किसान आत्मनिर्भर बन सकते है - केले के अन्य उत्पादों का इस्तेमाल करें तो
केले के पत्तों से बनी पैकेजिंग का बढ़ रहा प्रचलन
बुरहानपुर। (अमर दिवाने) - जिला और इसके आस पास का पूरा क्षेत्र केले की फसल के लिए देश भर में प्रसिद्ध है।
यहां के केले की डिमांड दूर-दूर तक है। जिले की मुख्य फसल केला होने से यहां का अधिकांश किसान इसकी खेती पर निर्भर है।
उन्नत किसान अगर समय के साथ आधुनिक और प्रगतिशील दृष्टि से खेती कर तो सिर्फ अपना ही नहीं क्षेत्र का भी विकास कर सकता है।
अभी बुरहानपुर क्षेत्र का किसान सिर्फ केले का निर्यात या विक्रय कर रहा है, यदि केले फल के अलावा पौधे के अन्य भाग जैसे तने,पत्ते ,जड़ या छाल का भी उपयोग करे जैसा कि अन्य राज्यों जैसे केरल के युवा किसान कर रहे हैं तो ज्यादा पैसे भी कमा सकते हैं व क्षेत्र की प्रगति में भी सहयोग कर सकते हैं।
उदाहरण के लिए केले के पत्ते से प्राकृतिक पैकेजिंग का प्रचलन आजकल बढ़ रहा है ये प्लास्टिक प्रदूषण को मात तो देगा ही, भारत को आत्मनिर्भर भी बनाएगा।
समाजशास्त्री डॉ.मनोज अग्रवाल ने बताया कि भारत में इसका चलन सदियों से था। पर यहां लोग अपनी संस्कृति भूल के विदेशी नकल अपनाने लगे और इन दोना पत्तों की जगह पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले प्लास्टिक थर्माकोल जैसे जहर ने ले ली।
केले के पत्तों के इस्तेमाल से पर्यावरण अनुकूल रहेगा, लोगों को रोज़गार मिलेगा, वृक्षारोपण को बढ़ावा मिलेगा, जिस मिट्टी में ये फेंका जाएगा उसकी उर्वरा शक्ति बढ़ेगी, ये पशुओं को भी खिलाया जा सकता है, और प्लास्टिक को नष्ट करने का कोई झंझट भी नहीं। आत्मनिर्भर बनने की ओर अग्रसर भी होंगा हमारा जिला बुरहानपुर।
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