शिक्षा के नाम पर चल रहा गोरखधंधा - आंख मुंद कर दी जारही स्कूलों को मान्यता | Shiksha ke naam pr chal rha gorakhdhanda

शिक्षा के नाम पर चल रहा गोरखधंधा - आंख मुंद कर दी जारही स्कूलों को मान्यता

स्थान कहीं और, संचालिक हो रही कहीं और नीजि स्कूल

मान्यता दिये जाने को लेकर उठ रहे सवालिया निशान

शिक्षा के नाम पर चल रहा गोरखधंधा - आंख मुंद कर दी जारही स्कूलों को मान्यता

झाबुआ (अली असगर बोहरा) - जिले भर मे कथित तौर पर नीजि स्कूलों के नाम पर जो गडबडझाला चल
रहा है, उस पर न तो प्रशासन संज्ञान ले रहा है और ना ही संबंधित विभाग जिनके द्वारा स्कूलों को मान्यता दी जाती है उसके द्वारा बगैर सत्यापन
किये ही स्कूलों को किस आधार पर मान्यता दी जारही है, इसे लेकर चर्चाओं का माहौल गर्म दिखाई दे रहा है । जिले के शिक्षा विभाग द्वारा ’’रौनक एक्सीलेंस इग्लिंश मीडियम स्कूल ’’ को मान्यता दी गई है, उसका स्थान
विभाग के पोर्टल पर करडावद छोटी  बताया गया है, जबकि हमारी टीम द्वारा
मौके पर जाकर इसकी पुष्टि करना चाही तो करडावद छोटी  में न तो पूर्व में
इस प्रकार की स्कूल संचालित हो रही थी और ना ही वर्तमान में इस नाम का
स्कूल वहां संचालित हो रहा है । काफी पुछताछ करने बाद हमे बताया गया कि
उक्त रौनक एक्सीलेंस इग्लिंश मीडियम स्कूल  झाबुआ नगर  में ही ज्योति भवन के पीछे एलआईसी कालोंनी में 5 फीट की गली जिसमें एक आटों भी नही जाता पाता, ऐसे स्थान पर नाम मात्र के लिये प्रकाश मेडा के निवास पर किराये के भवन में संचालित हो रहा है।

शिक्षा के नाम पर चल रहा गोरखधंधा - आंख मुंद कर दी जारही स्कूलों को मान्यता

इस गली कुचें में सचांलित हो रही स्कूल मे सिर्फ एक ही कमरे में बच्चों को ठूस ठूस कर भरा जाता है । जबकि जिले के शिक्षा विभाग ने  31 मार्च 2022 तक जारी की गई मान्यता के पत्र में  इस स्कूल को करडावद छोटी में
इन्दौर-अहमदाबाद राज मार्ग पर होना बताया है । संबधित स्कूल संचालक को
उनके आवेदन 25-2-2019 के अनुसार 1 अप्रेल 2019 से 31 मार्च 2022 तक की
कालावधि के लिये जिले के शिक्षा विभाग ने निशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा
का अधिकार अधिनियम 2009 की धारा 18 के प्रयोजन के लिये निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार नियम 2010 के नियम 11 के उप नियम (4) के अधीन स्कूल की मान्यता का प्रमाणपत्र जारी किया है । सबसे मजेदार तथ्य तो यह है कि जिस स्थान के लिये स्कूल की अनुमति शिक्षा
विभाग द्वारा दी गई है  वह उस स्थान पर है ही नहीं अर्थात करडावद छोटी की
बजाय यह स्कूल एलआईसी कालोनी में चल रही है वह भी पांच फिट की गली में
केवल एक ही कमरे में । दी गई अनुमति पत्र के अनुसार स्कूल का क्षेत्रफल 16000 वर्ग फीट बताया है व स्कूल भवन का क्षेत्र फल 2600 वर्गफीट का दर्शाया है, वही खेल मेैदान भी बताया गया है जो 12000 वर्गफीट का दर्शाया गया है ।  स्कूल में कुल 8 कक्ष बताये गये है  तथा कार्यालय एवं भंडार के
लिये अलग अलग कक्षों का होना भी दर्शाया हेै ।ओर तो और स्कूल में घंटी तक
नही दिखाई दी है ।  बीआरसी द्वारा अपने जांच प्रतिवेदन में इस स्कूल के
लिये जो अनुसंशा की है तथा शिक्षा विभाग झाबुआ ने अनुमति दी है वह पूरी
तरह स्कूल के मामले में कहीं भी लागू नही हो रही है । इससे तो लगता है कि
 नियमों को तांक पर रख कर तथा संबंधित स्कूल संचालक से  गांधी छाप से अनुग्रहित होने के चलते इस प्रकार से फर्जी मान्यताये दी जारही है । प्रदेश सरकार का लक्ष्य है कि बच्चों को मानक स्तर की शिक्षा  मिले इसके लिये स्कूलों में पूरी तरह से सभी खाना पूर्ति होना चाहिये । किन्तु चंद चांदी के टूकडो के लिये अपने जमीर को बेच कर इस तरह से स्कूलों को
मान्यता देने का फर्जीवाडा  धडल्ले से चल रहा है । जिला शिक्षा अधिकारी जिनका दायित्व होता है कि  वे ऐसे मान्यता दिये जाने वाली  स्कूलों का निरीक्षण करके उनके द्वारा नियमों के अनुसार सभी ओैपचारिकताएं पूरी की
जारही है या नही इसका स्वयं को भी सत्यापन करना चाहिये । किन्तु  बीआरसी
के प्रतिवेदन के आधार पर इस तरह गलत मान्यताये देने के लिये क्या उनकी भी
जिम्मेवारी नही होती है ? इस पर भी ध्यान देना जरूरी है ।
सबसे महत्वपूर्ण बात तो हमारे संज्ञान में यह भी आई कि एलआईसी कॉलोनी की
जिस गली में यह स्कूल संचालित हो रही है उस गली के बाहर बच्चों के खड़े
होने तक की जगह तक नहीं है । क्योंकि 5 फीट चैड़ी गली में एक ऑटो रिक्शा
भी खड़ा नहीं रह सकता है । इतनी संकडी गली के अंदर स्कूल का संचालन किया
जाना कई सवालिया निशान खडे कर रहा है । जबकि मुख्यालय पर जिले के मुखिया कलेक्टर के होते हुए भी इस प्रकार का शिक्षा के नाम पर फर्जीवाडा करके
धंधा चल रहा है तो जिले के अन्य स्थानों पर क्या हालात होंगे यह भी विचारणीय मुद्दा है । एलआईसी कालोनी में संचालित इस नीजि स्कूल में कक्षा एलकेजी से लेकर आठवी तक एक ही कमरें में बच्चों को किस प्रकार शिक्षा दी जारही होगी इसका निरीक्षण भी आज तक न तो बीआरसी ने किया और ना ही जिला शिक्षा अधिकारी स्तर से किसी जिम्मेवार ने । स्कूल के लिये जो निर्धारित मापदड होना चाहिये उसमे से किसी की भी पूर्ति यहां दिखाई नही दी । मान्यता पत्र में जो शर्ते उल्लेखित की गई है वे केवल कागजी ही साबित हो
रही है । बीआरसी ने इस स्कूल के लिये मान्यता देने के लिये निरीक्षण कर जो प्रतिवेदन दिया है वह पूरी तरह से मिथ्या ही साबित हो रहा है । बिना किसी वजूद के सभी सुविधाओं को अपने प्रतिवेदन में दर्शा कर मान्यता दिलान का काम किया है। इसके पीछे बडी सौदे बाजी से इंकार नही किया जासकता है ।
सरकार से अनुदान के साथ ही अन्य सुविधायें लेने के नाम पर  स्कूल संचालक
ने  बीआरसी एवं शिक्षा विभाग के जिम्मेवारों से संटिंग कर के ही कथित तौर
पर स्कूल के नाम पर अपनी दुकानदारी चलाने के लिये  झुठी जानकारी देकर
केवल औपचारिकता पूरी करने के नाम पर  करडावद छोटी की बजाय झाबुआ में
स्कूल चलाने का काम किया है । यदि इसकी उच्चस्तरीय जांच कराई जावें, बीआरसी के प्रतिवेदनों को देखा जावे तथा जिला शिक्षा अधिकारी द्वारा आंख मुंद कर मान्यता देने की बात को समझा जावे तो तय है कि स्कूलों को मान्यता देने के नाम पर  क्या कुछ नही हुआ होगा । जिला प्रशासन को इस और ध्यान देकर इसकी निष्पक्ष एजेंसी से जांच करवाई जाती है तो दुध का दुध और पानी का पानी साफ सामने आसकता हे । यह तो सिर्फ एक मामला संज्ञान में आया है जिले में इस तरह के न जाने कितने स्कूलों को इस प्रकार की मान्यतायें दी गई या दिलवाई गई होगी वह भी जांच का विषय हैे ।

शिक्षा के नाम पर चल रहा गोरखधंधा - आंख मुंद कर दी जारही स्कूलों को मान्यता

इनका कहना है-

1 - आपके पास जो मान्यता का रिकार्ड उपलब्ध है हमे वाट्सप पर डाल दो हम चेक
कर लेते है। इस स्कूल को मान्यता झाबुआ के लिये ही दी गई है।

 -भूपेन्द्रसिंह किराड, बीआरसी झाबुआ।

 2 - निजी स्कूलो की मान्यता के आवेदनो के प्रस्ताव बीआरसी द्वारा दिया जाता
है तथा उनके प्रस्ताव एवं अनुशंसा पर ही मान्यता के प्रमाण पत्र जारी
होते है। जिला शिक्षा अधिकारी स्वयं मौके स्थान पर नही जाते है। इसके
लिये बीआरसी ही जिम्मेवार रहते है।

- एम.एस. सोलंकी, जिला शिक्षा अधिकारी, झाबुआ

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