नवदिवसीय नवकार महामंत्र की आराधना का चतुर्थ दिवस
नवकार का ध्यान करे, सुख में लीन ना बने, दुःख में दीन ना बने: मुनि पीयूषचन्द्रविजय
राजगढ़/धार (संतोष जैन) - नवकार आराधना के चौथे दिन मुनिश्री ने कहा कि नवकार महामंत्र के चौथे पायदान पर णमो उवज्झायाणं पद आता है । यह पद गुरु तत्व है इस पद के 25 गुण होते है ओर इसका वर्ण हरा होता है । उपाध्याय भगवन्त स्वयं भी पढाई करते है और साधु संतों को भी अध्ययन करवाते है । समुद्र अपनी मर्यादा का उल्लंघन कर सकता है मगर नवकार महामंत्र जिसके जीवन में होता है उसका साथ कभी नहीं छोड़ता है । यह तारणहार ओर शाश्वत सिद्ध महामंत्र है इसे सिद्ध करने की जरुरत नहीं होती है । हमें इसके महत्व को समझना है । जब हम तकलीफ में होते है तब इसे याद करते है ओर समझते थे । यह मुसीबत में भी साथ नहीं छोड़ता है । उक्त बात गच्छाधिपति आचार्यदेवेश श्रीमद्विजय ऋषभचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. के शिष्यरत्न मुनिराज श्री पीयूषचन्द्रविजयजी म.सा. ने राजेन्द्र भवन राजगढ़ के प्रवचन में कही । आपने कहा कि हमें सुख में भी इसका सुमिरन करना चाहिये । सुख में लीन ना बने दुःख में दीन ना बने । दुःख में ही अपने ओर पराये की पहचान होती है । जिस प्रकार हम विपत्ती के लिये धन संग्रह करते है । उसी प्रकार हमें बूरे समय के लिये धर्म को भी संग्रहित करना चाहिये । जब भाव बढ़ेगें तभी प्रभाव देखने को मिलेगा । नवकार का प्रभाव अनादिकाल से चला आ रहा है । इस महामंत्र को हमें ह्रदय में विराजित करना है । अध्यात्मिक जगत में धर्म की कीमत है । हम शरीर से प्रवचन में उपस्थित है और हमारा दिल घर या दुकान के व्यापार व्यवसाय में है तो प्रवचन में बैठने का कोई ओचित्य नहीं । हमारे यहां भी पश्चिमी सम्भयता ने प्रवेश कर लिया है । हम फ्रैडशिप डे मनाने लगे है पर हमारे जीवन में कल्याण मित्र होना चाहिये जो हमारे चरित्र को सुधारने की प्रेरणा दे सके । राजा के पास मंत्री समझदार होना चाहिये । जिसके रोम-रोम में महावीर बस जाते है वह जीव दीक्षा लेने के योग्य हो जाता है । भावावेश में कोई निर्णय नहीं लेना चाहिये । भावावेश में लिये गये निर्णय के परिणाम गम्भीर होते है । हमेशा सोच समझकर ही बोलना चाहिये ।
आज मंगलवार को प्रवचन के दौरान श्री अमझेरा पार्श्वनाथ तीर्थ ट्रस्ट के ट्रस्टी श्री मनोहरलाल कांग्रेसा, दिलीप फरबदा, दिनेश रोकड़ी एवं सुरेश कांग्रेसा ने राजगढ़ श्रीसंघ को निमंत्रण देते हुये कहा कि आचार्य नवरत्नसागरसूरीश्वरजी म.सा. के शिष्यरत्न आचार्य श्री विश्वरत्नसागरसूरीश्वरजी म.सा. के दिशा निर्देशन में 23 अगस्त 2021 को नूतन जिन मंदिर हेतु प्रथम टांकणा एवं भट्ट मुहूर्त आयोजित किया गया है इस कार्यक्रम में राजगढ़ श्रीसंघ की उपस्थिति हेतु निवेदन किया । नवकार महामंत्र के चौथे दिन एकासने का लाभ श्री रतनलाल दीपचंदजी जैन पीपलीवाला परिवार राजगढ़ की और से लिया गया । लाभार्थी का बहुमान राजगढ़ श्रीसंघ की ओर से बहुमान के लाभार्थी मेहता परिवार ने किया । मुनिश्री की प्रेरणा से नियमित प्रवचन वाणी का श्रवण कर श्रीमती पिंकी सुमितजी गादिया राजगढ़ ने अपनी आत्मा के कल्याण की भावना से महामृत्युंजय तप प्रारम्भ किया था, आज उनका 26 वां उपवास है ।