मंगलपाण्डे वो महानायक थे जिसकी दहाड़ से उस समय लंदन तक काँप गया था - सांसद गुमानसिंह
झाबुआ (अली असगर बोहरा) - भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के अग्रदूत कहे जाने वाले था 1857 की का्रंति के महानायक मंगल पाण्डे की जन्म जयंती पर सांसद गुमानसिंह डामोर ने उन्हे स्मरण करते हुए कहा है कि आजादी की बलि वेदी पर चढ़ा पहला महानायक रायफल के साथ तलवारों से लैस था और उसने अपने प्राण की आहूति देकर स्वतन्त्रता की वो अलख जगाई जो ब्रिटिश सत्ता को यहाँ से जड़ से उखाड़ गयी ।. गौ माता के प्रति धार्मिक भावनाओं के साथ राष्ट्र प्रेम के अनूठे सामंजस्य को मंगल पांडेय ने जिस रूप में अपने बलिदान से साबित किया है वो युगो युगों तक उन्हें इस चराचर जगत में अमर बनाते हुए देवलोक के सर्वोच्च पद पर सुशोभित किया होगा । ये भारत वालों के लिए सबसे बड़े पर्व के रूप में होना था क्योंकि आज उन्हें आजादी दिलाने वाले मार्ग पर पहली बलि देने वाले महानायक का पावन जन्म दिवस है । वो महानायक जिसकी दहाड़ से उस समय लंदन तक काँप गया था। मंगल पाण्डेय एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने 1857 में भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वो ईस्ट इंडिया कंपनी की 34वीं बंगाल इंफेन्ट्री के सिपाही थे। तत्कालीन अंग्रेजी शासन ने उन्हें बागी करार दिया जबकि आम हिंदुस्तानी उन्हें आजादी की लड़ाई के नायक के रूप में सम्मान देता है । सिपाहियों को पैटर्न 1853 एनफील्ड बंदूक दी गयीं जो कि 0.577 कैलीबर की बंदूक थी तथा पुरानी और कई दशकों से उपयोग में लायी जा रही ब्राउन बैस के मुकाबले में शक्तिशाली और अचूक थी। नयी बंदूक में गोली दागने की आधुनिक प्रणाली (प्रिकशन कैप) का प्रयोग किया गया था परन्तु बंदूक में गोली भरने की प्रक्रिया पुरानी थी। नयी एनफील्ड बंदूक भरने के लिये कारतूस को दांतों से काट कर खोलना पड़ता था और उसमे भरे हुए बारुद को बंदूक की नली में भर कर कारतूस को डालना पड़ता था। सिपाहियों के बीच अफवाह फैल चुकी थी कि कारतूस में लगी हुई चर्बी सुअर और गाय के मांस से बनायी जाती है। 29 मार्च 1857 को बैरकपुर परेड मैदान कलकत्ता के निकट मंगल पाण्डेय जो नगवा बलिया(उत्तर प्रदेश) के रहने वाले थे रेजीमेण्ट के अफसर लेफ्टीनेण्ट बाग पर हमला कर के उसे घायल कर दिया। जनरल जान हेएरसेये के अनुसार मंगल पाण्डेय किसी प्रकार के धार्मिक पागलपन में थे जनरल ने जमादार ईश्वरी प्रसाद ने मंगल पांडेय को गिरफ्तार करने का आदेश दिया पर जमीदार ने मना कर दिया। सिवाय एक सिपाही शेख पलटु को छोड़ कर सारी रेजीमेण्ट ने मंगल पाण्डेय को गिरफ्तार करने से मना कर दिया। मंगल पाण्डेय ने अपने साथियों को खुलेआम विद्रोह करने के लिये कहा पर किसी के ना मानने पर उन्होने अपनी बंदूक से अपनी प्राण लेने का प्रयास किया। जिला भाजपा अध्यक्ष लक्ष्मणसिंह नायक ने कहा कि मंगल पांडे द्वारा लगायी गयी विद्रोह की यह चिंगारी बुझी नहीं। एक महीने बाद ही 10 मई सन् 1857 को मेरठ की छावनी में बगावत हो गयी। यह विप्लव देखते ही देखते पूरे उत्तरी भारत में फैल गया जिससे अंग्रेजों को स्पष्ट संदेश मिल गया कि अब भारत पर राज्य करना उतना आसान नहीं है जितना वे समझ रहे थे। इसके बाद ही हिन्दुस्तान में चैंतीस हजार सात सौ पैंतीस अंग्रेजी कानून यहाँ की जनता पर लागू किये गये ताकि मंगल पाण्डेय सरीखा कोई सैनिक दोबारा भारतीय शासकों के विरुद्ध बगावत न कर सके।
कार्यालय मत्री पण्डित महेन्द्र तिवारी ने बताया कि मंगलपाण्डे की जन्म जयती पर पूर्व विधायक शातिलाल बिलवाल, कलसिह भाबर, सुश्री निर्मला भूरिया, प्रदेश कार्यसमिति के सदस्य दौलत भावसार, शैलेष दुबे, जिला उपाध्यक्ष अजय पोरवाल, जिले के सभी मडल के अध्यक्ष गणो, भाजपा के सभी मोर्चा प्रकोष्ठो के पदाधिकारियों के अलावा जिला मीडिया प्रभारी राजेन्द्र सोनी, अंकुर पाठक, पण्डित महेन्द्र तिवारी सहित सभी ने स्वतत्रता संग्राम के पुरोधा मंगल पाण्डे की जन्म जयती पर उन्हे स्मरण कर उनके पद चिन्हो पर चलने का सकल्प लिया है ।
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