आदिनाथ जयंती का पावन पर्व बड़े ही हर्षो उल्लास के साथ मनाया विमान यात्रा निकाली yatra niakli Aaj Tak 24 news



आदिनाथ जयंती का पावन पर्व बड़े ही हर्षो उल्लास के साथ मनाया विमान यात्रा निकाली yatra niakli Aaj Tak 24 news 

दमोह - जैन धर्म के पहले तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव (भगवान आदिनाथ) की जन्म जयंती व तपकल्याणक दिवस गुरुवार को भक्तिभाव से मनाया गया। इस मौके पर सुबह दिगंबर जैन मंदिरों में मंत्रोच्चार के साथ भगवान आदिनाथ का अभिषेक, शांतिधारा अष्टद्रव्यों से विशेष पूजा-अर्चना की गई। आदिनाथ जयंती के पावन अवसर पर जैन समाज में बड़ा हर्ष जन्मकल्याणक के पावन अवसर पर गणनी आर्यिका 105 विशिष्ट श्री माता जी ससंघ  के श्री 1008 आदिनाथ चौबीसी मंदिर से विमान जीनगर के सभी मुख्य मार्गो से होते हुए श्री पार्श्वनाथ बड़ा मंदिर जी शोभायात्रा पहुँची जहाँ श्रद्धालुओं ने दर्शन किये।  चांदी के विमान पर भगवान आदिनाथ विराजमान थे जिन्हें भक्तगण कांधे पर भक्ति भाव से लेकर चल रहे थे।शोभायात्रा यात्रा में बेंड बाजे, दिव्यघोष,,संगीत मंडलो के साथ पुरूष धोती दुपट्टा, महिलाएं केशरिया बस्त्रो के साथ सिर पर कलश लेकर मंगलगीत गाते हुए चल रहे थी।नगर के प्रत्येक जैन जेनेत्रर बंधुओं ने श्री जी की मंगल आरती की पूज्य माताजी  के चरण प्रक्षालन कर रहे थे।शोभायात्रा में मुख्य आकर्षण का केंद्र रहा चांदी का विमान जो 100% चांदी से बना हुआ पहली बार आज जलूश में सम्मिलित हुआ।शोभायात्रा नगर के मुख्य मार्ग से होते हुए  लखरोनी रोड पर चौबीसी मंदिर  में आयोजित जन्म अभिषेक महोत्सव स्थल पर  पहुँची।पारस बाँझल जैन ने जानकारी देते हुए बताया आदिनाथ मंदिर में भगवान आदिनाथ जी का अभिषेक करने का सौभाग्य भक्तों को प्राप्त हुआ। गणनी आर्यिका 105 विशिष्ट श्री माता जी के मंगल प्रवचन भी हुए जिसमे कहा कि आदिनाथ स्रोत भक्ति रस का अद्वितीय महाकाव्य है। इसकी रचना उस समय हुई। जब राजा भोज के दरबार में कवि कालीदास तथा वररुचि ने सांप्रदायिकता वश आचार्य प्रवर मानतंगु को राजा की आज्ञानुसार पकड़वाकर 48 तालों के अंदर कोठरियों में बंद करवा दिया था। उस समय आचार्य श्री ने आदिनाथ स्रोत की रचना की। उन्होंने कहा कि आदिनाथ स्रोत के प्रभाव ताले जंजीरें अपने आप टूट गए थे। अंत में राजा ने हार स्वीकार कर आचार्य से क्षमा मांगी, उन से प्रभावित होकर जैन धर्म अपना लिया। कार्यक्रम के दौरान निर्मलचंद शिक्षक ने कहा कि इस प्रकार के धार्मिक समारोह से परिवार समाज में एकता त्याग की भावना आती है, और सुख दुख के समय आदमी एक-दूसरे के काम भी आता है। विचार सकारात्मक होते है जिससे समाज, परिवार का उत्थान होता है। गौरतलब हो विरागोदय तीर्थ पर पूज्य गणाचार्य विराग सागर जी महाराज के सानिध्य में  बड़ी प्रतिमाओं का महामस्तकाभिषेक महावीर जयंती अप्रैल तक आयोजित है।

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