स्वामी विवेकानंद कॅरियर मार्गदर्शन के अधीन व्याख्यान श्रंखला में "शोध लेखन पर कार्यशाला" का ऑनलाइन वेबीनार संपन्न हुआ
इंदौर (राहुल सुखानी) - शासकीय नवीन विधि महाविद्यालय इन्दौर द्वारा स्वामी विवेकानंद कॅरियर मार्गदर्शन के अधीन एक ऑनलाइन वेबीनार का अयोजन दिनांक 16 जनवरी 2021 को समय प्रातः 10:30 प्रारंभ होकर दोपहर के 1:00 बजे समापन किया गया ।
उक्त वेबीनार के संबंध में महाविद्यालय के डाॅ इनामुर्रहमान जी ( प्राचार्य, शासकीय नवीन विधि महाविद्यालय इंदौर) द्वारा जानकारी प्रदत्त की गई ।
स्वामी विवेकानंद कॅरियर मार्गदर्शन के अधीन ऑनलाइन वेबीनार का विषय ‘‘ शोध लेखन पर कार्यशाला ’’ निर्धारित किया गया। उक्त ऑनलाइन वेबीनार कार्यक्रम में अधिक मात्रा में विधि के क्षेत्र में शिक्षा प्राप्त कर रहे विद्यार्थी द्वारा विभिन्न स्थानों से अपनी उपस्थित दर्ज करा कर कार्यक्रम में सहभागिता दी गई |
ऑनलाइन वेबीनार कार्यक्रम में उपस्थित मुख्य वक्ता के रूप में श्रीमान हिमांशु जी पांडे (एसोसिएट प्रोफेसर ,एन •एल•यू• नागपुर ) ने अपने उद्बोधन में विद्यार्थियों को शोध लेखन व रिसर्च पेपर से संबंधित विषयों पर तकनीकी ज्ञान से अवगत कराया जिसके अंतर्गत उन्होंने बताया कि शोध पत्र के लिए सबसे महत्वपूर्ण विषय "नवीनता" है |यदि किसी शोध पत्र में नवीनता ना हो तो वह शोध पत्र वैश्विक स्तर पर स्वीकार्य नहीं होगा| इसी कारण शोध पत्र में नवीनता ना होने से भारत में शैक्षणिक शोध स्तर काफी गिर चुका है |जहां पर शोधार्थी पूर्व से संबंधित विचारों को ही अपने शोधपत्र में सम्मिलित कर शोध विषय के अंतर्गत लाते हैं जो कि वास्तविक रूप में शोध ना होकर विभिन्न विचारों का संकलन है| शैक्षणिक शोध स्तर पर जो वर्तमान समय में गिर रहा है उसको देखते हुए समय की यह मांग है कि सही अर्थ में शोधार्थी शोध करें और यह शोध समाज के लिए लाभदायक सिद्ध हो |
शासकीय नवीन विधि महाविद्यालय के प्राचार्य एवं स्वामी विवेकानंद केरियर मार्गदर्षन प्रकोष्ठ के संरक्षक डाॅ. इनार्मुरहमान द्वारा अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में शोध विषय पर कार्यशाला में विद्यार्थियों को सम्बोधित करते हुए कहा कि विधि के क्षेत्र मे शोध एक ऐसी प्रक्रिया है जो एक अधिवक्ता और एक न्यायाधीश प्रतिदिन करता है। राजा जार्ज तृतीय को उद्धृत करते हुए प्राचार्य महोदय ने बताया कि एक अच्छा अधिवक्ता वह नही है जिसे कानून का ज्ञान है बल्कि वह है जो कानून की तलाश कर सकता है। एक वकील को ज्ञान और कौशल की आवष्यकता होती है जिससे वह अपने समक्ष के मामले मे तैयारी कर सकेे। इसके साथ ही उसे अपने तथ्यों की स्थिति को अच्छी तरह समझते हुए उन्हें विद्यमान कानून के प्रकाष मे लागू करना होता है। इसके लिए वह बातचीत और मध्यस्थता की प्रक्रिया को अपनाता है और अन्त में सिविल वाद संस्थित करता है। प्रत्येक स्थिति मे उसे शोध से ही गुजरना होता है और विद्यमान कानूनी नियम मे वह प्राथमिक एवं द्वितीयक स्त्रोतो का विष्लेषण करते हुए अपनी समस्या का समाधान तलाशता
है। वह तथ्यों की कहानी को विधिक दावें के रूप में स्थापित करते हुए विवाद्यक निर्मित करता है और अपनी समस्या के निदान के लिये एक उचित समाधान तलाशने में मदद करता है और इस प्रक्रिया में वह विषय के सम्बन्ध में सही विधि केे तलाश में हर पल सोचता है एवं उनकी उपयोगिता बताते हुए विश्वसनीय विधिक सिद्धान्तों का विष्लेषण करता है अर्थात शोध प्रक्रिया में तथ्यों का विष्लेषण एवं उन तथ्यों को विधि के साथ लागू करता है और अपनी शोध समस्या का समाधान तलाषता है तथा नवीन प्रकार का ऐसा प्रयोग प्रस्तुत करता है जो समाज के लिये उपयोगी हो और आगे के लिये दिशा निरूपित करें। विधि प्राध्यापकों, विधि षिक्षार्थियों एवं शोधार्थियों को विधि के क्षेत्र में मौलिक कार्य करने के लिये प्रेरित करते हुए प्राचार्य महोदय ने कहा कि शोधार्थी ऐसा शोध करे जो समाज के लिये उपयोगी हो और आगे के लिये दिशा निरूपित करता हो ।
इस कार्यक्रम में वरिष्ठ प्राध्यापक डाॅ. उषा तिवारी एवं मध्य प्रदेश के जाने माने इतिहासकार डाॅ. जे.सी. उपाध्याय भी उपस्थित थे। कार्यक्रम के अंत में प्रो.विपिन कुमार मिश्रा द्वारा आभार व्यक्त किया गया। जिसमें इस कार्यक्रम को सफल बनाने में स्वामी केरियर मार्गदर्षन प्रकोष्ठ की सदस्या प्रो. श्वेता जैन एवं सदस्य प्रो. सुहैल अहमद वाणी का महत्वपूर्ण योगदान रहा। इस कार्यक्रम का संचालन एलएल.एम. पूर्वार्द्ध के छात्र आदित्य श्रीवास्तव एवं बी.ए.एलएल.बी. चतुर्थ वर्ष के छात्र प्रवीण मिश्रा द्वारा किया गया ।
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