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जल संकट की गंभीरता, बढ़ती बोरवेल्स, घटती जल स्रोत और पर्यावरणीय असंतुलन asantulan Aajtak24 News |
रीवा/मऊगंज - देशभर में जल संकट एक गंभीर समस्या बनकर उभर रही है, जिसके मुख्य कारणों में बोरवेल्स की बढ़ती संख्या, कुओं और तालाबों की घटती संख्या, तथा वृक्षों की अनियंत्रित कटाई शामिल हैं। यह संकट न केवल वर्तमान पीढ़ी के लिए, बल्कि आने वाले समय में आने वाली पीढ़ियों के लिए भी विकट हो सकता है। एक ओर जहां बोरवेल्स की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है, वहीं दूसरी ओर तालाब, कुएं, और प्राकृतिक जल संचयन प्रणाली में कमी आ रही है। यह स्थिति जल संकट को और बढ़ावा दे रही है। कुएं और तालाब, जो पहले भूजल भंडारण का अहम हिस्सा थे, अब अपनी कमी महसूस कर रहे हैं। इसके कारण प्राकृतिक जल चक्र बाधित हो रहा है और पानी की उपलब्धता पर गंभीर असर पड़ रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि बोरवेल्स की अत्यधिक संख्या के कारण भूमिगत जल का स्तर दिन-ब-दिन घटता जा रहा है। इसके परिणामस्वरूप, पीने योग्य पानी की उपलब्धता में कमी आ रही है, जो आने वाले दिनों में बड़े पैमाने पर समस्या उत्पन्न कर सकती है।
वृक्षों की कटाई और बढ़ता तापमान
दूसरी बड़ी समस्या जो जल संकट को और बढ़ावा दे रही है, वह है वृक्षों की अनियंत्रित कटाई और प्राकृतिक पर्यावरण में हो रहे बदलाव। वर्ष दर वर्ष वृक्षों की संख्या में कमी आ रही है, जिसके परिणामस्वरूप गर्मी का स्तर बढ़ता जा रहा है। प्रदूषण के कारण यह समस्या और भी गंभीर हो गई है, जिससे मौसम में अत्यधिक बदलाव हो रहा है। किसी समय में वृक्षों के विशाल नेटवर्क से हवा को शुद्ध किया जाता था और जलवायु का संतुलन बना रहता था, लेकिन अब जलवायु परिवर्तन के कारण गर्मी की लहरें बढ़ रही हैं। आने वाले वर्षों में यदि वृक्षों की कटाई और प्रदूषण पर नियंत्रण नहीं पाया गया, तो यह जल संकट के साथ-साथ तापमान वृद्धि और पेयजल की गंभीर समस्या पैदा कर सकता है।
सरकारी प्रयासों की स्थिति
सरकार द्वारा बोरवेल्स पर नियंत्रण लगाने के लिए विभिन्न बार घोषणाएं की गई हैं, लेकिन यह केवल कागजी कार्यवाही तक ही सीमित रहती हैं। भूमि जल पुनर्चक्रण, जल संवर्धन और तालाबों के पुनर्निर्माण जैसे कार्यक्रमों की भी कई बार योजनाएं बनीं, लेकिन धरातल पर उनका असर न के बराबर रहा। यही स्थिति वृक्षारोपण के मामले में भी है। प्राकृतिक जल स्रोतों के संरक्षण और तालाबों के पुनर्निर्माण के लिए कई योजनाएं बनायीं गईं, लेकिन इन योजनाओं का क्रियान्वयन बहुत धीमा और भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया। इसके परिणामस्वरूप, पुराने तालाबों और जल स्रोतों पर अब आलीशान इमारतें खड़ी हो गई हैं, और जल संरक्षण की योजनाएं केवल अभिलेखों तक सीमित रह गई हैं।
पर्यावरण संतुलन की आवश्यकता
बीएचयू के शास्त्री पर्यावरण विधि विभाग के विशेषज्ञों का कहना है कि पर्यावरण संतुलन बनाए रखने के लिए प्राकृतिक जल स्रोतों, कुओं और तालाबों के संरक्षण की दिशा में ठोस कदम उठाए जाने चाहिए। साथ ही, वृक्षारोपण और जल संवर्धन की योजनाओं को गंभीरता से लागू करने की आवश्यकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर वृक्षों की कटाई और जल स्रोतों के नष्ट होने की प्रक्रिया पर नियंत्रण नहीं पाया गया, तो आने वाले वर्षों में जल संकट और गर्मी की समस्या विकराल रूप ले सकती है। प्राकृतिक जल स्त्रोतों के पुनर्निर्माण और जल संवर्धन के प्रयासों को सरकार द्वारा प्राथमिकता देनी चाहिए। जल संकट, पर्यावरणीय असंतुलन और गर्मी के बढ़ते प्रभावों को रोकने के लिए प्रशासन और समाज को मिलकर एक ठोस और व्यवस्थित रणनीति बनानी होगी। यह आवश्यक है कि प्राकृतिक जल स्रोतों, तालाबों और वृक्षों के संरक्षण के लिए प्रभावी योजनाओं को लागू किया जाए और समाज में इस दिशा में जागरूकता बढ़ाई जाए। अगर इस संकट पर शीघ्र नियंत्रण नहीं पाया गया, तो यह भविष्य में भयावह स्थिति उत्पन्न कर सकता है। इसी के साथ इतना और जोड़ दिया जाए कि यदि प्राकृतिक दम जैसे नदियों के रेट निकालने से गहराई हो जाती है और जलस्तर कम हो जाता है इससे भी जल संकट निर्मित होगा प्राकृतिक दम पहाड़ और रेत ही है जो जल के प्रवाह को रोकते हैं।