श्रीमद भागवत कथा का छठवा दिवस
*ईस्वर सच्ची श्रद्धा करुणा से भरा सागर है ,इसको पाने के लिए लोभ लालच निस्वार्थ की भावना मन में रखना ही सच्ची भक्ति है देवी संध्या जी*
भिंड (मधुर कटारे) - ईस्वर की सच्ची भक्ति का असली सुख भगवान कृष्ण ने अपने गोपियों को दिया था जो की निस्वार्थ से भगवान की सेवा करते थे और जब भी भगवान कृष्ण की भक्ति करने के लिए उनके शरण मे जाते थे तो अपनी पीड़ा अपनी परेशानी को छोड़कर सच्चे मन से ईस्वर की मुरली की तान पर मोहित हो जाया करते थे और गोपियों की सूद बुद सब भूल जाया करती थी अपना काम जो करती थी बह भी याद नही रहता था सब उल्टा सीधा कर भगवान की भक्ति में लीन हो जाया करती थी तभी भगवान ने अपने दर्शन गोपियों को कराये अर्थात मनुष्य को कभी भी भगवान से शर्त नही लगानी चाहिए और नाही लालच देख कर भगवान की सेवा करना चाहिए क्यो की ईस्वर तो परम व्रह्म है बह सब कुछ जानता है देवी संध्या जी ने गोपियों की कथा सुनाकर श्रोताओ को गदगद कर दिया ।
श्याम चन्दा है ,राधा चकोरी बड़ी सुंदर है दोनों की जोड़ी
श्यामा रसिया है राधा रसीली
श्याम छलिया है राधा छबीली
बड़ी सुंदर है दोनों की जोड़ी
भजन से सभी श्रोता झूम उठे
भगवान कृष्ण और राधा का वर्णन किया और भगवान कृष्ण ने राधा के साथ नृत्य लीला की ओर अंतर ध्यान हो गए ,हे करुणा मयि राधे हमे बस तेरा सहारा है ,
कोई किसी का नही जहां में झूठी जग की आशा है ,
देवी संध्या जी ने कथा में कहा कृष्ण को पाना है तो सुंदरता रखना जरूरी नही बल्कि भगवान का ध्यान सच्चे मन से करना चाहिए जैसे कुँवजा को भगवान ने सुंदर रूप प्रदान की किया भगवान कृष्ण ने कंश का बध किया ओर अपने माता पिता को कैद से रिहा कराया ,
जाहि के रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिन तैसी,
सुंदर झांकी दिखा कर भगवान कृष्ण रुकमणी का सुंदर विवाह का श्रोताओ को स्मरण कराया ,
देवी संध्या जी ने श्रोताओ को कहा कभी भी भगवान की भक्ति में क्रोध मोह माया का ध्यान नही रखना चाहिए ,तभी हम सच्चे भक्त और ईस्वर की भक्ति मय भव सागर में लीन हो सकते है ।
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