्शिता की उम्मीद जगी है, वहीं कुछ राजनीतिक दल और मुस्लिम नेता इसे ‘मुस्लिम विरोधी’ बताकर विरोध कर रहे हैं। यह कानून न केवल कानूनी संरचना को बदलता है, बल्कि भारतीय मुस्लिम राजनीति की नई धुरी भी बन सकता है।
🔹 पीएम मोदी ने खुद किया खुलासा – मुस्लिम समुदाय से मिली 1700 से अधिक शिकायतें
पीएम मोदी ने कहा कि 2019 में दोबारा प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्हें मुस्लिम समाज के भीतर से—विशेषकर महिलाओं, विधवाओं और कमजोर वर्गों से वक्फ संपत्तियों को लेकर 1700 से अधिक शिकायतें प्राप्त हुईं। शिकायतों में आमतौर पर यह बताया गया कि कैसे वक्फ बोर्ड की पूर्ववर्ती व्यवस्थाएं संपत्ति पर कब्जा, उत्पीड़न और अधिकार हनन का माध्यम बन चुकी थीं।
प्रधानमंत्री ने कहा,
"हम उन लोगों के लिए यह कानून लेकर आए हैं, जिन्हें सबसे अधिक नुकसान हुआ—विधवाएं, गरीब मुसलमान, छोटे समुदाय। यह उनका न्याय है, यह उनके हक़ की वापसी है।"
🔹 दाऊदी बोहरा समुदाय का समर्थन – 1923 से मांग रही है छूट
प्रधानमंत्री की यह टिप्पणी दाऊदी बोहरा समुदाय के प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात के दौरान सामने आई। प्रतिनिधिमंडल में डॉक्टर, शिक्षक, व्यवसायी और पेशेवर शामिल थे। इस समुदाय ने न सिर्फ इस कानून का स्वागत किया, बल्कि बताया कि वे 1923 से वक्फ कानूनों से छूट की मांग कर रहे थे।
प्रधानमंत्री ने कहा कि वक्फ अधिनियम को आकार देने में बोहरा समुदाय के धर्मगुरु सैयदना मुफद्दल सैफुद्दीन का मार्गदर्शन बेहद अहम रहा। समुदाय के सदस्यों ने सरकार को बताया कि कैसे उनकी खुद की संपत्तियों को वर्षों तक वक्फ संपत्ति बताकर कब्जा किया गया।
उदाहरण: - एक सदस्य ने बताया कि 2015 में मुंबई के भिंडी बाजार में खरीदी गई करोड़ों की संपत्ति पर 2019 में नासिक के एक व्यक्ति ने वक्फ संपत्ति होने का दावा कर दिया था।
⚖️ क्या कहता है नया कानून?
वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 में निम्नलिखित महत्वपूर्ण प्रावधान जोड़े गए हैं:
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"वक्फ बाय यूजर" की परिभाषा हटाई गई – यानी अब कोई व्यक्ति बिना दस्तावेज़ सिर्फ उपयोग के आधार पर संपत्ति पर दावा नहीं कर सकता।
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गैर-मुस्लिमों को भी वक्फ बोर्ड में प्रतिनिधित्व – कानून अब वक्फ प्रबंधन में विविधता को मान्यता देता है।
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राज्य को दी गई नई शक्तियाँ – संपत्ति की वास्तविक स्वामित्व का निर्धारण अब राज्य सरकार की रिपोर्ट और जांच के आधार पर होगा।
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पुरानी वक्फ घोषणाओं की समीक्षा की प्रक्रिया – यानी बिना दस्तावेज़ी साक्ष्य के घोषित वक्फ संपत्तियों को दोबारा जांचा जाएगा।
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केंद्रीय वक्फ परिषद के पुनर्गठन का प्रावधान – पारदर्शिता बढ़ाने और एकाधिकार खत्म करने के लिए।
🔍 राजनीतिक प्रतिक्रियाएं: विरोध और समर्थन की टकराहट
जहां उत्तराखंड वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष शादाब शम्स ने कानून का स्वागत किया और इसे "अमीर मुसलमानों के कब्जे के खिलाफ उठाया गया क्रांतिकारी कदम" बताया, वहीं दूसरी ओर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इसे “मुस्लिम विरोधी कानून” बताया।
ममता बनर्जी ने कहा:
"यह कानून देश को बांटने वाला है। इससे अल्पसंख्यकों के बीच और अधिक असुरक्षा पैदा होगी। हमारी सरकार इसे लागू नहीं करेगी।
⚖️ कानूनी चुनौती और सुप्रीम कोर्ट की भूमिका
कई संगठनों और व्यक्तियों ने इस अधिनियम की संवैधानिकता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। याचिकाओं में निम्न बिंदुओं को आधार बनाया गया है:
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"वक्फ-बाय-यूजर" को हटाना अनुचित है।
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गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति धार्मिक भावनाओं का उल्लंघन कर सकती है।
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राज्य सरकार को संपत्ति स्वामित्व तय करने का अधिकार देना 'संविधान की मूल संरचना' के विरुद्ध है।
सुप्रीम कोर्ट ने 5 मई तक केंद्र सरकार को ‘वक्फ बाय यूजर’ के तहत कोई नई अधिसूचना जारी न करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने यह भी कहा कि केंद्र सरकार फिलहाल केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्ड में कोई नई नियुक्ति न करे और अधिनियम की वैधता पर विस्तृत जवाब सात दिन में दाखिल करे।
🔍 विश्लेषण: सुधार की दिशा या राजनीतिक रणनीति?
इस कानून के समर्थन में सबसे प्रमुख तर्क है—पारदर्शिता, न्याय और छोटे मुस्लिम समुदायों की रक्षा। लेकिन आलोचक इसे बहुसंख्यक राजनीति का एक और अध्याय मानते हैं।
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि:
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यह कानून "मुस्लिम समुदाय के भीतर वर्गभेद" को उजागर करता है, जिसमें प्रभावशाली तबकों का वर्चस्व अब टूटेगा।
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इसका उपयोग चुनावी रणनीति के तौर पर "पसमांदा मुसलमानों" को साधने के लिए किया जा सकता है।
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वहीं सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों से कानून की व्यवहारिकता और वैधानिकता की अंतिम पुष्टि होगी।
📌 निष्कर्ष: सुधार की ओर एक लंबा कदम, लेकिन संपूर्ण नहीं
वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 भारतीय मुस्लिम समाज के भीतर लंबे समय से उपेक्षित आवाज़ों—विशेषकर महिलाओं, विधवाओं और छोटे धार्मिक समूहों—को स्थान देने का प्रयास है। यह कानून न्याय और जवाबदेही की बात करता है, लेकिन इसकी वैधानिकता और सामाजिक स्वीकार्यता अभी न्यायपालिका और राजनीतिक प्रक्रिया के अगले अध्यायों में तय होगी।