देवी अहिल्या विश्वविद्यालय को कानूनी नोटिस प्रेषित | Devi ahilya vishvavidyalay ko kanuni notice preshit

देवी अहिल्या विश्वविद्यालय को कानूनी नोटिस प्रेषित

मास्टर ऑफ जर्नलिज्म एमजे के प्रश्न पत्र विवाद का मामला

देवी अहिल्या विश्वविद्यालय को कानूनी नोटिस प्रेषित

इंदौर। (राहुल सुखानी) - यूनिवर्सिटी द्वारा मास्टर ऑफ जनरलिज्म के पर्चे पर हुए विवाद पर अधिवक्ता एवं विधि व्याख्याता पंकज वाधवानी ने कानूनी नोटिस जारी करते हुए कहा है कि पुनः परीक्षा यदि लिए जाने का निर्णय लिया गया तो कोर्ट में याचिका लगाई जाएगी क्योंकि परिचय में ऐसा कुछ भी नहीं है जो किसी राजनीतिक दल के घोषणापत्र के समान दिखता हो।


एडवोकेट वाधवानी ने जारी किए कानूनी नोटिस में कहा है कि वर्तमान सत्र 2020 में कोरोना का एवं संक्रमण को देखते हुए वर्तमान परीक्षाएं विश्वविद्यालय द्वारा ऑनलाइन प्रश्न पत्र अपलोड करते हुए ली जा रही है। वर्तमान में स्वयं एडवोकेट वाधवानी द्वारा मास्टर ऑफ जनरलिज्म 2020 की परीक्षा आपके विश्वविद्यालय में इनरोल होकर दी जा रही है। विगत दो-तीन दिन से मास्टर ऑफ जर्नलिज्म एमजे परीक्षा 2020 के पाठ्यक्रम के अंतर्गत आने वाले विषय "एनालिसिस ऑफ वेरियस नेशनल एंड इंटरनेशनल इश्यूज"के संबंध में राजनीति से प्रेरित आधारहीन और सस्ती लोकप्रियता पाने की मंशा से किए जा रहे विवाद को मीडिया के माध्यम से देखने में आया है, किंतु समाचार पत्रो में परीक्षा वापस लिए जाने की मांग पर गंभीर आपत्ति लेते हुए बतौर विद्यार्थी एवं सामाजिक व्यक्ति के रूप में यह नोटिस विश्वविद्यालय को संज्ञान में लाना आवश्यक हुआ है।

अधिवक्ता पंकज वाधवानी का कहना है सर्वप्रथम तो उपरोक्त प्रश्न पत्र पर अकारण विवाद करते हुए प्रश्न पत्र पर भारतीय जनता पार्टी के घोषणापत्र होने का आरोप पूर्णता निराधार है, क्योंकि यह परीक्षा पत्रकारिता विषय की मास्टर डिग्री से संबंधित है तथा प्रश्न पत्र में पूछे हुए प्रश्नों की प्रकृति को यदि गौर से देखा जाए तो बतौर परीक्षार्थी इनके उत्तर एक स्वतंत्र पत्रकार एवं निष्पक्ष विचार व्यक्त करने से संबंधित है, जिन्हें अकारण ही किसी राजनीतिक दल से जोड़कर बेवजह हल्ला किया जा रहा है और आश्चर्य की बात तो यह है कि देवी अहिल्या विश्वविद्यालय अर्थात आपके द्वारा ऐसे अनुचित एवं अवैधानिक दबाव में आकर प्रश्न पत्र की जांच के लिए कमेटी भी बना देती हैइसके पूर्व के प्रश्न पत्रों में क्या प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी एवं कांग्रेस के नेताओं के प्रश्न एवं उनके कार्य पर टिप्पणियां नहीं पूछी गई है ? यदि वह किसी पार्टी विशेष का घोषणा पत्र नहीं हो सकती तो वर्तमान प्रश्न पत्र कैसे किसी पार्टी का घोषणापत्र कहा जा सकता है।

यह है पूछे गए प्रश्न

वाधवानी ने नोटिस में पूछे गए प्रश्नों का जिक्र करते हुए यूनिवर्सिटी से सवाल पूछे हैं  कि प्रश्न क्रमांक 1-- में राष्ट्रवाद बनाम विकास का मुद्दा लोकतंत्र की मजबूती के लिए कितना कारगर है, प्रश्न क्रमांक 2 ---भारतीय अर्थव्यवस्था पर नोटबंदी एवं जीएसटी के फैसलों के प्रभाव समझाइए। प्रश्न क्रमांक 3 ---2019 के आम चुनाव में भाजपा की जीत क्या मोदी सरकार पर आम आदमी के भरोसे की मुहर है समझाइए। प्रश्न क्रमांक 4 --विश्व मंच पर लगातार मजबूत हो रहे भारत के प्रति अमेरिकी व्यवहार में क्या बदलाव आ सकते हैं। प्रश्न क्रमांक 5-- कांग्रेस को 2014 एवं 2019 में आम चुनाव में आशातीत विजय नहीं मिलने के कौन-कौन से तीन कारण हो सकते हैं विस्तार से उदाहरण सहित समझाइए। क्या किसी भी दृष्टिकोण से उपरोक्त प्रश्न किसी पार्टी विशेष की ओर झुकाव देते हुए नजर आते हैं ? किन्हीं भी निष्पक्ष वरिष्ठ पत्रकारों एवं मीडिया से जुड़े बुद्धिजीवी विषय से संबंधित व्यक्तियों की आम राय ली जाना जरूरी है, मात्र किसी राजनीति से प्रेरित समूह के हो हल्ला करने से इतना विषय पर ध्यान दिया जाना भी ऐसे तत्वों को प्रोत्साहन देने के समान है। यूनिवर्सिटी को भेजे गए नोटिस में यह भी कहा है कि मास्टर ऑफ जनरलिज्म परीक्षा का उद्देश्य पत्रकारिता में गहन चिंतन एवं विशेष विश्लेषणात्मक स्वतंत्र बुद्धि विकसित करना है । यदि ऐसे प्रश्न नहीं पूछे जाएंगे तो फिर कैसे प्रश्न पूछे जाएंगे? प्रश्न पत्र में पूछे गए सभी प्रश्न समसामयिक होकर पूर्णता प्रासंगिक एवं कोर्स के स्तर एवं गरिमा के अनुसार ही हैं और इन प्रश्नों को किसी भी तरह से कोर्स अथवा पाठ्यक्रम के बाहर अथवा राजनीति से प्रेरित कहा जाना सीधे-सीधे आधारहीन एवं दबाव पर आधारित राजनीति के अलावा कुछ भी नहीं है।

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