विरासत से मिली बैगा संस्कृति को पन्नों में उतार, जन-जन तक पहुंचा रही हैं भागवती रठुड़िया | Virasat se milu bega sankriti ko panno main utar

विरासत से मिली बैगा संस्कृति को पन्नों में उतार, जन-जन तक पहुंचा रही हैं भागवती रठुड़िया

विरासत से मिली बैगा संस्कृति को पन्नों में उतार, जन-जन तक पहुंचा रही हैं भागवती रठुड़िया

डिंडौरी (पप्पू पड़वार) - बैगा जनजाति, कहने को तो इस समाज का इतिहास सदियों पुराना है. लेकिन ये जनजाति अपने बजूद को तलाश रही है. अपने रहन-सहन, खान-पान, बोली, संस्कृति के लिए मशहूर इस जनजाति की परंपराएं भले ही आधुनिक दौर में धुंधली हो रही हों, लेकिन भागवती रठुड़िया जैसी महिला कलाकार अपने गीतों के जरिए इन्हें सहेजने का काम रही हैं. जिन्होंने अपने पूर्वजों से सुने बैगा गीतों को एक किताब की शक्ल दे दी है.

विरासत में मिले गीतों को दी किताब की शक्ल

भागवती बतातीं हैं उन्होंने ये गीत अपनी मां से सुने थे, जिसे उन्होंने बैगानी गीत नामक पुस्तक में संजो दिया है. इस किताब में लोधा, रीना, झरपट, कर्मा, ददरिया, बिरहा जैसे गीतों का संग्रह है. जिनका हिंदी अनुवाद भी किया गया है.

विरासत से मिली बैगा संस्कृति को पन्नों में उतार, जन-जन तक पहुंचा रही हैं भागवती रठुड़िया

भागवती ने ये किताब महज 11 दिन में लिखी थी, इसमें कुल 106 बैगा गीत हैं. जिसे 2013 में आदिवासी लोककला एवं बोली विकास अकादमी मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद ने प्रकाशित कराया था. भागवती को अपनी इस कला के लिए कई बार सम्मानित भी किया जा चुका है.

भागवती रठुड़िया ने बताया कि वैसे तो वे कलाकार हैं. नाचती-गाती हैं और जब विभाग उन्हें कहीं ले जाता है तो वे अपनी कला का प्रदर्शन भी करती हैं, लेकिन उनका मुख्य धंधा खेती-बाड़ी है. जिससे उनकी आजीविका चलती है.

भागवती ने ईटीवी भारत के जरिए अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस को लेकर बैगा समाज की महिलाओं से अपील की है कि वे अपनी बैगानी भाषा और परंपरा को न भूलें और इसे कायम रखें. ताकि आने वाली हमारी पीढ़ी भी इसे समझें और जानें.

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