शुभ विचार हमारे मनोबल को बढ़ाते हैं समस्या में मार्गदर्शन प्रदान करते हैं - ब्रहमा कुमार नारायण भाई
उमरबन (पवन प्रजापत) - वर्तमान कोरोना वायरस से समाज के सभी वर्ग सामना कर रहे हैं विशेष करके खास युवा वर्ग जो अपने भविष्य को लेकर चिंतित है उन युवा लोगों के लिए मनोबल को कैसे बढ़ाएं इस विषय पर कार्यशाला में बताया कि किसी भी आत्मा पर सत्ता स्थापित करना , उन्हें दबाना ,गुलाम बना कर रखना गलत है। रहमदिल परमात्मा हमे कितनी गुलामियों से मुक्त करते है।
ज्ञान मिलने के बाद भी अगर कोई किसी पर हुक्म चलाता है ,किसी पर मालिक बनकर रहता है , रोब डालता है , उसे डराता है ,धमकाता है ,बात बात पर चेतावनी देता है ,ललकारता है तो उसका क्या फल मिलेगा ? इसमे !कितना समय खराब जाता है ,बाद में पश्चाताप होता है।
ऐसा शतरंज का खेल खेलने वालों का व्यवहार ही उन्हें भाग्यहीन बना देगा। इसलिये अपने साथ रहने वालों को , साथ मे काम करने वालो को दबाओ नही ,उन्हें दुख नही दो ,उन्हें नुकसान नही पहुंचाओ ,किसी के ऊपर आतंक मत करो ,हमारी वजह से कोई आंसू न बहाए ,किसी का दिल मत दुखाओ।
हरेक के साथ स्नेह से व्यवहार करो जैसे भगवान सबको प्यार और स्नेह से चलाते है। बच्चों को भी जितना दबाएंगे ,परमात्मा कहते है कि वे आपके दुश्मन बन जाएंगे। मनुष्य का अंतर्मन गलत कर्म के लिए पश्चाताप ज़रूर करवाता है और फिर डिप्रेशन शुरू हो जाता है। सब परमात्मा की सन्तान है इसलिये किसी को भी दबाकर ,सज़ाओं के पात्र नही बनना। यह विचार मनावर सेवा केंद्र से पधारे ब्रहमाकुमारी सुंदरी बहन ने मनावर रोड पर स्तिथ ब्रह्मा कुमारी सभागृह में युवाओं के लिए आयोजित कार्यशाला में वर्तमान चुनौतियों का कैसे सामना करें विषय पर अपने उद्बोधन में बताया। इस अवसर पर इंदौर से पधारे जीवन जीने की कला के प्रणेता ब्रहमा कुमार नारायण भाई ने बताया कि हर आत्मा अपने कर्मों अनुसार सुखी-दुःखी होती है, जीवात्मा अपना आपही मित्र है और आपही अपना शत्रु है।दूसरे के लिए अशुभ सोचना या हीन भावना रखना भी पाप कर्म है। बिना कारण के कोई कर्म नहीं होता, इसलिए बिना जाने किसी के विषय में गलत निर्णय करने या धारणा बनाने से भी आत्मा का पाप का खाता बढ़ता है।आवश्यकता से अधिक उपभोग करना भी विकर्म है, जिसका पश्चाताप आत्मा को रोगशोक के रूप में करना ही पड़ता है। हर आत्मा को उतना ही उपभोग का अधिकार है, जिससे उसकी कार्य क्षमता बढ़ती है या स्थिर रहती है। इस अवसर पर समाजसेवी रश्मि श्री माली जी ने बताया कि
*सदैव कम बोलो :-* जहाँ दो शब्दों में काम चलता हो वहाँ 50-100 व्यर्थ के शब्दों में मत बोलो। बोलने में विस्तार में ना जाओ, विषय को सार में समाकर फिर बोलो। वाणी में समर्थता होनी चाहिए।
*मीठा बोलो :-* हर कोई चाहता है की कोई उसे मुस्कुराहट के साथ कोई दो शब्द मीठे ही बोल दे। आप दूसरों को कोई ऐसे बोल बोलो जिससे सामने वाले को ख़ुशी महसूस होने लगे। फिर उसके दिल से आपके लिए सच्ची दुआयें ही निकलेगी। ध्यान रहे :- अब आपकी वाणी से किसी को दुःख नहीं मिलना चाहिए, दुःख देना माना आपके खाते में विकर्मों का खाता बढ़ा। अनेक युवा लोगों ने इस कार्यक्रम से प्रेरणा ली और आगे भी अपने मनोबल को बढ़ाने के लिए योग को जीवन में शामिल करेंगे। कार्यक्रम का संचालन ब्रहमा कुमार गणपत भाई के द्वारा किया।
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