श्री मोहनखेड़ा महातीर्थ में षाष्वत नवपद ओलीजी आराधना
चारित्र धर्म आठ कर्मो नाश करके अश्टसिद्धियां दिलाता है: मुनि रजतचन्द्रविजय
राजगढ़ (संतोष जैन) - शाश्वत नवपद ओलीजी आराधना का आठवां चारित्र पद आराधक को संसार के सारे सुख वैभव और परलोक के सारे आलौकिक सुख की प्राप्ति करवाता है । प्रभु से हमारा रिश्ता जल में मछली जैसा होना चाहिये । श्वेत ध्वजा युद्ध के विराम का प्रतीक है, सफेद चांवल भोजन के विराम का संकेत है और सिर में सफेद बाल आना जीवन के विराम का संकेत है । इंसान सफेद बाल आने पर कलर कराकर अपनी उम्र छुपाना चाहता है पर इंसान के उम्र का कोई ठिकाना नहीं रहता है । व्यक्ति किस पल चला जायेगा कोई नहीं जानता इस लिये उम्र के रहते व्यक्ति को चारित्र की भावना रखते हुये धर्म क्रिया में संलग्न रहना चाहिये । मोत का संदेश आने से पहले धर्म क्रिया करके जीवन के सारे संदेह मिटा लेना चाहिये । दर्शन से आत्मा की प्रतीति होती है, ज्ञान से आत्मा की पहचान होती है और चारित्र से आत्मा को प्राप्ति होती है । इस लिये चारित्र धर्म की शास्त्रों में बहुत महिमा बतायी गयी है । उक्त बात वर्तमान गच्छाधिपति आचार्यदेवेश श्रीमद्विजय ऋषभचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. के शिष्यरत्न मुनिराज श्री रजतचन्द्रविजयजी म.सा. ने प्रवचन में कही और कहा कि नवपद का रत्नरुपी आठवां चारित्र पद व्यक्ति के आठ कर्मो का क्षय कराता है व अष्टसिद्धियों की प्राप्ति कराता है । नवपद आराधना ओली करके मयणासुन्दरी ने स्वयं के दुख को दूर किया व श्रीपाल राजा को कुष्ठरोग से मुक्त किया एवं सातसौ से अधिक कुष्ठरोगियों को उनके रोग से मुक्त किया । मुनिश्री ने श्रीपाल ओर मयणासुन्दरी रास के दोनों चरित्रों पर विस्तृत रुप से प्रकाश डाला और व्याख्या की । आज आराधकों ने नवपद आराधना ओलीजी के आठवें दिन चारित्र पद की आराधना ओम नमो चरित्स मंत्र से आराधना की । इस पद का विशेष महत्व माना गया है । नमो चारित्स पद का आराधना करने से जीवन में चारित्र का उदय होता है अच्छे मार्गो में हमेशा विघ्न आते है । क्रोध, मान, माया, लोभ व मन चाहे आचरण पर रोग लगाने और इस पर विजय प्राप्त करने के बाद ही जीवन में संयम की प्राप्ति होती है । हमारा आना वाला भव चारित्र मय हो व चारित्र वाला मार्ग हो ऐसे भाव हमेशा रखने चाहिये । छोटे - छोटे नियमों का पालन करके आराधक चारित्र पद की आराधना कर सकते है । जो हमेशा समता के भावों में रहे वह साधु कहलाता और जो मौन में रहे उन्हें मुनि कहा जाता है ।
दोपहर में ज्ञान पद की आराधना करते हुये 45 आगम की महापूजन का भव्य आयोजन मंदिर परिसर में रखा गया । इस महापूजन में 45 ज्ञान के आगमों की पूरी भाव के साथ पूजा अर्चना की गयी । महापूजन की मुख्य पीठिका पर श्रीमती मनीषा संजयजी मुणत बोरी, श्रीमती रानी प्रफुलकुमार जी जैन थांदला एवं श्रीमती मोना दिनेश जी नाहर राणापुर ने लाभ लिया ।
श्री आदिनाथ राजेन्द्र जैन श्वे. पेढ़ी ट्रस्ट श्री मोहनखेड़ा तीर्थ के तत्वाधान में व दादा गुरुदेव की पाट परम्परा के वर्तमान गच्छाधिपति आचार्यदेवेश श्रीमद्विजय ऋषभचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. की पावनतम निश्रा में श्रीपाल राजा और मयणासुन्दरी द्वारा आधारित सर्वकष्ट निवारक आत्म शांति दायक आसोज माह की शाश्वत नवपद ओलीजी आराधना का आयोजन टाण्डा निवासी श्री राजेन्द्रकुमार सौभागमलजी लोढ़ा, श्रीमती मधुबेन, टीना जयसिंह लोढ़ा परिवार श्री शंखेश्वर पाश्र्व ग्रुप आॅफ कम्पनीज इन्दौर द्वारा रखा गया है । श्री मोहनखेड़ा महातीर्थ पर मध्यप्रदेश शासन द्वारा प्रदत्त गाईड लाईन के अनुसार शाश्वत नवपद ओलीजी आराधना चल रही है ।