लोक संस्कृति पर्व भगोरिया का स्वागत करें
मनावर (पवन प्रजापत) - आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रो मे भगोरिया पर्व आते ही वासन्तिक छटा मन को मोह लेती है वही इस पर्व की पूर्व तैयारी करने से ढोल ,बांसुरी की धुनों की मिठास कानों मे मिश्री घोल देती है व उमंगो में एक नई ऊर्जा भरती है |व्यापारी अपने-अपने तरीके से खाने की चीजे गुड की जलेबी ,भजिये, खारिये (सेव ) पान ,कुल्फी ,केले ,ताड़ी बेचते साथ ही ,झूले वाले ,गोदना(टैटू ) वाले अपने व्यवसाय करने मे जुट जाते है| जिप,छोटे ट्रक ,दुपहिया वाहन ,बैलगाडी पर दूरस्थ गाँव के रहने वाले समीप भरे जाने वाले हाट (विशेष कर पूर्व से निर्धारित लगने वाले भगोरिया) मे सज-धज के जाते है |कई नोजवान युवक-युवतिया झुंड बनाकर पैदल भी जाते है |ताड़ी के पेड़ पर लटकी मटकिया जिस मे ताड़ी एकत्रित की जाती है बेहद खुबसूरत नजर आती है |खजूर ,आम आदि के हरे भरे पेड़ ऐसे लगते है मानों ये भगोरिया मे जाने वालो का अभिवादन कर रहे हो ,फागुन माह में आम के वृक्षों पर नए मोर और पहाड़ो पर खिले टेसू का ऐसा सुन्दर नजारा होता है मानों प्रकृति ने अपना अनमोल खजाना खोल दिया हो ।
भगोरिया पर्व का बड़े-बूढ़े सभी आनद लेते है |भगोरिया हाट मे प्रशासन व्यवस्था भी रहती है | हाट मे जगह - जगह भगोरिया नृत्य मे ढोल की थाप से धुन - "धिचांग पोई पोई.." जैसी ध्वनि सुनाई देती और बांसुरी ,घुंघरुओं की ध्वनिया दृश्य मे एक चुम्बकीय माहौल पैदा करती है | बड़ा ढोल विशेष रूप से तैयार किया जाता है जिसमे एक तरफ आटा लगाया जाता है |ढोल वजन मे काफी भारी और बड़ा होता है ,जिसे इसे बजाने मे महारत हासिल हो वो ही नृत्य घेरे के मध्य मे खड़ा हो कर इसे बजाता है |एक रंग की वेश भूषा ,चांदी के नख से शिख तक पहने जाने वाले आभूषण ,घुंघरू पावों मे हाथों मे रंगीन रुमाल लिए गोल घेरा बनाकर मांदल व ढोल,बाँसुरी की धुन पर बेहद सुन्दर नृत्य करते है |,प्रकृति ,संस्कृति,उमंग, उत्साह से भरा नृत्य का मिश्रण भगोरिया की गरिमा मे वासन्तिक छटा का ऐसा रंग भरता है की देश ही नहीं अपितु विदेशों से भी इस पर्व को देखने विदेशी लोग कई क्षेत्रों में आते है इनके रहने और ठहरने के लिए प्रशासन द्धारा केम्प की व्यवस्था भी की जाने लगी है लोक संस्कृति के पारम्परिक लोक गीतों को गाया जाकर माहोल मे एक लोक संस्कृति का बेहतर वातावरण बन जाता है साथ ही प्रकृति और संस्कृति का संगम हरे -भरे पेड़ो से निखर जाता है |कई क्षेत्रों में जंगलो के कम होने से व गावों के विस्तृत होने से कई क्षेत्रो मे कम्पौंड के अन्दर ही नृत्य करवाया जाकर भगोरिया पर्व मनाया जाने लगा है ।भगोरिया नृत्य टीम को सम्मानित किया जाता है । देहली में राष्ट्रीय पर्व पर भगोरिया पर्व की झांकी भी निकली जाती है ।कोरोना गाइड लाइन का पालन करके भगोरिया पर्व पर उपयुक्त स्थान मे व्यापारियों द्धारा ज्यादा से ज्यादा संख्या मे खाने पीने की चीजो की दुकान लगाना ,छाँव की बेहतर व्यवस्था ,पीने के पानी की सुविधा,झूले आदि की अनिवार्यता होनी चाहिए ताकि मनोरजन के साथ लोक संस्कृति का आनंद सभी ले सके |झाबुआ /आलीराजपुर /धार /खरगोन ,आदि जिलों के गांवों के भगोरिया पर्व लोक गीतों एवम नृत्य से अपनी लोक संस्कृति को विलुप्त होने से बचाते आरहे है ।इसका हमें गर्व है ।
संजय वर्मा "दृष्टि "
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