किसानों की मांगे जायज, केंद्र पुनर्विचार करे | Kisano ki mange jayaz kendr punarvichar kare

किसानों की मांगे जायज, केंद्र पुनर्विचार करे

किसानों की मांगे जायज, केंद्र पुनर्विचार करे

पीथमपुर (प्रदीप द्विवेदी) - पीथमपुर  इंदौर जिला ग्रामीण  सपाक्स पार्टी के पूर्व अध्यक्ष अशोक मिश्रा ने  बतलाया  की भोपाल 17 दिसंबर गुरुवार को केंद्र सरकार ने जो तीन कृषि कानूनों में जो संशोधन किए उसके संबंध में केंद्र सरकार के तमाम स्पष्टीकरण एवं प्रयासों के बावजूद किसान आंदोलन रत है एवं भारी ठंड के बाद भी वे दिल्ली बार्डर पर जुटे हुए हैं। इसका मुख्य कारण इन बिलों में संशोधन के पूर्व किसान संगठनों से, विपक्षी दलों से एवं राज्यों से चर्चा या विचारविमर्श नहीं करना है। सपाक्स पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ हीरालाल त्रिवेदी ने किसानों की मांगें जायज ठहराते हुए प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा  कि इन कृषि कानूनों में संशोधन से वर्तमान में जो मंडी व्यवस्था है वह धीरे-धीरे समाप्त हो जाएगी क्योंकि कारपोरेट जगत के बड़े धुरंधर अपनी मंडी स्थापित करेंगे तथा उनमें किसान को जाकर माल बेचना पड़ेगा परंतु वहां पर खरीदार एक ही होगा, कोई प्रतिस्पर्धा नहीं होगी वह मनमाने भाव पर खरीदेगा।  वर्तमान में जो मंडी व्यवस्था है वह व्यापारियों एवं किसानों के प्रतिनिधि एवं सरकार तीनों मिलकर चलाते हैं इसलिए उसमें आम जनता को एवं किसान को विश्वास है। 

किसानों की मांगे जायज, केंद्र पुनर्विचार करे

केंद्र सरकार का दूसरा तर्क है  कि किसान अपना माल कहीं भी बेच सकेंगे। किसान तो आज भी अपना माल कहीं भी बेचने के लिए स्वतंत्र है, इसमें कोई नई बात नहीं है। परंतु जब निजी मंडिया अपने मनमाने भाव पर खरीदेंगे तब किसान उन्हें वहीं बेचने  को मजबूर होंगे, क्योंकि उसकी क्षमता ट्रांसपोर्ट वहन कर बहुत दूर जाने की नहीं है।

जहां तक एमएसपी का संबंध है। केंद्र सरकार कह रही है कि यह जारी रहेगी परन्तु इसका इन संशोधन में कोई उल्लेख नहीं है, जिससे किसानों में संदेह होना स्वाभाविक है। 

जहां तक कांटेक्ट फॉर्मिंग का प्रश्न है यह कारपोरेट जगत भी कर सकता है किसान भी कर सकता है। यहां तो दोनों की इच्छा पर निर्भर है। परंतु कांट्रैक्ट फार्मिंग के की जो शर्ते हैं वह इस प्रकार होना चाहिए कि किसान को कभी भूमि से वंचित न किया जा सके इसका कानून में कोई उल्लेख नहीं है और यह बिंदु भी किसानों में शंका पैदा कर रहा है।                    

यह सही है कि वर्तमान मंडी व्यवस्था राज्य कानूनों के अंतर्गत है जो समाप्त नहीं की गई है। परंतु इनके संरक्षण का भी केंद्रीय कानून में कोई उल्लेख नहीं है। कृषि केवल केंद्र का विषय नहीं है यह राज्यों का भी विषय है अतः इस संबंध में राज्यों से परामर्श नहीं होने पर राज्यों में असंतोष है। यद्यपि केवल गैर भाजपा शासित राज्य ही असंतोष व्यक्त कर रहे है।    

उपरोक्त तथ्यों से यह स्पष्ट है कि केंद्र सरकार को फिर से किसान संगठनों एवं सभी राज्यों से विचार विमर्श कर इस प्रकार से संशोधन करना चाहिए कि किसानों का हित सर्वोपरि हो। जो वर्तमान मंडी व्यवस्था में छोटे और मध्यम व्यापारी जुड़े हुए हैं और वह आपसी प्रतिस्पर्धा से अनाज क्रय कर बड़े कारपोरेट घराने तक पहुंचाते हैं उनके संरक्षण की व्यवस्था भी होना चाहिए। वर्तमान मंडी व्यवस्था में कई लोगों को छोटा बिजनेस भी मिलता है और रोजगार भी मिलता है इन तथ्यों को भी विचार में लेना चाहिए। मुझे उम्मीद है केंद्र सरकार इस संबंध में जिद पर नहीं अड़ेगी तथा सभी पक्षों से विचार-विमर्श कर ऐसा समाधान कारक कानून बनाया जाए जिससे इस देश में आगे चलकर कोई विवाद की स्थिति ना रहे।

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