बेटे घर लौटे तो मां-बाप के हाथों को मिल गई नई ताकत | Bete ghar lote to maa baap ke hatho ko mil gai nai takat

बेटे घर लौटे तो मां-बाप के हाथों को मिल गई नई ताकत

बेटे घर लौटे तो मां-बाप के हाथों को मिल गई नई ताकत

डिंडौरी (पप्पू पड़वार) - कुछ भी हो कोरोना वायरस ने गांव में रहकर कई वर्षों से अपने बेटों के आने की बाट जोह रहे बूढ़े मां-बाप को उनके सहारे वापस लौटा दिए हैं। बड़े शहरों में अच्छी कमाई की चाह में अपना परिवार और गांव छोड़कर गए लोग लॉकडाउन के बाद स्थिति बिगड़ते ही घर लौट रहे हैं। ऐसे ही दो परिवार जिला डिण्डौरी अंतर्गत समनापुर जनपद के ग्राम भाजीटोला के छोटे लाल परस्ते व ग्राम झांखी के  कृष्ण कुमार के हैं। इनके बेटे रामदयाल एवं अनंतराम करीब 3 साल पहले उन्हें गांव में छोड़कर रोजी रोटी की तलाश में मुम्बई चले गए थे। कोरोना संकट ने जब जीवन निगलने की कोशिश की तो उन्हें अपने गांव की मिट्टी और परिवार की याद सताने लगी और सभी घर की ओर चल दिए। रामदयाल और अनंतराम बताते हैं, कि सैकड़ों किलोमीटर की दूर तय कर जब उनके बेटे गांव पहुंचे तो ऐसा लगा मानो बूढ़े मां बाप के कंपकपाते हाथों को फिर से नई ताकत मिल गई हो। बेटों के सकुशल वापस आने पर दोनों परिवार खुश है। सभी ने साथ में रहकर रुखी सूखी खाकर गांव में ही खेतीबाड़ी करने का मन बना लिया है। बाहर से लौटकर आए रामदयाल ने बताया कि वह मुम्बई के गांधी नगर स्थित टाटा हाउसिंग कम्पनी में काम करता था वहीं समनापुर के झांखी निवासी मुम्बई के पाईप लाईन में मजदूरी करता था। अचानक लॉकडाउन लगा तो उन्हें क्या मालूम था कि एक दिन अपनों को देखने के लिए तरस जाएंगे। बाहर जो लोग कल तक अपनापन दिखाते थे वह संकट आते ही अजनबी हो गए। शहर के इस छलावे ने उनकी आंखें खोल दी और कदम अपने आप गांव की और लौट पड़े।

घर लौटे अनंतराम ने नहीं हारी हिम्मत, संवार लिया आशियाना

कोरोना संकट ने घर छोड़कर गए लोगों को अपने गांव की मिट्टी का मोल समझा दिया है। समनापुर  क्षेत्र के ग्राम झांखी निवासी अनंतराम गांव में जमीन के छोटे टुकड़े से परिवार का पेट पालने में आ रही दुश्वारियों के चलते 3 साल पहले अपना गांव छोड़कर महाराष्ट्र में मजदूरी कर अपनी गुजर बसर कर रहा था। कोरोना के साए से अपने आपको किसी तरह बचाकर जब वह सैकड़ों मील की दूरी तय कर गांव पहुंचा तो उसका आशियाना खंडहरनुमा हो गया था लेकिन ने हिम्मत नहीं हारी और पूरे परिवार के साथ घर को सहेजने संवारने में जुट गए। गांव की मिट्टी को जब हाथों का स्पर्श मिला तो जल्दी ही आशियाना फिर से सँवर गया ।

 अब इनके सामने आने वाले कल की चुनौतियां है। जिसका डटकर मुकाबला करने को तैयार अनंतराम एवं रामदयाल गांव में ही रहकर अपने खेतों में पसीना बहाने की बात करते हैं । उनका कहना है कि अपना गांव आखिर अपना ही होता हैे। मौत के मुंह से बचकर आए हैं। अब इसे छोड़कर जाने की भी नहीं सोचेंगे

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