प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन, मानवता के भविष्य पर संकट sankat Aajtak24 News


धरती पर जल संकट और पर्यावरणीय संकट गहराया


रीवा - धरती पर बढ़ती गर्मी, घटते जल स्रोत, कटते हुए जंगल, और सूखती हरियाली, यह सब संकेत दे रहे हैं कि मानवता एक भयंकर जल संकट की ओर बढ़ रही है। आने वाले समय में अगर यह हालात बदले नहीं, तो 2025 के जून और जुलाई में एक विकराल गर्मी का सामना करना पड़ेगा, जो न केवल मनुष्य बल्कि पशु-पक्षी और समूची जैव विविधता के लिए भी एक गंभीर चुनौती बन सकती है। भूजल स्तर लगातार गिर रहा है, नदियां सूख रही हैं और जंगलों का सफाया हो रहा है, जो भविष्य में प्राकृतिक आपदाओं और जल संकट की बड़ी वजह बन सकता है।

प्राकृतिक संसाधनों का शोषण

स्वतंत्रता सेनानियों ने जिस भारत को स्वतंत्रता दिलाने का सपना देखा था, वे शायद यह नहीं जानते थे कि स्वतंत्रता के बाद जनता के प्रतिनिधि इस देश की प्राकृतिक संपदा को इतनी बेरहमी से बेच देंगे। आजादी के बाद प्राकृतिक संसाधनों के दोहन का जो सिलसिला शुरू हुआ, वह ब्रिटिश साम्राज्य से भी ज्यादा खतरनाक साबित हो रहा है। हमारे पूर्वजों ने तालाब, कुएं, बावड़ी और घने जंगलों की जो प्राकृतिक विरासत छोड़ी थी, उसे आधुनिक विकास के नाम पर नष्ट किया जा रहा है।

जंगलों की कटाई: धरती के हरे वस्त्रों का विनाश

भारत में सदियों से जंगलों को पवित्र माना जाता है। सनातन धर्म में पीपल, बरगद, आम और नीम जैसे वृक्षों को पूजा जाता है, क्योंकि ये न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं बल्कि पर्यावरणीय संतुलन में भी अहम भूमिका निभाते हैं। लेकिन अब, वन माफियाओं द्वारा इन जंगलों की अवैध कटाई के कारण वे वीरान होते जा रहे हैं। जहां पहले घने जंगल थे, अब वहां कंक्रीट की इमारतें खड़ी हो गई हैं। जंगलों की जड़ें बारिश के पानी को भूमि के अंदर पहुंचाने में मदद करती थीं, लेकिन इनके विनाश के कारण भूजल स्तर तेजी से गिर रहा है।

नदियों से अवैध उत्खनन: जल स्रोतों का हनन

भारत की नदियों को हमेशा जीवनदायिनी कहा गया है, लेकिन अब यही नदियां सूखने की कगार पर हैं। बालू और पत्थरों का अवैध खनन इन नदियों को गहरा कर रहा है, जिससे इनका पानी ठहरने का स्थान खत्म हो गया है। नदियां अब बारिश के पानी को संचित नहीं कर पा रही हैं, जिससे जल स्तर हर साल घटता जा रहा है। अवैध उत्खनन के कारण नदियों की प्राकृतिक धारा पर गहरा असर पड़ा है, और यह संकट और भी बढ़ता जा रहा है।

तालाबों और कुओं का समतलीकरण: जल संरक्षण की विफलता

पहले के समय में गांवों में तालाब और जलाशय बनाए जाते थे, जो बारिश के पानी को संचित करने में मदद करते थे और भूजल स्तर को बनाए रखते थे। लेकिन अब इन तालाबों का समतलीकरण कर मकान, सरकारी दफ्तर और निजी इमारतें बना दी गई हैं। यह जल स्रोतों का नष्ट होना जल संकट को और गंभीर बना रहा है। अब कई गांवों में पीने के पानी तक की किल्लत हो गई है।

सरकार की योजनाओं का कागजी ढांचा

सरकार ने "हरियाली प्रोजेक्ट" और "वॉटरशेड मिशन" जैसी योजनाएं शुरू की थीं, लेकिन ये सब सिर्फ कागजों में ही सीमित हो कर रह गईं। इन योजनाओं पर अरबों रुपये खर्च हुए, लेकिन जमीनी स्तर पर कहीं कोई जल स्रोत विकसित नहीं किया गया। भ्रष्टाचार के कारण यह पैसा ठेकेदारों, नेताओं और अधिकारियों की जेबों में चला गया। जल संकट से निपटने के लिए किए गए कदमों की वास्तविकता को लेकर सवाल उठ रहे हैं।

हैंडपंप और कुएं भी सूख रहे हैं

सरकार ने जल संकट से निपटने के लिए हजारों हैंडपंप और कुएं खोदने का दावा किया था, लेकिन इनमें से अधिकतर या तो सूख चुके हैं या फिर शुरुआत से ही अनुपयोगी रहे हैं। इसके पीछे की वजह यह है कि भूमिगत जल पुनर्भरण (रिचार्ज) की कोई व्यवस्था नहीं की गई। बिना ठोस जल संरक्षण के उपायों के, इन हैंडपंप और कुओं का प्रभाव कम हो गया है।

प्राकृतिक जल संरक्षण प्रणाली का नुकसान

पहले खेतों में "मेड बंधन" बनाए जाते थे, जिससे बारिश का पानी भूमि में समा जाता था और बर्बाद नहीं होता था। लेकिन अब यह प्रणाली समाप्त हो गई है, और अत्यधिक दोहन और अवैध निर्माण के कारण वर्षा जल का संरक्षण नहीं हो पा रहा है। यह संकट भविष्य में और भी गहरा हो सकता है, क्योंकि जल संचयन की मौजूदा नीतियां पूरी तरह से विफल हो चुकी हैं।

वृक्षारोपण का व्यावसायीकरण

वृक्षारोपण के नाम पर सिर्फ आंकड़ों की बाजीगरी हो रही है। पुराने बीजू वृक्षों की जगह अब फार्म हाउसों में कलमी वृक्ष लगाए जा रहे हैं। ये वृक्ष न तो पर्यावरणीय संतुलन में योगदान देते हैं और न ही दीर्घकालिक रूप से जीवनदायिनी साबित होते हैं। सड़क किनारे जो पीपल, बरगद और आम जैसे वृक्ष लगाए जाते थे, उनकी अब अंधाधुंध कटाई की जा रही है। यह स्थिति आने वाले समय में और भी विकराल हो सकती है, और सड़क किनारे हरियाली का अस्तित्व समाप्त हो सकता है।

जल संकट और बढ़ती बीमारियां

जल संकट का असर सिर्फ पानी की कमी तक ही सीमित नहीं रहेगा, बल्कि इसका असर लोगों के स्वास्थ्य पर भी पड़ेगा। भूजल स्तर के गिरने से दूषित जल की समस्या बढ़ेगी, जिससे टाइफाइड, पेचिश, डायरिया और फ्लोराइड जैसी गंभीर बीमारियां फैल सकती हैं। पशु-पक्षियों पर भी इसका गहरा प्रभाव पड़ेगा। जलचर प्रजातियां विलुप्त हो जाएंगी और जंगलों की कमी से जंगली जीव आबादी वाले इलाकों में आ जाएंगे, जिससे मानव-पशु संघर्ष की घटनाएं बढ़ सकती हैं।

भविष्य में जल संकट

अगर हम अब भी प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन रोकने और जल संरक्षण को प्राथमिकता नहीं देंगे, तो आने वाले वर्षों में हालात और भी भयावह हो जाएंगे। जल संचयन, वृक्षारोपण और प्राकृतिक जल स्रोतों के पुनर्जीवन के लिए ठोस कदम उठाए जाने की जरूरत है।

आगे क्या करना चाहिए?

प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन और जल संकट की समस्या को रोकने के लिए सरकार को ठोस कदम उठाने होंगे। सरकारी योजनाओं को सख्ती से लागू करना, जल स्रोतों की पुनर्स्थापना और वृक्षारोपण को बढ़ावा देना बेहद जरूरी है। अगर हमें आने वाली पीढ़ियों के लिए एक बेहतर पर्यावरण छोड़ना है, तो हमें अभी से इस दिशा में कदम उठाना होगा।



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