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रीवा में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति बिगड़ी, निजी अस्पतालों की लूट और सरकारी डॉक्टरों की प्रैक्टिस पर सवाल saval Aajtak24 News |
रीवा - जिले की स्वास्थ्य व्यवस्था दिनोंदिन बिगड़ती जा रही है। यह जिला प्रदेश के उपमुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री, राजेंद्र शुक्ला का गृह जिला होने के बावजूद स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति दयनीय होती जा रही है। सरकारी अस्पतालों में सुविधाओं की कमी, निजी अस्पतालों की लूट-खसोट और महंगी दवाओं ने आम जनता को परेशान कर दिया है। यहां पर मरीजों को न केवल आर्थिक बल्कि मानसिक रूप से भी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। आइए, इस रिपोर्ट में हम रीवा जिले की स्वास्थ्य व्यवस्था की समस्याओं पर चर्चा करते हैं।
1. निजी अस्पतालों की मनमानी: गरीब मरीजों पर भारी पड़ रही महंगी चिकित्सा
रीवा जिले में कई निजी अस्पताल और नर्सिंग होम्स अपने कामकाज में मनमानी करते हुए मरीजों से ज्यादा पैसे वसूल रहे हैं। साधारण बीमारियों के लिए भी 500 रुपये से ज्यादा की फीस ली जा रही है, जबकि गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए अस्पताल मनमानी रकम वसूलते हैं। इसके अलावा, मरीजों से बेवजह महंगी जांचें भी करवाई जा रही हैं, जिनका कोई चिकित्सीय आधार नहीं होता। इन जांचों का मुख्य उद्देश्य केवल पैसों की उगाही करना होता है।
प्रमुख समस्याएं:
- बिना किसी कारण के महंगी जांचों का दबाव।
- मरीजों से अधिक फीस वसूली जा रही है।
- गरीब और जरूरतमंद लोगों के लिए स्वास्थ्य सेवाएं दूर होती जा रही हैं।
2. एमआरपी से ज्यादा कीमत पर दवाओं की बिक्री: खुलेआम लूट
रीवा जिले के मेडिकल स्टोर्स पर दवाइयों की कीमतों में भी भारी अनियमितताएं देखने को मिल रही हैं। कई मेडिकल स्टोर्स पर एमआरपी (Maximum Retail Price) से ज्यादा कीमतों पर दवाएं बेची जा रही हैं। इससे मरीजों को दवाओं पर ज्यादा खर्च करना पड़ता है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति पर और भी दबाव बढ़ जाता है। यह स्वास्थ्य सेवाओं में हो रही सबसे बड़ी लूटों में से एक है।
जरूरी सवाल:
- क्यों एमआरपी से ज्यादा कीमतों पर दवाइयां बेची जा रही हैं?
- प्रशासन ने इस पर अब तक कोई ठोस कदम क्यों नहीं उठाया?
- क्या मेडिकल स्टोर्स और अस्पतालों के बीच कोई मिलीभगत तो नहीं है?
3. सरकारी डॉक्टरों की प्राइवेट प्रैक्टिस: सरकारी अस्पतालों में इलाज के नाम पर खेल
रीवा जिले के सरकारी अस्पतालों में कई डॉक्टर अपनी कर्तव्यों की अनदेखी करते हुए निजी नर्सिंग होम्स और क्लीनिक में मरीजों को भेजने का काम करते हैं। मरीजों को सरकारी अस्पताल में इलाज कराने के बजाय निजी अस्पतालों और क्लीनिकों में जाने के लिए मजबूर किया जाता है, जहां उन्हें भारी-भरकम शुल्क चुकाना पड़ता है। यह न केवल सरकारी अस्पतालों की विश्वसनीयता को प्रभावित करता है बल्कि गरीब मरीजों के लिए इलाज को भी मुश्किल बना देता है।
गंभीर परिणाम:
- सरकारी अस्पतालों की विश्वसनीयता कम हो रही है।
- गरीब मरीजों को इलाज की उच्च लागत का सामना करना पड़ रहा है।
- सरकारी डॉक्टर अपने कर्तव्यों से विमुख हो रहे हैं।
4. पैथोलॉजी और जांच केंद्रों का खेल: डॉक्टरों और लैब्स की मिलीभगत
निजी पैथोलॉजी लैब्स और डॉक्टरों के बीच गहरी मिलीभगत देखी जा रही है। डॉक्टर मरीजों से कई अनावश्यक जांचें करवाने का दबाव डालते हैं, जिससे वे पैथोलॉजी लैब्स से मोटा कमीशन प्राप्त करते हैं। मरीजों से जबरदस्ती इन महंगी जांचों को करवाने से उनकी वित्तीय स्थिति पर और दबाव बनता है, जबकि इस प्रकार की जांचों का कोई चिकित्सीय आधार नहीं होता।
जरूरी सवाल:
- कितने प्रतिशत डॉक्टर पैथोलॉजी लैब्स से कमीशन लेते हैं?
- क्या प्रशासन ने कभी इस पर सख्त कार्रवाई की है?
5. राजनीति और स्वास्थ्य सेक्टर की मिलीभगत: मीडिया की चुप्पी पर सवाल
कई बार यह देखा गया है कि निजी अस्पतालों के संचालक सीधे तौर पर राजनीतिक नेताओं से जुड़े होते हैं, जिससे उनके खिलाफ कार्रवाई करना मुश्किल हो जाता है। यह भी सवाल उठता है कि क्या मीडिया इन मुद्दों को दबा रही है, क्योंकि कई प्रमुख समाचार पत्र इस मुद्दे को प्रमुखता से नहीं उठाते हैं। क्या निजी अस्पतालों से मिलने वाले विज्ञापन उनके लिए ज्यादा महत्वपूर्ण हो गए हैं, और वे जनता की आवाज को दबा रहे हैं?
क्या मीडिया भी इस सच्चाई को दबा रहा है?
- क्या निजी अस्पतालों से मिलने वाले विज्ञापन मीडिया की प्राथमिकता बन गए हैं?
- क्या मीडिया का काम जनता की आवाज बनना नहीं है?
जनता को जागरूक होना जरूरी, प्रशासन से जांच की मांग
रीवा जिले की स्वास्थ्य व्यवस्था में व्याप्त इस अनियमितता को दूर करने के लिए प्रशासन को सख्त कदम उठाने होंगे। इस समस्या को हल करने के लिए, जनता को भी जागरूक होना जरूरी है और प्रशासन पर दबाव बनाना होगा ताकि इस मुद्दे को गंभीरता से लिया जाए।
जनता को क्या करना चाहिए?
- मीडिया और प्रशासन पर दबाव बनाना होगा।
- अपने अधिकारों के लिए जागरूक रहना जरूरी है।
- सरकारी डॉक्टरों की गैर-जिम्मेदाराना हरकतों की शिकायत करनी होगी।
प्रशासन से क्या उम्मीद की जानी चाहिए?
- निजी अस्पतालों और पैथोलॉजी लैब्स की गहन जांच हो।
- एमआरपी से अधिक कीमतों पर दवाओं की बिक्री पर सख्त कार्रवाई हो।
- सरकारी डॉक्टरों की निजी प्रैक्टिस पर रोक लगाई जाए।
- मरीजों से अनावश्यक फीस वसूलने वाले अस्पतालों पर कानूनी कार्रवाई हो।
- जनता के लिए हेल्पलाइन और शिकायत केंद्र बनाए जाएं।
स्वास्थ्य सेवा को मानव सेवा बनाएं, व्यापार नहीं!
अगर समय रहते इस मुद्दे पर ध्यान नहीं दिया गया तो जनता को लगातार आर्थिक और स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों का सामना करना पड़ेगा। सरकार और प्रशासन को चाहिए कि वे स्वास्थ्य सेवाओं को पारदर्शी बनाएं और जनता के लिए सुलभ करें, ताकि स्वास्थ्य सेवा पैसे कमाने का जरिया न बनकर सही मायनों में मानव सेवा बनी रहे।