भाव सहित वंदना से श्रद्धा उत्पन्न होती है - आचार्य ऋशभचन्द्रसूरि | Bhav sahit vandana se shaddha utpann hoti hai
भाव सहित वंदना से श्रद्धा उत्पन्न होती है - आचार्य ऋशभचन्द्रसूरि
राजगढ़/धार (संतोष जैन) - परमात्मा को भाव सहित एक बार की गयी वंदना अनेक भवों के संताप मिटाने वाली होती है । वंदन करने की बहुत प्रक्रिया है । वंदन में भावों की प्राथमिकता जरुरी है । रास्ते में मुनि भगवन्तों को ग्रामीण, मजदूर कृषक लोग भी भाव सहित वंदना करते है । भाव सहित वंदना से श्रद्धा उत्पन्न होती है । श्रद्धा से ही इंसान का सिर झुकता है । कई बार बड़ी-बड़ी कारों में लोग साधु भगवन्तों के पास से उनको नजरअंदाज करके गुजर जाते है और श्रद्धा उत्पन्न नहीं होती है । उक्त बात दादा गुरुदेव श्री राजेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. की पाट परम्परा के वर्तमान गच्छाधिपति आचार्यदेवेश श्रीमद्विजय ऋषभचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. ने जावरा श्रीसंघ के 124 वर्षीतप आराधकों को कही और आगे बताया कि जब किसी के हाथ में फांस लग जाती है या कांटा चूभ जाता है तब व्यक्ति का दिमाग वही जाता है । जब तक वह कांटा या फास नहीं निकल जाती है तबतक उसे चैन नहीं आता है । ज्ञानी कहते है की मिथ्यात्व धारणाएंे रहते हम कितने भी वंदन क्यों ना कर ले हम 18 पाप स्थानकों की आलोचना नहीं कर पाते है । धर्म का आधार स्तम्भ साधु साध्वी होते है । सद्गुरु हमें हमेशा अच्छा पंथ बताते है । अहंकार के साथ किये हुऐ दान का कोई महत्व नहीं होता है । संसार में हमेशा निर्लिप्त भाव से रहे । अपनत्व के भाव जरुर लाओ पर उसे पूरा अपना मत समझों ।
जावरा श्रीसंघ की ओर से 124 वर्षीतप आराधकों को श्रीमती कल्पना देवी मांगीलालजी चैरड़िया पुत्र विमलजी, विनितजी, विपीनजी परिवार की और से श्री पालीताणा तीर्थ की यात्रा हेतु यात्री संघ आयोजन किया गया । जिसमें समकित परिवार जावरा ने व्यवस्था का जिम्मा सम्हाला । सभी यात्रीयों ने श्री मोहनखेड़ा महातीर्थ में विराजित शत्रुंजयावतार श्री आदिनाथ प्रभु एवं दादा गुरुदेव श्रीमद्विजय राजेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. की प्रतिमा के दर्शन वंदन किये और तीर्थ पर विराजित वर्तमान गच्छाधिपति आचार्यदेवेश श्रीमद्विजय ऋषभचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. के मुखारविंद से आर्शीवचन श्रवण कर आचार्यश्री से उपवास के पच्चखाण लेकर मांगलिक का श्रवण किया ।
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