वर्षों पुराने बरगद के पेड़ की जटाएं सदियों पुरानी | Varsho pirana bargad ke ped ki jataye sadiyo purani
वर्षों पुराने बरगद के पेड़ की जटाएं सदियों पुरानी
धामनोद (मुकेश सोडानी) - समीपस्थ ग्राम दुधी में दरगाह के पास एक पुराना बरगद का पेड़ है उस बरगद के पेड़ की जटाएं अब जमीन को छू रही है बताया जाता है कि यह बरगद का पेड़ मुगलकालीन है शायद या उसके पहले से है आज भी यह विशालकाय वृक्ष अपनी जटाये बिखेरते हुए अद्भुत सुंदर दिखाई देता है
पौराणिक मान्यता////
भारत में बरगद के वृक्ष को एक महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। इस वृक्ष को 'वट' के नाम से भी जाना जाता है। यह एक सदाबहार पेड़ है, जो अपने प्ररोहों के लिए विश्वविख्यात है। इसकी जड़ें ज़मीन में क्षैतिज रूप में दूर-दूर तक फैलकर पसर जाती है। इसके पत्तों से दूध जैसा पदार्थ निकलता है। यह पेड़ 'त्रिमूर्ति' का प्रतीक है। इसकी छाल में विष्णु, जड़ों में ब्रह्मा और शाखाओं में शिव विराजते हैं। अग्निपुराण के अनुसार बरगद उत्सर्जन को दर्शाता है। इसीलिए संतान के लिए इच्छित लोग इसकी पूजा करते हैं। इस कारण से बरगद काटा नहीं जाता है। अकाल में इसके पत्ते जानवरों को खिलाए जाते हैं। अपनी विशेषताओं और लंबे जीवन के कारण इस वृक्ष को अनश्वर माना जाता है। इसीलिए इस वृक्ष को अक्षयवट भी कहा जाता है। लोक मान्यता है कि बरगद के एक पेड़ को काटे जाने पर प्रायश्चित के तौर पर एक बकरे की बलि देनी पड़ती है। वामनपुराण में वनस्पतियों की व्युत्पत्ति को लेकर एक कथा भी आती है। आश्विन मास में विष्णु की नाभि से जब कमल प्रकट हुआ, तब अन्य देवों से भी विभिन्न वृक्ष उत्पन्न हुए। उसी समय यक्षों के राजा 'मणिभद्र' से वट का वृक्ष उत्पन्न हुआ।
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