शिक्षक दिवस विशेष: विगत 22 वर्षों से राजेश शर्मा कमजोर वर्ग तक पहुंचा रहे कंप्यूटर शिक्षा
पीथमपुर (प्रदीप द्विवेदी) - आज हम आपको पीथमपुर के एक ऐसे शिक्षक के बारे में जानकारी दे रहे जिनका जीवन संघर्षों से भरा रहा लेकिन विद्यार्थियों के जीवन में उजाला करने के लिए अपना जीवन संघर्षों में गुजारा आपको बता दे की राजेश शर्मा ने पीथमपुर में कौशल प्रशिक्षण केंद्र कंप्यूटर शिक्षा की शुरुआत पीथमपुर में सन 2000 से की थी उस समय उद्योगों कंपनियों में कंप्यूटर का एक नया दौर शुरू हुआ था तब कुछ ही कंपनियों में गिनती के कंप्यूटर लगे होते थे कंप्यूटर पर कार्य करने के लिए प्रशिक्षित व्यक्ति की जरूरत होती थी उस समय राजेश शर्मा ने मात्र 50 रुपए मेंटेनेंस शुल्क प्रति माह लेकर कोर्स प्रदान करते थे जिसमे उन्हे किराया , बिजली का खर्च , खुद के आने जाने का खर्च और साथ ही घर खर्च भी चलाना होता था । हमारा लक्ष्य था की निराश्रित और विकलांग बच्चों को हम निशुल्क पढ़ाएंगे और सबसे पहले उन्हे ही नौकरी पर लगवाएंगे और मुझे बताने में खुशी हो रही है की सन 2000 से अभी तक तीन हजार विद्यार्थियों को मेने मेरे खर्च पर हमारे केंद्र पर पढ़ाया है । शर्मा अपने विद्यार्थियों की उद्योगों कंपनियों में नौकरी भी लगवाते थे । शर्मा द्वारा रोजगारमुखी प्रशिक्षण दिया जाता था जिससे कई श्रमिकों को अपनी मनपसंद नौकरी मिलती थी राजेश शर्मा ने बताया की उद्योगों कंपनियों में सबसे ज्यादा नौकरियां दिलवाने वाली पीथमपुर की प्रशिक्षण संस्था बालाजी आईटी प्लस कंप्यूटर है और पीथमपुर में चल रहे लगभग सभी कंप्यूटर एजुकेशन सेंटर के डायरेक्टरों को भी राजेश शर्मा की बालाजी आईटी प्लस कंप्यूटर संस्था द्वारा ही शिक्षा दी गई है । जिन्होंने अब अपना खुद का एजुकेशन सेंटर खोल रखा है । शर्मा ने बताया की साल 2008 में एक संस्था के साथ मिलकर मात्र 225 रूपए प्रतिमाह में रोजगारमुखी प्रशिक्षण जैसे मोबाइल रिपेयरिंग , कंप्यूटर हार्डवेयर , नेटवर्किंग और वेब डिजाइन कोडिंग जैसे कोर्स का भी प्रशिक्षण दिया जाता था जिसका कई निम्न वर्ग के विद्यार्थियों ने लाभ उठाया था इस कोर्स की फीस उस समय बड़े बड़े शहरों में हजारों लाखों होती थी । आपको बता दे कि राजेश शर्मा पीथमपुर से 70 किलोमीटर दूर बड़वाह के रहने वाले है और शर्मा ने सन 2000 से लेकर 2012 तक बड़वाह से रोज रेगुलर डेली अपडाउन किया शर्मा ने बताया की कई बार खराब मौसम की भी मार झेलनी पड़ती थी लेकिन शिक्षा का जिम्मा अगर उठाया है तो फिर आपको आपकी तबियत , बारिश ,धूप गर्मी, ठंड कुछ नही देखना होता है । मैं सुबह बड़वाह से 6 बजे को ट्रेन से निकलता था और 8 बजे महू पहुंचता था और फिर महू से पीथमपुर आता था और फिर रात को 8 बजे पीथमपुर से निकलता था और 9 बजे बड़वाह के लिए ट्रेन होती थी जो बड़वाह 11 बजे पहुचाती थी और दिनचर्या मेरी एक दिन की नही थी और 12 सालो तक यहीं दिनचर्या रही । कई बार ट्रेनें कैंसल हो जाती थी और बड़वाह से पीथमपुर की सिर्फ दो ही बसे चलती थी जिनका समय मेरे समय से नहीं मिल पाता था तो बस से इंदौर तक आना होता था और फिर इंदौर से पीथमपुर आना पड़ता था । जब राजेश शर्मा मात्र 3 साल के थे तभी उनकी की माता जी का निधन हो गया था कई सारी जिम्मेदारी उनके पिताजी पर आ गई थी इसीलिए कम उम्र से ही अपने पिता जी के साथ हाथ बटाने लगे थे ओर बचपन से टेक्नोलॉजी में रुचि रखते थे और कई इलेक्ट्रॉनिक मशीनों को घर में खुद ही सुधार लेते थे । लेकिन कुछ नया करने का सपना उन्हे यहां तक लेकर आया और उन्होंने विद्यार्थियों को नौकरी लायक बनाया , हमारे देश में स्किल्ड युवाओं की जरूरत है लेकिन उस समय स्किल डेवलपमेंट सेंटर ही नहीं थे साथ ही शर्मा ने बताया की हमारा लक्ष्य जल्द से जल्द विद्यार्थी का प्रशिक्षण पूरा करवाकर उसे नौकरी दिलवाना होता था और आज इसी विश्वास पर पीथमपुर में 22 वर्ष पूर्ण हो गए हैं और मुझे आज भी बहुत खुशी है की मेने मेरे जीवन में समाज के लिए छोटा सा योगदान दिया है । राजेश शर्मा अंत में कहा कि असली शिक्षक वही होता है जो दीप की तरह खुद जलकर विद्यार्थियों के जीवन उजाला करता है ।
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