मेडिकल नशे का बढ़ता कारोबार: रीवा और मऊगंज में प्रशासन की बड़ी चुनौती chunouti Aajtak24 News


 मेडिकल नशे का बढ़ता कारोबार: रीवा और मऊगंज में प्रशासन की बड़ी चुनौती chunouti Aajtak24 News 


रीवा/मऊगंज - हर साल 31 मार्च को वित्तीय वर्ष का समापन होता है, और यह सिर्फ आर्थिक लेखा-जोखा करने का समय नहीं होता, बल्कि समाज में व्याप्त समस्याओं की समीक्षा करने का भी अवसर होता है। पिछले कुछ वर्षों से एक गंभीर समस्या ने समाज को जकड़ लिया है – मेडिकल नशे का बढ़ता कारोबार। यह न केवल युवाओं को बर्बाद कर रहा है, बल्कि कानून और प्रशासन के लिए भी एक बड़ी चुनौती बन चुका है।

मेडिकल नशे का फैलता जाल:
अब तक सिर्फ शराब और गांजे जैसे नशे का बोलबाला था, लेकिन अब मेडिकल नशे ने अपनी जड़ें गहरी जमा ली हैं। नशे के सौदागर अब कोडीन सिरप, ट्रामाडोल, अल्प्राजोलम, इंजेक्शन और अन्य प्रतिबंधित दवाओं को धड़ल्ले से बेच रहे हैं। ये दवाएं अब युवाओं के बीच तेजी से लोकप्रिय हो रही हैं, और इसके सेवन से उनकी जिंदगी पूरी तरह से नष्ट हो रही है।

रीवा और मऊगंज जिले में मेडिकल नशे का कारोबार अब किसी से छिपा नहीं रहा। अवैध रूप से बेचे जाने वाले नशीले सिरप, इंजेक्शन और अन्य दवाएं इन इलाकों में खुलेआम बिक रही हैं। प्रशासन की लापरवाही और अधिकारियों की मिलीभगत की वजह से यह कारोबार फल-फूल रहा है। यह न सिर्फ युवाओं को नष्ट कर रहा है, बल्कि यह एक गंभीर समस्या बन चुका है।

कैसे होता है मेडिकल नशे का व्यापार?
मेडिकल नशे का यह कारोबार बहुत ही सुनियोजित तरीके से संचालित होता है।

  1. दवा दुकानों की आड़ में: कई मेडिकल स्टोर्स अवैध रूप से नशीली दवाएं बेचते हैं, और यह रिकॉर्ड में गड़बड़ी करते हुए करते हैं।
  2. हरियाणा, छत्तीसगढ़ और यूपी से आपूर्ति: ये नशीली दवाएं दूसरे राज्यों से लाकर रीवा और आसपास के जिलों में बेची जाती हैं।
  3. रात के समय सप्लाई: ये अवैध कारोबार ज्यादातर रात 11 बजे से सुबह 3 बजे तक किया जाता है, जब पुलिस की सक्रियता कम होती है।
  4. राजनीतिक संरक्षण और अधिकारियों की मिलीभगत: नशे के कारोबारी अक्सर प्रभावशाली नेताओं के साथ अपनी तस्वीरें दिखाकर खुद को सुरक्षित साबित करने की कोशिश करते हैं।
  5. व्हाट्सएप और मोबाइल नेटवर्क का उपयोग: नशे का कारोबार अब डिजिटल माध्यमों से भी चलाया जा रहा है, जिसमें व्हाट्सएप और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का उपयोग किया जा रहा है।

कुंभ मेले के दौरान बढ़ा कारोबार
माघ मेले के दौरान प्रशासन की पूरी ताकत सुरक्षा व्यवस्था में लगी थी, और इसका फायदा उठाकर नशा माफियाओं ने बड़े पैमाने पर मेडिकल नशे की खेप रीवा और मऊगंज में इकट्ठा कर ली। अब वही नशा गांवों में बेचा जा रहा है, और पुलिस द्वारा वाहनों की सघन जांच न किए जाने के कारण यह कारोबार बेरोकटोक जारी है।

प्रशासन की उदासीनता और भ्रष्टाचार
मेडिकल नशे के इस बढ़ते कारोबार के पीछे प्रशासन की लापरवाही और भ्रष्टाचार भी एक प्रमुख कारण है। स्वास्थ्य विभाग की नियमित जांच की कमी और पुलिस विभाग के कुछ भ्रष्ट कर्मचारियों की मिलीभगत इस धंधे को बढ़ावा दे रही है। राजनीतिक संरक्षण और प्रभावशाली लोगों की संलिप्तता भी इस समस्या को और गहरा कर रही है।

क्या करें सरकार और प्रशासन?
मध्य प्रदेश सरकार और रीवा के वरिष्ठ नेता इस मुद्दे पर गंभीर हैं। रीवा विधायक राजेंद्र शुक्ला ने इस संबंध में उत्तर प्रदेश सरकार से चर्चा की है, लेकिन स्थानीय स्तर पर ठोस कार्रवाई नहीं होने तक इस अवैध कारोबार को रोक पाना मुश्किल है। पिछले 15 वर्षों में मेडिकल नशे का कारोबार तेजी से बढ़ा है, और अब यह समस्या इतनी विकराल हो गई है कि युवा और वृद्ध सभी इस जाल में फंसे हुए हैं।

समाधान के सुझाव:

  1. गोपनीय जांच टीम का गठन: प्रशासन को एक गोपनीय टीम बनानी चाहिए, जिसमें बाहर के अधिकारियों को शामिल किया जाए, ताकि वे स्थानीय स्तर पर जांच कर सकें।
  2. सख्त नियंत्रण: मेडिकल स्टोर्स और फार्मेसियों की नियमित और सख्त जांच की जानी चाहिए, ताकि अवैध दवाओं की बिक्री पर काबू पाया जा सके।
  3. मोबाइल डेटा और कॉल रिकॉर्ड की जांच: इस धंधे में शामिल लोगों के मोबाइल नंबरों और कॉल रिकॉर्ड की जांच से बड़े नाम उजागर हो सकते हैं।
  4. रात में विशेष अभियान: रात 11 बजे से सुबह 3 बजे तक पुलिस को विशेष अभियान चलाकर छापेमारी करनी चाहिए।
  5. कड़ी सजा: जो भी व्यक्ति इस अवैध व्यापार में लिप्त पाया जाए, उसे कठोर सजा दी जाए।
  6. जन जागरूकता अभियान: स्कूलों, कॉलेजों और गांवों में नशे के खिलाफ बड़े स्तर पर अभियान चलाए जाने चाहिए, ताकि युवा जागरूक हो सकें।

मेडिकल नशे का बढ़ता कारोबार केवल एक गंभीर प्रशासनिक समस्या नहीं, बल्कि यह समाज की मूल संरचना को भी प्रभावित कर रहा है। अगर अब भी इस पर ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाली पीढ़ियां इस जहर का शिकार हो सकती हैं। सरकार, प्रशासन और आम जनता को मिलकर इस बुराई के खिलाफ लड़ाई लड़नी होगी। केवल कागजी कार्रवाई से कुछ नहीं होगा, जब तक इसे जमीनी स्तर पर सख्ती से लागू नहीं किया जाता।




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