अवैध चिकित्सकों का बढ़ता साम्राज्य, इलाज के नाम पर खिलवाड़ khilwad Aajtak24 News


अवैध चिकित्सकों का बढ़ता साम्राज्य, इलाज के नाम पर खिलवाड़ khilwad Aajtak24 News 

रीवा/मऊगंज - चिकित्सा क्षेत्र को हमेशा से एक पुण्य कार्य माना गया है, लेकिन आजकल यह सेवा के बजाय एक अवैध व्यापार बन चुका है। शहरों से लेकर ग्रामीण अंचलों तक अवैध चिकित्सा का धंधा तेजी से बढ़ता जा रहा है। बिना किसी मेडिकल डिग्री या प्रमाणपत्र के, झोलाछाप डॉक्टर गंभीर बीमारियों का इलाज कर रहे हैं, जिससे मरीजों की जान तक जा रही है। बावजूद इसके, प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग इन अवैध चिकित्सकों पर सख्त कार्रवाई करने में नाकाम साबित हो रहे हैं।

अवैध चिकित्सकों की बढ़ती संख्या

रीवा और मऊगंज जिलों के समस्त ब्लॉकों में अवैध चिकित्सकों की भरमार हो चुकी है। शहरों में खुलेआम इनके बोर्ड लगे हुए हैं, जबकि ग्रामीण इलाकों में ये घरों में ही दुकान सजाकर इलाज कर रहे हैं। कुछ चिकित्सक मोटरसाइकिल पर घूम-घूमकर लोगों को दवाइयां दे रहे हैं। इन झोलाछाप डॉक्टरों की संख्या अब सैकड़ों में नहीं, बल्कि हजारों में पहुंच चुकी है। इनका नेटवर्क अब पूरी तरह से फैल चुका है, और यह स्थानीय स्वास्थ्य व्यवस्था को कमजोर कर रहा है। उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल और अन्य राज्यों से आए लोग भी रीवा और मऊगंज के कस्बों और गांवों में अवैध चिकित्सा सेवाएं दे रहे हैं।

गंभीर बीमारियों का फर्जी इलाज

अवैध चिकित्सकों की हिम्मत इतनी बढ़ गई है कि अब ये सिर्फ सामान्य बीमारियों का ही नहीं, बल्कि कैंसर, टीबी, हृदय रोग, किडनी रोग और प्रसव तक का इलाज करने का दावा कर रहे हैं। शहरों में इनका पूरा नेटवर्क बन चुका है, जहां मरीजों को महंगे इंजेक्शन और ड्रिप (बोतल) चढ़ाकर लूटा जाता है। ये झोलाछाप डॉक्टर बिना किसी उचित जांच के मरीजों को इंजेक्शन और ग्लूकोज चढ़ा देते हैं, जिससे मरीज को तात्कालिक रूप से राहत तो मिलती है, लेकिन यह आगे चलकर बड़ी समस्याओं को जन्म देता है।

  1. इंजेक्शन और बोतल के नाम पर लूट
    झोलाछाप डॉक्टरों का मुख्य हथियार इंजेक्शन और ड्रिप (बोतल) बन चुके हैं। बिना किसी जांच के ये हर मरीज को इंजेक्शन और ग्लूकोज चढ़ा देते हैं, जिससे मरीज को तात्कालिक राहत मिलती है, लेकिन इस प्रक्रिया से मरीज की हालत और बिगड़ सकती है। मरीजों को न केवल गलत इलाज मिलता है, बल्कि कई बार इन गलत दवाइयों और इंजेक्शनों के ओवरडोज से गंभीर रिएक्शन भी हो जाते हैं, जो जीवन के लिए खतरा बन जाते हैं।

  2. मरीजों की जान से खिलवाड़
    गलत दवाइयों और इंजेक्शनों के कारण कई मरीजों की जान जा चुकी है। कुछ मामलों में दवाइयों के ओवरडोज या गलत मिश्रण के कारण मरीजों को गंभीर रिएक्शन हुआ, लेकिन ऐसे झोलाछाप डॉक्टर इलाज जारी रखते हैं, जब तक कि स्थिति नियंत्रण से बाहर न हो जाए। कई बार मरीज की हालत बिगड़ने पर उसे बड़े अस्पताल रेफर कर दिया जाता है, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है और मरीज की जान बचाने के अवसर कम हो जाते हैं।

  3. प्रसव और सर्जरी तक करने लगे झोलाछाप डॉक्टर
    कुछ अवैध चिकित्सक इतने साहसी हो गए हैं कि वे बिना किसी योग्यता के डिलीवरी और सर्जरी तक करने लगे हैं। इनका कोई लाइसेंस नहीं होता, न ही इनके पास आवश्यक उपकरण होते हैं। ग्रामीण इलाकों में कई महिलाओं की जान प्रसव के दौरान चली गई, लेकिन कोई सख्त कार्रवाई नहीं हुई। यह स्थिति बहुत गंभीर हो चुकी है और प्रशासन की लापरवाही इसे और बढ़ावा दे रही है।

स्वास्थ्य योजनाओं की विफलता

सरकार द्वारा गरीबों के लिए कई स्वास्थ्य योजनाएं चलाई जा रही हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर इनका कोई लाभ नहीं मिल रहा। सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी और खराब व्यवस्थाओं के कारण ग्रामीण जनता मजबूरी में इन अवैध चिकित्सकों के पास जाने को विवश हो जाती है।

  1. सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी
    ग्रामीण इलाकों में स्थित सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी बनी हुई है। जो डॉक्टर तैनात हैं, वे अक्सर अपनी ड्यूटी से नदारद रहते हैं और मरीजों को इलाज नहीं मिल पाता। इसके परिणामस्वरूप लोग अवैध चिकित्सकों के पास जाने को मजबूर होते हैं।

  2. स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव
    अस्पतालों में आवश्यक दवाइयों, उपकरणों और मशीनों की भारी कमी है। ऐसे में मरीजों को प्राइवेट क्लीनिकों की तरफ धकेल दिया जाता है, जहां पर इलाज की गुणवत्ता नहीं होती और यह उपचार अधिक खर्चीला भी होता है।

  3. प्राइवेट अस्पतालों और झोलाछाप डॉक्टरों की सांठगांठ
    कुछ सरकारी डॉक्टर भी इन अवैध चिकित्सकों के साथ सांठगांठ कर लेते हैं। मरीजों को सरकारी अस्पतालों में उचित इलाज नहीं मिलने पर उन्हें निजी अस्पतालों या झोलाछाप डॉक्टरों के पास भेज दिया जाता है, जिससे इनकी स्थिति और भी जटिल हो जाती है।

प्रशासन की निष्क्रियता और भ्रष्टाचार

कई वर्षों पूर्व जिला प्रशासन ने एक विशेष अभियान चलाया था, जिसमें 420 अवैध चिकित्सकों की पहचान की गई थी। उस समय कुछ क्लीनिकों को बंद भी किया गया था, लेकिन यह अभियान लंबे समय तक नहीं चल सका और स्थिति पहले से भी ज्यादा खराब हो गई। सवाल यह उठता है कि–

  • क्या प्रशासन ने इन्हें खुली छूट दे रखी है?
  • क्या इन झोलाछाप डॉक्टरों को पुलिस और स्वास्थ्य विभाग से संरक्षण मिल रहा है?
  • क्या गरीबों की जान से खेलना अब एक व्यवसाय बन चुका है?

अगर जल्द ही इस समस्या का समाधान नहीं किया गया, तो यह न केवल स्वास्थ्य व्यवस्था को कमजोर करेगा, बल्कि हजारों निर्दोष लोगों की जान भी ले लेगा। चिकित्सा सेवा को व्यवसाय बनने से रोकना होगा और इसे फिर से एक मानवीय सेवा के रूप में स्थापित करना होगा। प्रशासन और सरकार को इस दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे, ताकि अवैध चिकित्सकों का यह साम्राज्य खत्म किया जा सके और लोगों को सुरक्षित और सस्ती चिकित्सा सुविधा मिल सके।

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