कंडो का उपयोग करना है, इस बार हमें होली में | Kando ka upyog krna hai is bar hame holi main

कंडो का उपयोग करना है, इस बार हमें होली में 

जन जन तक पहुंचाना है संदेश, इस बार हमें होली में

काव्य निशा में देर गव रात तक उड़ा कविताओं का रंग और गुलाल

स्वर्गीय श्री सुदामा प्रसाद पंड्या की पुण्यतिथि पर हुआ आयोजन

कंडो का उपयोग करना है, इस बार हमें होली में

मनावर (पवन प्रजापत) - शहर के मूर्धन्य साहित्यकार व मालवी, हिंदी भाषा के सशक्त हस्ताक्षर स्वर्गीय श्री सुदामा प्रसाद पंड्या के आठवें पुण्यस्मरण के अवसर पर साहित्यिक संस्था शगुन द्वारा मेला मैदान स्थित शिव मंदिर में काव्य निशा का आयोजन कर शब्द सुमन अर्पित किए गए।

आमंत्रित रचनाकारों ने कार्यक्रम में काव्य के विभिन्न रंग बिखेर कर देर रात तक साहित्यसुधि श्रोताओं को बांधे रखा।कार्यक्रम के मुख्य अतिथि अंजड़ से पधारे साहित्यकार अरविंद पंड्या व अध्यक्षता कर रहे कवि बसंत जख्मी ने मां दुर्गा का पूजन कर काव्य निशा का शुभारंभ किया। मशहूर गायक दीपेंद्र ( राजा ) पाठक ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की।अतिथियों का स्वागत राजेंद्र पंड्या ,कुलदीप पंड्या ,बद्रीलाल बडवाया ,शिवम वर्मा ,शौर्य राठौड़ ,यशवंत बडवाया आदि ने किया।

कंडो का उपयोग करना है, इस बार हमें होली में

कोरोना महामारी की परिस्थितियों का चित्रण करते हुए हास्य कवि जगदीश जोशी ने कहा कि सारी दुनिया में धूम मचाई, नहीं छोड़ा कोई कोना, धूमधाम से भारत में भी, आया था कोरोना।भारत की शक्तियों को रेखांकित करते हुए उभरते हुए ओज कवि मंगलेश सोनी ने वीरता का बखान किया कि ऐसा नहीं कि तलवारों में धार नहीं, ऐसा नहीं कि इस मिट्टी से हमको प्यार नहीं। व्यंग्य कवि विश्वदीप मिश्रा ने अपनी रचना में हास्य,  व्यंग्य के रंग उकेरते हुए संदेश दिया कि कंडो का उपयोग करना है  इस बार हमे होली में, जन-जन तक पहुंचाना है संदेश इस बार हमे होली में। श्रंगार रस के कवि दीपक पटवा दिव्य ने हमारे प्यार का तुझमें एहसास बाकी है ,अधूरी रह गई थी वह बात बाकी है सुनाकर माहौल में प्रेम और मस्ती घोल दी। देश के लिए मर मिटने का हौसला प्रदान करती अरविंद पंड्या की कविता आजादी के बंदों का इतिहास हमें दोहराना है, मेरे देशवासी हिंद भूमि की कसम  हमें खाना है ने खूब दाद बटोरी।श्रंगार रस की तेजी से विख्यात होती कवियत्री दीपिका व्यास ने अपनी जादुई आवाज से सबका मन मोह लिया। प्यार के वर्तमान रुप  को अपनी रचना में ढालते हुए कहा कि यार ए दौर हवस हैै कहां प्यार अब ,अब कहां रांझा है अब कहां हीर है ।एक होकर भी हम एक होते नहीं, मैं हूं कन्याकुमारी तू कश्मीर है। वरिष्ठ कवि बसंत जख्मी ने अपनी कविता को तरन्नुम में सुनाते हुए कहा कि ता जिंदगी बांटते रहें जख्मी ओरों को मरहम ,खुद के जख्म रिसते रहे कोई ना गमख्वार मिला।कुलदीप पंड्या ने अपनी रहस्यवादी रचना में सौंदर्य को परिभाषित करते हुए बताया कि नील गगन से परे सौंदर्य को लिखा नहीं जाता ,गहराई समुंदर की हमसे परखा नहीं जाता।कार्यक्रम का उत्कृष्ट संचालन करते हुए सतीश सोलंकी ने अपने गीत में प्रेम को अभिव्यक्त करते हुए बताया कि आपको देखना और देखते रहना, टूटा तारा हो आरती हो ,या कि स्वप्न हो, हर दुआ में आपको ही मांगते रहना। अंत में आभार विनोद पंड्या ने माना।

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