मानव जीवन शैली को प्रभावित करता मोबाइल का ज्यादा उपयोग
मनावर (पवन प्रजापत) - दिनांक 14.11.2021 को संजय वर्मा "दृष्टि "125 शहीद भगत सिंग मार्ग मनावर(धार)म.प्र.के शब्दों में मोबाइल पर विचार:
जिन्दगी अब तो हमारी मोबाइल हो गई भागदौड़ मे तनिक सुस्तालू सोचता हूँ मगर रिंगटोनों से अब तो रातें भी हेरान हो गई ।
बढती महंगाई मे बेलेंस डलवाने की आदत हो गई रिसीव काल हो तो सब ठीक है मगर डायल हो तो जैसे जुबां की बातें छोटी हो गई ।
मिस्काल मारने की कला पहले चलती थी जैसे था पकड़म -पाटी की रेस हो गई इसे कहे शब्दों का खेल हम पहले लगने लगता था जैसे शब्दों की प्रीत पराई हो गई ।
पहले -आप पहले -आप की अदा लखनवी हो गई थी यदि पहले उसने उठा लिया तो ठीक मगर मेरे पहले उठाने पर मेरे माथे की लकीरे चार हो गई थी ।
मिस्काल से झूठ बोलने की तो आदत सी हो गई थी बढती महंगाई का दोष अब किसे दे मगर हमारी आवाजे भी तो उधार हो गई ।
दिए जाने वाले कोरे आश्वासनों की भरमार हो गई अब रहा भी तो नहीं जाता मोबाइल के बिना गुहार करते रहने की तो जैसे हमारी आदत हो गई ।
मोबाइल ग़ुम हो जाने से जिन्दगी चकरा सी गई हर एक का पता किस -किस से पूछें बिना नम्बरों के तो जैसे आवाज पहाड़ से टकरा गई ।
*दैनिक आजतक 24 अखबार से जुड़ने के लिए सम्पर्क करे +91 91792 42770*