थांदला नगर परिषद की अनियमित्ताओ के चलते पत्रकार समिति का धरना प्रदर्शन
थांदला (शहादत खान) - जमीन को नगरपरिषद के माध्यम से जमीन बेचना ओर मोटा माल अंदर करने का खेल थांदला में हो चुका है। जिसकी शिकायत हुई, आश्वासन मिला, जांच हुई और जांच में शिकायत सही भी पाई गई। तहसीलदार ने नगरपरिषद द्वारा अवैध रूप से निर्माण की हुई दुकान ओर निर्माणाधीन दुकानों को हटा कर शासकीय भूमि को मूलस्वरूप में वापिस लाने के आदेश जारी कर दिए है और साथ ही पांच हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया है। वहीं अनियमित्ताओ के चलते निलंबित हो चुके राजस्व निरीक्षक अशोक चौहान के पास मुख्य नगरपालिका अधिकारी का प्रभार है। अशोक चौहान मुख्य नगरपालिका अधिकारी ने एसडीएम से अपील की है कि, उस भूमि पर स्वत्व के लिए हमने थांदला सिविल न्यायालय में वाद लगाया है। जिसका मतलब यह तय हुआ कि, अभी यह भूमि नगरपरिषद के स्वत्व की नही है। कलेक्टर से पत्रकारों का दल एक से ज्यादा बार मिल चुका है, कलेक्टर का कहना है कि, ये अवैध निर्माण हटाया जाना चाहिए मैं एसडीएम को बोलता हूं। लेकिन अभी तक एसडीएम ने अवैध निर्माण हटाने की कोई कार्रवाई नही की, यह आधा सत्य है।
कलेक्टर ने न मौखिक रूप से एसडीएम को निर्देश दिए थे न ही लिखित में। वहीं एसडीएम दबी जुबान से बोलते है, मैं क्या करूँ, मेरे ऊपर कलेक्टर है, वो आदेश कर देंगे तो मैं अपनी ड्यूटी ईमानदारी से कर दूंगा। यह प्रकरण उच्च न्यायालय में भी चलाया गया, ये ही एसडीएम, कलेक्टर, तहसीलदार पक्षकार थे जिन्होंने उच्च न्यायालय को तहसीलदार का वही आदेश अपने जवाब में बताकर सन्तुष्ट कर दिया कि, हमने उचित कार्रवाई कर दी है। लेकिन उस आदेश का पालन आज तक नही हुआ, दो महीने हो गए।
बता दे कि, नगरपरिषद ने नगर के मध्य की एक भूमि बाले-बाले बेची है, जिस पर भी बवाल चल रहा है। नगरपरिषद कहती है हमने सभी कार्रवाई नियमानुसार लॉकडाउन समय मे पूरी कर ली थी। लेकिन गांव के लोगो को पता नही है कि, कब विज्ञप्ति निकाली गई, कब डंडी पीटी ओर कब ये जगह बेची गई। पत्रकार इन मुद्दों को कई महीनों से समाचार पत्रों में प्रकाशित भी कर रहे है लेकिन जिम्मेदार अभी भी मोन बने बैठे है। जिस पर पत्रकार आंदोलित हुए, सांकेतिक धरने का एक चरण पूरा हो गया दूसरा चरण आज से अनिश्चित काल के लिए चालू है।