आर्यिका मृदुमति प्रवचन श्रृंखला संपन्न rajya ki khabar


आर्यिका मृदुमति प्रवचन श्रृंखला संपन्न rajya ki khabar 

दमोह  - आर्यिका रत्नश्री मृदुमति माता जी के प्रवचनों की प्रभावना श्रृंखला का चतुर्थ चरण सरस्वती शिशु मंदिर पलंदी चौराहा कानेटकर भवन में 29 नवंबर को संपन्न हुआ। विद्यालय के भैया - बहनों ने हाथ जोड़कर अति भाव पूर्वक संस्कृत भाषा में सामूहिक  प्रार्थना कर पूज्य आर्यिका संघ का अभिनंदन किया। संस्था सचिव व व्यवस्थापक श्री लालजी पटैल, अयोजन समिति विद्या मृदु प्रवाह ग्रंथ प्रकाशन समिति के महामंत्री व भारतीय जैन संघठन के जिलाध्यक्ष श्री राकेश जैन पलंदी सहित स्टॉफ के आचार्य व सभी दीदी के अलावा विद्यालय छात्र प्रतिनिधी भैया ने भी पूज्य माता जी संघ के समक्ष श्रीफल भेंटकर आशीर्वाद प्राप्त किया। दीप प्रज्वलन पश्चात बहिनों ने कोरस में सरस्वती वंदना का सुमधुर गान किया। कुमारी जैन ने मधुर कंठ से अपने एकल भजन में भगवान महावीर स्वामी का व गुरु का गुण गान किया।  आर्यिका रत्न पूज्य मृदुमति माता जी ने बड़े गदगद भाव से सरस्वती स्कूल के आचार्यों के द्वारा दी जा रही शिक्षा व भैया - बहिनों में पनप रहे भारतीय संस्कारों की हार्दिक प्रशंसा करी। माता जी ने कहा कि जहां शान्ति है, वहां अहिंसा है। हिंसा तो सुख को छीनने वाली है। प्राकृत भाषा भारत की सबसे प्राचीन भाषा है। फिर संस्कृत और अब हिन्दी। णमोकार मंत्र में 5 पद हैं। पांचों पदों में महान व्यक्तित्व के गुणों को नमस्कार किया गया है। किसी व्यक्ति विशेष को नहीं। संसार का कोई भी प्राणी मरना नहीं चाहता, सभी जीना चाहते हैं। सुख पूर्वक जीवन जीना अहिंसा से ही संभव है। पेड़ों की तरह सभी को दया व परोपकार करना चाहिए। पेड़ पौधे व जानवर वेजुवान हैं, पर बेजान नहीं। उनपर भी दया कार्यक्रम में श्री श्रेणिक बजाज, राकेश पलंदी, पूर्व प्राचार्य  गुणमाला दीदी, श्री विजय जैन आचार्य, संतोष जैन अविनाशी, विनय जैन वनगांव, एड.विकल्प जैन, राजकुमार रानू खजरी, विनय जैन शिक्षक, पियूष जैन सहित कई गणमान्य महिलाएं भी उपस्थित रहीं। कार्यक्रम का सफल संचालन भगवती प्रसाद दुबे आचार्य व श्रीमति रश्मि जैन शिक्षिका (सरस्वती की पूर्व छात्रा) ने किया। पूज्य निर्णयमति माता जी ने प्रश्न मंच किया व सही उत्तर देने वाले भैया - बहनों को श्रेणिक बजाज जी के हाथों पुरुष्कार वितरित करवाए गए।  प्रवचन में आर्यिका मृदुमति माता जी ने आशीर्वाद देते हुए आगे कहा कि भोजन शरीर के लिए, शरीर धर्म के लिए, धर्म आत्म कल्याण के लिए होता है। संकल्प पूर्वक किसी को नहीं मारना। फटाके चलाने से पक्षी मरते व पर्यावरण प्रदूषित होता है। व्यर्थ की हिंसा से बचें। होली के त्यौहार पर गंदगी नहीं चंदन लगाओ। मुर्गा, बकरा आदि पशुओं की बली नहीं देना चहिए। आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने करुणा करके सन 1996 में गौशालाएं खोलने का आभियान प्रारंभ किया था। एवम् मांस निर्यात बंद करो आभियान की भी शुरुआत भी की थी। भोजन करते समय मन में ऐंसे भाव करें, कि संसार का कोई भी अहिंसक प्राणी भूखा न रहे। अठारह महा भाषाएं व 700 लघु भाषाएं होती हैं। हमें अपनी हिन्दी भाषा का सम्मान करना चाहिए। जननी जन्म भूमि के प्रति प्रेम होना चाहिए। गौमाता, सरस्वती माता, के अलावा अहिंसा जगत माता है। अहिंसा पद्धति से ही सभी आनंद में रहते हैं। परोपकार में आनंद है। चाह गई, चिंता गई। जैंसे उपकारी शब्द बोलकर फिर अंत में आचार्य श्री विद्या गुरु को वंदन कर पूज्य माता जी ने वाणी को विराम दिया।

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