चौथे दिन बदलती स्थिति को देखकर आगे की दिशा सोचकर उपवास की समाप्ति
*भयाकांत की स्थिति में भी भरपूर हुई है श्रमिकों की और देश की लूट!*
*लॉकडाउन में भी हर अन्याय के खिलाफ सक्रिय सत्याग्रही बने हर कार्यकर्ता, जनप्रतिनिधि, यही ऐलान।*
अंजड़ (शकील मंसूरी) - लॉक डाउन और कोरोना से निर्माण हुए भयाकांत और भूखमरी के आकांत से हैरान देश के श्रमिक जो घर वापसी के लिए पैदल चलते रहे, उनके पक्ष में तथा देश के हर नागरिक को बेरोजगारी, मंदी, गुलामी भी भुगतनी न पड़े इसलिए हमने उपवास शुरू किया।
मुम्बई-आगरा रोड़ पर हमने देखा कि हजारों मजदूर तो गुजर गये, हजारों किमी चलते हुए, कुछ जान छोड़ गये....... लेकिन इस राष्ट्रीय महामार्ग से तो पैदल चलने वालों की संख्या कम से कम हुई। मजदूरों की लूट भी हुई लेकिन वाहन साधनों को मंजूरी मिली, राज्यों की सीमा पार करने की। इसमें शासन ने कुछ निर्णय पहले ही लिए थे उसका पालन हुआ या फिर नये निर्णय भी लिये..... स्वयं के साधन लेकर आये सभी को जाने देने का! सवाल आज भी पूरा नही हुवा हैं
लेकिन मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश ने भी सीमा खोलने से बड़ी राहत मिली है।
महाराष्ट्र शासन ने 10000 बसेस एस. टी. महामंडल की प्रवासी श्रमिकों के जिले से जिले तक लाने के लिए उपलब्ध की, जो मध्य प्रदेश ने अभी तक नही किया और अन्य राज्यों ने भी यह दानत नही दिखाई। कुछ रेलवे गाड़ियाँ शुरू हुई यह स्वागतार्थ है लेकिन उनका पूर्ण समय पत्रक घोषित होना और श्रमिकों को भरोसा दिलाना जरूरी है। उन्हें रोकने का कारण कही बिल्डर्स है तो कही बड़े किसान जो चाहते है आने वाले सिजन में मजदूर साथ रहे! लेकिन राज्य और केंद्र की संवैधानिक जिम्मेदारी है, संचार व्यवस्था की, जिस पर सर्वोच्च अदालत का फैसला भी स्पष्ट है। और पैदल करना न केवल अन्याय बल्कि अत्याचार है यह मानकर हमने रोका, अब शासन विकल्प दे रही है।
लॉक डाउन के चलते राज्य राज्य की सीमाबंदी के साथ उनमें समन्वय का सम्पूर्ण अभाव था, जिसमें अभी कुछ बदलाव दिखाई दे रहा है। देख रहे है हम कि श्रमिकों के मुद्दों पर जवाब देने के लिए शासनकर्ता मजबूर हो रहे है.....
मुद्दे राष्ट्रीय भी है और व्यापक भी। मुद्दा है, गैरबराबरी का! वेतन और संपदा दोनों में वीभत्स विषमता का! सम्पन्न कंपनियों के मालिक और धनिकों से PM केअर फण्ड तो बना लेकिन लॉक डाउन में फंसे श्रमिकों के कहाँ काम आ रहा है?, कहाँ उपयोग में ला रहे है, निर्माण मजदूर या घरेलू मजदूरों के लिए बना हुआ फण्ड? संपदा-टैक्स 2% की बढ़ाते तो लॉक डाउन के भुक्तभोगियों को राहत दे सकते। अगर कायम रूप से यही वेल्थ टैक्स बढ़ाया जाए तो निश्चित ही देश की आम जनता से कोई टैक्स नहीं लेना पड़ता। जरूरी है, देश में अब लागू हो जाए अमीरी रेखा।
लॉकडाउन के दौरान लिए निर्णय हुए तो निजीकरण के, श्रम कानून, पर्यावरणीय कानून बदलने के, सब कोई गरीब, श्रमिक जनता के खिलाफ विस्थापन, विनाश, विषमता बढ़ाने वाले ये निर्णय विकास की वही अवधारणा आगे बढायेंगे जिससे प्राकृतिक नहीं, मानवनिर्मित आपदाएँ खड़ी हो रही है।
हम चाहते है इन मुद्दों पर देश में आवाज उठे। राशन या राहत से आगे बढ़कर हम गैरबराबरी का करे प्रतिरोध- हर मोर्चे पर, लॉक डाउन के खुलते! देश अब देख चुका है चित्र और चरित्र - उन सत्ताधीशों का जो कि संवैधानिक अधिकार और बुनियादी मूल्यों की अवहेलना पर न सचेत है, न चिंतित।
हम चाहते है तत्काल के रूप में शासनकर्ता और प्रतिनिधियों को मजबूर करे, जनसंगठनों का जवाब देने!
हम चुप नहीं बैठेंगे पलायन को रोकने की दिशा में, रोजगार मूलक अर्थव्यवस्था के पक्षधर बनने से!
हम सामाजिक कार्यकर्ताओं को भी ऐलान करना चाहते है कि आज तक श्रमिकों के साथ जुड़े हुए सभी साथी अब लॉक डाउन की गुलामी या कोरोना का भय मात्र न रखते हुए जहाँ हो वही से इस दौर में हुए हर अन्याय को रोकना ही शुरू करे, शुरू
रखें
लॉक डाउन के चलते निजीकरण के, 68 हवाई यात्राएँ शुरू करने के, आपदा प्रबंधन फण्ड होते हुए भी PM केअर फण्ड जुटाने के, श्रमिकों को बिना वेतन की ग्यारंटी चल पड़ने मजबूर करने के, 44 श्रम कानून और पर्यावरणीय कानून बदलने के, तथा 68000 करोड़ की कर्ज मुक्ति किसानों के बदले बड़े कॉर्पोरेट अपराधियों को देने के रेलवे तक निजीकरण और बैंकों के विलीनीकरण जैसे निर्णयों पर सवाल उठाने ही होंगे।
साथ साथ हमें वैकल्पिक विकास की अवधारणा रोजगार मूलक अर्थव्यवस्था और प्राकृतिक संतुलन व निरंतरता बनाये रखने की ओर संकल्पकृत होना पड़ेगा। इसी विचार, और संकल्प के साथ हम आज दोपहर 12 बजे श्रमिकों के हाथ से उपवास समाप्त कर रहे है।
*एम. डी. चौबे*
_(केंद्रीय मानव अधिकार संरक्षक)_
*मेधा पाटकर*
_(नर्मदा बचाओ आंदोलन, जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति)_
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