विधिक अनुसंधान, विकास पद्धति एवं तकनीक विषय पर ऑनलाइन कार्यशाला का आयोजन | Vidhik anusandhan vikas evam takniki vishay pr online karyshala ka ayojan

विधिक अनुसंधान, विकास पद्धति एवं तकनीक विषय पर ऑनलाइन कार्यशाला का आयोजन

विधिक अनुसंधान, विकास पद्धति एवं तकनीक विषय पर ऑनलाइन कार्यशाला का आयोजन

इंदौर (राहुल सुखानी) - शासकीय नवीन विधि महाविद्यालय, इन्दौर में मध्यप्रदेश उच्च शिक्षा गुणवत्ता सुधार परियोजना के अन्तर्गत सात दिवसीय (दिनांक 04/02/21 से 11/02/21 तक) विधिक अनुसंधान, विकास पद्धति एवं तकनीक विषय पर ऑनलाइन कार्यशाला का आयोजन हो रहा है।

शासकीय नवीन विधि महाविद्यालय, इन्दौर में मध्यप्रदेश द्वारा विधिक अनुसंधान, शिक्षण पद्वति के अन्तर्गत ऑनलाइन कार्यशाला का पॉचवां दिन 09/02/2021 को संपन्न हुआ। 

कार्यशाला के आरंभ मे महाविद्यालय की प्रोण् श्वेता जैन द्वारा ऑनलाइन कार्यशाला में उपस्थित मुख्य वक्ता डॉ. वी. एस. चौबे (Professor and H.O.D department of Law, SGB,Amrawati University) का स्वागत करते हुए अतिथि परिचय का वाचन किया गया। आज ऑनलाइन कार्यशाला कार्यक्रम के मुख्य वक्ता डॉ. वी. एस. चौबे ने Steps in legal Reaseach विषय पर व्याख्या देते हुए कहा कि विधिक अनुसंधान के चार चरण होते है: 1. शोध विषय का चयन 2. शोध विषय से संबंधित शोध सामग्री का एकत्रीकरण 3. साहित्य का पुनरावलोकन 4. शोध पद्धति के आधार पर आंकड़ों का संकलन एवं उनका विषण। डॉ. चैबे ने शोध के सम्बन्ध में अपने व्याख्यान में कहा कि शोधार्थी को सबसे पहले अपने शोध विषय का चयन करना चाहिये। शोध विषय के चयन के सम्बन्ध में उन्होनें एक सुन्दर उदाहरण दिया कि जब आप भूखण्ड खरीदने या मकान बनवाने के लिये जाते है तो आपके मस्तिष्क में अनेक प्रकार के पैरामीटर काम करते है। मकान बनवाने के लिये आपको अपनी आर्थिक क्षमता, भूखण्ड की खोज, मकान की डिजाईनिंग और मकान बनाने के लिये कच्ची सामग्री एकत्रीकरण तथा मकान की लोकेषन आदि विषयों पर विचार करना होता है। इसी प्रकार शोधार्थी के मन में जब किसी विषय पर शोध करने की जिज्ञासा उत्पन्न होती है तो उसके लिये न्यूनतम योग्यता के साथ-साथ अपने शोध विषय का चयन करने की भी क्षमता होनी चाहिये। द्वितीय चरण में सर ने कहा कि जब आपके शोध विषय का चयन हो जाता है तो उस शोध विषय से संबंधित जो सामग्री है, उसको एकत्रित करना पडता है। उसके उपरान्त तीसरे चरण के अन्तर्गत शोधार्थी के पास उपलब्ध शोध साहित्य का पुनरावलोकन किया जाता है और इस पुनरावलोकन के पश्‍चात् शोधार्थी द्वारा यह देखा जाता है कि शोध विषय पर शोध करने के लिये किस पद्धति का उपयोग किया जा सकता है और उस शोध के लिये परिकल्पना के महत्व को भी बताया गया। परिकल्पना के महत्व को बताते हुए उन्होंने कहा कि परिकल्पना प्रत्येक शोध के लिये आवष्यक होती है। इसके बिना प्रत्येक शोधार्थी के अन्दर भटकाव की स्थिति बनी रहती है। इस सम्बन्ध में उन्होनें चिकित्सक व रोगी का उदाहरण दिया और कहा कि जब रोगी डॉक्‍टर के पास जाता है तो अपनी बीमारी के लक्षणों के बारे में बताता है और डॉक्‍टर उन लक्षणों के आधार पर विभिन्न परीक्षण कराने को कहता है। यदि डॉक्‍टर रोगी की बीमारी के लक्षण को सुने बिना सारी जाँचों को करवाने लगे तो ऐसी स्थिति बन जायेगी कि डॉक्‍टर जाँचों के बाद भी किसी निर्णय पर नहीं पहुँच पायेगा और मरीज से कहेगा कि तुम्हे विभिन्न प्रकार की बीमारियाँ भी हो सकती है और किसी ठोस निष्कर्ष पर पहुँचे बिना मरीज का ईलाज करना संभव नही होगा। इसी प्रकार परिकल्पना भी शोधार्थी को शोध विषय के सम्बन्ध में एक निश्चित दिशा देती है जो शोध के उपरान्त एक निश्चित निष्कर्ष पर पहुँचने में सहायक हाती है। आगे चौबे सर ने अपने व्याख्यान में कहा कि जब शोध परिकल्पना का निर्माण हो जाता है तो उसके उपरान्त शोध के लिये कौनसी पद्धति अपनायी जाये- जैसे सैद्धान्तिक पद्वति या गैर सैद्धान्तिक पद्वति। जब शोधार्थी द्वारा गैर सैद्धान्तिक पद्धति का अपने शोध में प्रयोग किया जाता है तो उसके सामने सर्वप्रथम आंकड़ों के संग्रह और चयन की बात आती है।

शोधार्थी को अपना सर्वेक्षण सटीक आंकड़ों के आधार पर करना चाहिये । इस सम्बन्ध में उन्होनें ऑनर  किलिंग का उदाहरण देते हुए कहा कि जब शोधार्थी इस विषय पर शोध करता है तो सबसे पहले हमें शोध सामग्री की उपलब्धता पर विचार करना होगा। हमें यह भी विचार करना होगा कि ऑनर किलिंग पर कोई विधायन है या नही है और समाज के लोगों का इस पर क्या विचार है? इन पैरामीटर के बिना शोधार्थी द्वारा शोध करना असंभव हो जायेगा। शोध के प्रारंभ में शोधार्थी अपने क्रान्तिकारी उत्साह के कारण किसी कठिन शीर्षक का चयन कर लेता है जिससे उसे बाद में भारी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। अतः शोधार्थी को इस उत्साह के स्थान पर सामान्य समझ के आंकडों की उपलब्धता जैसे- डिसीजनल ज्युरिसप्रूडेन्स की उपलब्धता आदि पर ध्यान देना चाहिये। उनके अनुसार शोध एक पानी पर तैरते हुए जहाज के समान है, जिसमें जरा सा भी छेद हो जाने पर जहाज को डूबो सकता है। साथ ही साथ शोधार्थी को शोध विषय की सामाजिक उपयोगिता पर भी ध्यान देना चाहिये। अगर शोध समाज के लिये अनुपयोगी है तो वह केवल सैद्धान्तिक स्वप्नलोक की तरह हो जायेगा । उन्होनें सैद्धान्तिक शोध पद्धति की अपेक्षा सर्वेक्षणात्मक शोध पद्धति पर विषेष जोर दिया और कहा कि हमें अपने शोध में प्रायमरी या प्राथमिक आंकड़ों पर ही निर्भर होना चाहिये। निर्णीत विधिषास्त्र की बात करते हुए उन्होंने कहा कि किसी निर्णय में न्यायाधीषों की यह व्यक्तिगत धारणा अधिक काम करती है कि उनके समक्ष प्रस्तुत मामलों में किस धारणा के आधार पर वह निर्णय दें। अतः न्यायालय के निर्णयों पर विचार करते समय शोधार्थी द्वारा निर्णयों का आलोचनात्मक अध्ययन करना भी आवष्यक है। सैद्धान्तिक शोध पद्धति को समझाते हुए उन्होनें हेन्स केल्सन के विधि के विषुद्ध सिद्धान्त का उदाहरण देते हुए कहा कि केल्सन के मूल मानक की संकल्पना में त्रुटि रह जाने के कारण ही इस सिद्धान्त की बहुत अधिक आलोचना हुई क्योकि मानकों की अषुद्धता के विषय में केल्सन ने कभी सोचा नही था। इस कारण से उनका सिद्धान्त केवल एक सैद्धान्तिक व्यायाम बनकर रह गया और अधिक दिनों तक टिक नही पाया। चतुर्थ चरण में सर ने आंकड़ों के संग्रहण और विष्लेषण के बारे में कहा कि आंकडो के संग्रहण से पूर्व हमें आंकडों की प्रकृति, अपनी आवश्‍यकता और आंकडों की उपयोगिता पर ध्यान देते हुए आंकड़ों का परीक्षण करना चाहिये। इसके उपरान्त शोध डिजाईन पर चर्चा की गई। अन्त में शोध विषय की परिकल्पना के आधार अपने शोध के निष्कर्ष में परिकल्पना को सिद्ध या असिद्ध किया जा सकता है ।

ऑनलाइन कार्यशाला कार्यक्रम के मुख्य संरक्षक डॉ.सुरेश सिलावट (अतितिरक्त संचालक उच्च शिक्षा विभाग इन्दौर संभाग), संरक्षक डॉ. इनामुर्रहमान (प्राचार्य शासकीय नवीन विधि महाविद्यालय इन्दौर), निदेशक डॉ. निर्मल कुमार पगारिया संयोजक प्रो. नरेन्द्र देव एवं सहसंयोजक. डॉ. मोज़िज़ मिर्जा़ बेग, प्रो. पवन कुमार भदौरिया, सचिव- प्रो.विपिन कुमार मिश्रा, संयुक्त सचिव, प्रो. फिरोज अहमद मीर, प्रो. सुहैल वाणी एवं आयोजन समिति के सदस्य डॉ. सुनीता असाटी, प्रो.जतिन वर्मा, प्रो.राहुल सुखानी एवं तकनीकी टीम में श्री राजेश वर्मा एवं शम्भू मेहता द्वारा इस कार्यशाला को सफल बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया गया । कार्यक्रम के अन्त में आभार डॉ. मिर्जा मोजिज बेग द्वारा व्यक्त किया गया।

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