ईश्वर की प्राप्ति धन से नही अपने मन से होती है, अपनी इन्द्रियों को बस में करने बाला ब्यक्ति ही ईस्वर का परम भक्त होता है - देवी संध्या जी | Ishwar ki prapti dhan se nhi apne man se hoti hai

ईश्वर की प्राप्ति धन से नही अपने मन से होती है, अपनी इन्द्रियों को बस में करने बाला ब्यक्ति ही ईस्वर का परम भक्त होता है - देवी संध्या जी

ईश्वर की प्राप्ति धन से नही अपने मन से होती है, अपनी इन्द्रियों को बस में करने बाला ब्यक्ति ही ईस्वर का परम भक्त होता है - देवी संध्या जी

भिंड (मधुर कटारे) - ग्राम जैतपुरामढी में श्रीमद भागवत सप्ताह का तृतीय दिन देवी संध्या जी ने भगवान हनुमानजी की पूछ की कहानी सुनाई ओर कहा भगवान को प्राप्त करने बाले अपने मन मे जिस दिन तीन चीजो का त्याग कर देंगे उसी दिन भगवान ठाकुर जी उसका जीवन संकटो से दूर कर उस भक्त का जीवन  प्रसन्नता से भर देंगे ,पहला त्याग ,नाम कभी भी ब्यक्ति को कुछ दान करते समय अपना नाम नही लेना चाहिए बल्कि भगवान के नाम से अर्पण कर देना चाहिए ,दूषरा ,यस कीर्ति मान ,प्रतिष्ठा इंसान को कभी भी अपनी धन दौलत सुंदरता उच्च पद का गुमान नही करना चाहिए।

ईश्वर की प्राप्ति धन से नही अपने मन से होती है, अपनी इन्द्रियों को बस में करने बाला ब्यक्ति ही ईस्वर का परम भक्त होता है - देवी संध्या जी

भगवान किस को कब कहा मिल जाय ओर कैसे रूप में मिले कोई नही जानता जैसे संवरी को राम मिले ,कुँवरा को भगवान कृष्ण मिले हनुमान जी को संसार मे सबसे बड़ा भक्त बनने का आषीर्वाद मिला ,देवी संध्या जी ने कहा ,भगवान प्रेम में वास करता है ,भगवान को पाने के लिए ईस्वर की कृपा धन पाने के लिए ब्यक्ति को सदा प्रेम का साथ रखना चाहिए प्रेम ही सर्वोपरि है प्रेम  ही भगवत गीता है ,भगवत प्रेम की गाथा है ,इस को समझने के लिए निर्मल मन कर, पवित्र काया होनी चाहिए तब आप भगवान के दर्शन का लाभ प्राप्त कर सकते है। हकीकत रूबरू हो तो अदा कारी नही चलती ,खुदा के सामने बन्दों की मक्कारी नही चलती।

तुम्हारा दबदबा खाली तुम्हारी जिंदगी तक है

कब्र के अंदर किसी की जमीदारी नही चलती ,इसी लिए कहा है हमेसा हमे अपनो के साथ सम्मान प्यार और स्नेह बना कर रहना चाहिए जिससे मरने के बाद हमारी संतान हमारा बंश समाज मे सिर हुटा कर चल सके सिर झुका कर नही ।

देवी जी ने कथा में महिलाओं के लिए कहा ,महिलाओ को अपने पति सास ससुर की बातों का अध्यन अवश्य करना चाहिए अध्यन करने से चिंता खत्म ओर ग्लानि भाव कम होता है ,इस लिए ग्रस्त जीवन चलाने के लिए महिलाओं को पुरुष की मान मर्यादा बनाकर रखने में ही हम ईस्वर को खुश रख सकते है और ईस्वर को प्राप्त कर सकते है।

सुंदर भजन की प्रस्तुति देकर देवी संध्या जी ने भक्तो का मन वृन्दाबन बना दिया ,झूम झूम के सभी भक्त गण गा हुटे।

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