चुनावी जागरूकता मंच में उठाया गया सवाल : जनता के सवालों के जवाब देने से क्यूँ डरते है राजनैतिक पार्टियों के प्रत्याशी.? | Chunavi jagrukta manch main uthaya gaya sawal

चुनावी जागरूकता मंच में उठाया गया सवाल : जनता के सवालों के जवाब देने से क्यूँ डरते है राजनैतिक पार्टियों के प्रत्याशी.?

जनता के मूल अधिकारों पर

आदिवासी मतदाताओं के सवालों से परेशान हुए उमीदवार – कार्यक्रम में आने से हिचकिचाए

चुनावी जागरूकता मंच में उठाया गया सवाल : जनता के सवालों के जवाब देने से क्यूँ डरते है राजनैतिक पार्टियों के प्रत्याशी.?

बुरहानपुर। (अमर दिवाने) - आज दिनांक 29.10.20 को जागृत आदिवासी दलित संगठन द्वारा नेपानगर में चुनावी जागरूकता मंच का आयोजन किया गया। रैली एवं आम सभा के माध्यम से कार्यक्रम में नेपानगर विधानसभा क्षेत्र के मतदाताओं पर सभी उपस्थित प्रत्याशियों से जनता के ज़मीनी मुद्दों पर तीखे सवाल किए गए। शिक्षा के निजीकरण, बढती बेरोज़गारी और पलायन, वन कटाई , डगमगाई स्वास्थ्य व्यवस्था, किसानों को फसलों का भाव नहीं मिलना और वन अधिकार के पट्टे नहीं मिलने जैसे सवालों पर सभी पार्टियों और उम्मीदवारों से तीखे सवाल पूछे गए।  रैली की शुरुआत नेपानगर थाने से की गई तथा शारीरिक दूरी के साथ अम्बेडकर चौराहे तक स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार पर नारे लगते हुए रैली का आयोजन किया गया।

*मतदाताओं के सवाल* : 

*रोजगार एवं पलायन* – विधानसभा क्षेत्र में रोजगार की कमी से ग्रामीण एवं शहरी युवा एवं आम मेहनतकश जनता दोनों ही त्रस्त है | कार्यकर्ताओं द्वारा उमीदवारों से इस विषय में सवाल पुछा गया कि रोज़गार के खोज में हमारे गाँव खाली हो रहे है, जब रोज़गार के लिए लोग महाराष्ट्र और गुजरात और वहां के सरकारों के भरोसे हैं, तो मध्य प्रदेश में चुनाव का क्या औचित्य है.? बेरोजगार युवाओं के लिए क्या व्यवस्थाये कि जायेगी.? लाखों शिक्षित बेरोजगार, पर सरकारी विभागों में लाखों पद क्यों रिक्त रखे जा रहे हैं..? 

*अवैध कटाई वनों का नीजिकरण*- शांता बाई के अनुसार, लकड़ी तस्कर खुलेआम आरा मशीन से वन कटाई कर रहे हैं और 4 महीने से वन भूमि की बिक्री चल रही है वन कर्मियों की मिलीभगत सामने आने के बाद भी कोई कार्यवाही नहीं हुई है।दूसरी तरफ निर्दोष आदिवासियों को वन विभाग अवैध रूप से गिरफ्तार कर बंधक बना कर मारपीट कर रहा है, और कह रहा है कि ‘जंगल क्या तुम्हारे बाप का है, कट रहा है, तो कटने दो’, (जैसे कि खकनार रेंज में पिछले माह हुआ था) इसी बीच, राज्य सरकार लगभग 37,420 घन किलोमीटर जंगल नीजी कंपनियों को लकड़ी बेचने के लिए सौपने का योजना बना रही है, जिसका कड़ा विरोध किया गया।


*जल जंगल जमीन पर अधिकार* - मंच पर उमीदवारों से यह भी पुछा गया, कि- वन अधिकार अधिनियम लागू होने के 13 साल बाद भी शासन-प्रशासन को कानूनानुसार आदिवासियों को पट्टे देने में दिलचस्पी नहीं।10-15 दिन में पट्टे दिलाने की बार-बार घोषणा के बावजूद बुरहानपुर जिले में वर्तमान में 11,000 में से केवल 54 दावों का निराकरण हुआ है। आदिवासियों को पट्टे से वंचित कर, उनको बेदखल कर कंपनियों को जंगल बेचना आसान हो जाता है  13 साल से दावों का सही सत्यापन और दावों की जाँच के लिए नियमानुसार ग्राम सभा नहीं ली गई है, तथा प्रशासन कि यही उदासीनता के चलता वन विभाग मनमाने ढंग से दावों के काम में अडंगा डालते हुए आया है।


*शिक्षा व्यवस्था बेहाल, नीजिकरण और ऑनलाइन पढाई से गरीब बच्चे शिक्षा से वंचित* -- पिछले दो सालों में 20,000 से ज्यादा स्कूल बंद हो चुके है, लगभग 1 लाख शिक्षकों के पद खाली है। परन्तु शिक्षा व्यवस्था के सुधार में सरकार की कोई दिलचस्पी दिखाई नहीं दे रही – उल्टा, कोरोना महामारी को बहाना बना कर ऑनलाइन शिक्षा चालू कर, सरकार द्वारा शिक्षकों एवं विद्यार्थियों, दोनों के प्रति अपनी जिम्मेदारियों से हाथ धो लिया गया है। ऑनलाइन व्यवस्था से लगभग सभी ग्रामीण और गरीब छात्र शिक्षा से वंचित हो रहे हैं।


*कृषि संकट और गहराया* – लॉकडाउन में हर चीज़ का भाव बढ़ जाने के बावजूद किसानों के फसल का भाव नहीं बड़ा है ! 1850 के समर्थन मूल्य के बजाये 800 -1000 रु में बिकने वाले मक्का में खर्च ही नहीं निकल रहा है! किसान को अपनी मेहनत का सही भाव तो दूर, हाल ही में पारित कृषि कानूनों से किसानों को सुरक्षित भावों से पूरा वंचित कर दिया है और सरकारी खरीदी बंद कर राशन व्यवस्थ भी बंद करने का व्यवस्था है ! किसान क़र्ज़ के चक्रव्यूह से कैसे निकलेंगे ?


*स्वास्थय सेवाए झरझर* :नेपानगर मतदाताओं के लिए एक भी सर्व-सुविधायुक्त अस्पताल तो दूर, एक स्वास्थय केंद्र भी नहीं है ! न्यूनतम सुविधाओं के मामलों में भी नेपानगर का स्वास्थ्य केंद्र झूझ रहा है – हालत इतनी बत्तर है कि महिलाओं के डिलीवरी के लिए भी स्वास्थय केंद्र में उचित व्यवस्था नहीं दिखाई पड़ती है ! 


कार्यक्रम से पूर्व भाजपा प्रत्याशी सुमित्रा देवी कास्डेकर, बसपा प्रत्याशी भलसिंह बरेला, और वंचित बहुजन अघाडी उमीदवार अजय बांडेकर सभी को पूर्व में आमंत्रित करने के बावजूद उनकी कार्यक्रम में उपस्थिति नही रही। उपस्थिति में निर्दलीय प्रत्याशी संजय मावस्कर ने सभी सवालों का जवाब दिया गया। आदिवासी आरक्षित सीट पर भी कांग्रेस एवं भाजपा द्वारा गैर आदवासियों को प्रतिनिधि के रूप में भेजा गया। इससे यह समझ आता है कि राजनैतिक पार्टियों के प्रत्याशी जनता का सामना कर उनके सवालों के जवाब नहीं देना चाहते है, क्यों उमीदवार केवल उन सभाओं में जाना चाहते है, जहाँ पर सिर्फ उनके हाथ में माइक हो, जनता के हाथ में नहीं।  इस चुनाव में हमारे पार्टियों और लोकतंत्र की दुर्दशा को दर्शाता है। उल्लेखनीय है कि इस बारे में मौके पर उपस्थित हज़ारों आदिवासियों का कहना रहा की इसका प्रभाव चुनाव पर भी पड़ेगा।

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