श्री राजेन्द्रसूरि गुरुपद आराधना तृतीय दिन | Shri rajendrsuri gurupad aradhna tritiya din

श्री राजेन्द्रसूरि गुरुपद आराधना तृतीय दिन

पर्युषण पर्व के आठ दिनों में पुरे मनोभावों के साथ धर्म आराधना करें: मुनि पीयूषचन्द्रविजय

श्री राजेन्द्रसूरि गुरुपद आराधना तृतीय दिन

राजगढ़/धार (संतोष जैन) - त्रिदिवसीय श्री राजेन्द्रसूरि गुरुपद आराधना का आज तृतीय दिन है ओर हम दादा गुरुदेव के जीवन वृतांत का श्रवण कर रहेे है । राजगढ़ नगरी दादा गुरुदेव की तपोस्थली है । दादा गुरुदेव ने अपने जीवन में साधना, आराधना, तप और जप करके जो परमाणु एकत्रित किये थे । दादा गुरुदेव ने अंतिम श्वांस के साथ इस उपाश्रय में सारे परमाणु यही पर छोड़े थे । इस पुण्य भूमि को कमजोर समझना हमारे लिये बेइमानी साबित होगा । इस उपाश्रय में साधना आराधना करके श्रावक श्राविका अपनी आत्मा का कल्याण कर रहे है । कुशाग्र बुद्धि वाले इंसान को श्रवण मात्र से ही सबकुछ याद हो जाता है । पूर्व के समय में बुद्धि प्रखर हुआ करती थी । वर्तमान समय में हम केल्कुलेटर, लेपटाप, कम्प्यूटर पर आश्रित हो चूके है । आदिनाथ प्रभु का सुमिरण करते करते दादा गुरुदेव अपने भाई माणकचंदजी के साथ केशरिया तीर्थ पहुंचे । गुरु के सानिध्य में रहने वाले को कभी भी तकलीफ नहीं आती है । उक्त बात गच्छाधिपति आचार्यदेवेश श्रीमद्विजय ऋषभचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. के शिष्यरत्न मुनिराज श्री पीयूषचन्द्रविजयजी म.सा. ने राजेन्द्र भवन में कही । आपने बतलाया कि पहले के जमाने में अपने इधर नियमित रुप से घर के बाहर रंगोली बनायी जाती थी । यह प्रथा अब आलोपित होने लगी है । दक्षिण भारत में आज भी हर घर के बाहर नियमित रुप से रंगोली बनायी जाती है । क्योंकि यह माना जाता है कि रंगोली बनाते है उस घर में लक्ष्मी का वास होता है । हमारा घर साफ सुथरा और भोजन शुद्ध होना चाहिये । साफ सफाई वाले घर में लक्ष्मी का वास होता है । तीर्थो व मंदिर में दर्शन करने जाये तो स्नात्र महोत्सव में जरुर हिस्सा ले । प्रभु भक्ति में कभी भी समझोता नहीं करना चाहिये । प्रभु भक्ति पुरे मनो भावों के साथ होना चाहिये । तभी अक्षय फल की प्राप्ति होती है । दादा गुरुदेव के जीवन में आदिनाथ प्रभु का सबसे ज्यादा उपकार रहा । माता केसर देवी एवं पिता ऋषभदास जी के देवलोकगमन के बाद दादा गुरुदेव के जीवन में बड़ा परिवर्तन आया और वे संसार को छोड़ने का मन बना चूके थे । समय पसार होता गया और आपने मुनि श्री हेमविजयजी म.सा. के वरदहस्तों से रजोहरण प्राप्त कर वैशाख सुदी पंचमी 1904 को उदयपुर में आपने दीक्षा प्राप्त की और मुनि रत्नराजविजय बने । पर्युषण पर्व के आठ दिन हमारे अष्टकर्मो का नाश करने हेतु आ रहे है । पर्व के आठ दिनों में पुरे मनोभावों के साथ धर्म आराधना करें । प्रवचन माला में मुनिराज श्री जिनचन्द्रविजयजी म.सा. भी उपस्थित रहे ।

श्री राजेन्द्रसूरि गुरुपद आराधना तृतीय दिन

आज बुधवार को चत्तारी अठ दस दोय की तपस्वी श्रीमती अंगुरबाला सुनिलजी छजलानी के आठ उपवास का पारणा हुआ । गुरुवार से यह तपस्वी दस उपवास की तपस्या प्रारम्भ करेगें । दर्शित पालेड़ी के वर्धमान तप ओली का पारणा आज सम्पन्न हुआ । त्रिदिवसीय आराधना के तृतीय दिन दादा गुरुदेव श्रीमद्विजय राजेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. की आराधना एकासने के लाभार्थी श्री पारसमलजी शांतिलालजी गादिया टाण्डा वाले का बहुमान व नीमच श्रीसंघ से पधारे संजयजी बेगानी का बहुमान राजगढ़ श्रीसंघ की और से पुखराजजी मेहता परिवार द्वारा किया गया ।

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