श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ अट्ठम तप की आराधना का द्वितीय दिन
बड़े से बड़े दुष्कर कार्य भी अट्ठम तप के प्रभाव से सिद्ध होते है: मुनि पीयूषचन्द्रविजय
राजगढ़/धार (संतोष जैन) - श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ प्रभु की उपासना में सभी आराधक अट्ठम तप की दूसरे पायदान की ओर अग्रसर हो चूके है । आज आराधना का दूसरा दिन है ओर सभी आराधकों का दूसरा उपवास सुखशातापूर्वक हो रहा है । पुरुषादानी पार्श्वनाथ प्रभु की उपासना साधक को सभी सिद्धियां प्रदान करती है । उत्सर्पिणी काल में व्यक्ति के भाव उपर की ओर जाते है एवं अवसर्पिणी काल में व्यक्ति के भाव निरन्तर नीचे की ओर आते है, इस काल में व्यक्ति की श्रद्धा डगमगाने लगती है । तपस्या के साथ जाप से सिद्धि की प्राप्ति होती है । बड़े से बड़े दुष्कर कार्य भी अट्ठम तप के प्रभाव से सिद्ध हो जाते है । शरीर में यदि शक्ति है तो व्रत पच्चखाण नियम लेकर तपस्या करना चाहिये क्योंकि तप के प्रभाव से हमारे निकाचित कर्म नष्ट हो जाते है । इसलिये साधक तप के माध्यम से अपनी आत्मा को निर्मल बनाते है । साधना के क्षेत्र में कठिनाईयां साधक को आती है पर इससे डरने की जरुरत नहीं है । यदि कष्ट या परेशानी से नहीं डरे तो सिद्धियां अवश्य प्राप्त होगी । उक्त बात श्री राजेन्द्र भवन राजगढ़ में गच्छाधिपति आचार्य देवेश श्रीमद्विजय ऋषभचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. के शिष्यरत्न मुनिराज श्री पीयूषचन्द्रविजयजी म.सा. ने कही । आपने कहा कि हमारा जीवन सादगीपूर्ण होना चाहिये । अट्ठम तप के अंतिम दिन साधक का शरीर देवारिष्ठ बन जाता है, साधक की रक्षा शासन के रक्षक देव करने लगते है । जबतक मुक्ति प्राप्त ना हो तबतक हमें प्रभु का सानिध्य मिलता रहे ऐसे भाव हमारे रहना चाहिये । जो श्रद्धावान होकर, मन में विनय विवेक रखकर नियमित रुप से क्रियावान रहे वही श्रावक-श्राविका की श्रेणी में आते है । हम जीवन में 18 प्रकार के पाप करते है पर उन पापों से मुक्ति प्राप्त करने का मार्ग कभी किसी आचार्य भगवन्त या मुनि भगवन्तों से पुछना चाहिये ।
आचार्य श्री ऋषभचन्द्रसूरिजी की द्वितीय मासिक पुण्यतिथि पर हुआ गुणानुवाद
गच्छाधिपति आचार्यदेवेश श्रीमद्विजय ऋषभचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. के शिष्य मुनिराज श्री पीयूषचन्द्रविजयजी म.सा. मुनिराज श्री जिनचन्द्रविजयजी म.सा. एवं साध्वी श्री तत्वलोचनाश्रीजी म.सा., हर्षवर्द्धनाश्रीजी, वैराग्ययशाश्रीजी, तत्वश्रद्धाश्रीजी की निश्रा में आचार्यश्री की द्वितीय मासिक पुण्यतिथि पर गुणानुवाद सभा हुई जिसमें साध्वी श्री तत्वश्रद्धाश्रीजी ने कहा कि गुणों को जीवन में ग्रहण के लिये गुणानुवाद किया जाता है, आचार्यश्री ने सम्यकदर्शन प्राप्त कर लिया था । मिथ्या दर्शन से व्यक्ति के जीवन में तनाव उत्पन्न होता है । सम्यकदर्शन मोक्ष की गाड़ी का कन्फर्म टिकट है । उन्होंने अपने जीवन में प्राणी मात्र के लिये उपकार के कार्य किये थे उनके वचन सिद्ध होते थे । इस अवसर पर साध्वी श्री वैराग्ययशाश्री जी ने भी अपने भावों को प्रकट करते हुये कहा कि आचार्यश्री हमेशा आत्म चिन्तन करते थे और उसी चिन्तन के बल पर हर व्यक्ति पर उपकार की भावना रखते थे । भले ही वे शरीर से अस्वस्थ थे पर शरीर की चिन्ता नहीं करके हमेशा जिन शासन की सेवा में लगे रहते थे । हमें उनके गुणों को जीवन में ग्रहण करना चाहिये । कार्यक्रम में दिवी एवं दीती मोदी ने गीत की प्रस्तुति दी ।
श्री मोहनखेड़ा तीर्थ में आचार्यश्री की द्वितीय मासिक पुण्यतिथि निमित्त दोपहर में श्री राजेन्द्रसूरि अष्टप्रकारी पूजा रखी गयी एवं प्रसादी का वितरण किया गया ।