धर्म कथा सुनने से कर्म की निर्जरा होती है - प्रवर्तक श्री जिनेंद्र मुनि जी महाराज साहब | Dharm katha sunne se karm ki nirjara hoti hai
धर्म कथा सुनने से कर्म की निर्जरा होती है - प्रवर्तक श्री जिनेंद्र मुनि जी महाराज साहब
झाबुआ (अली असगर बोहरा) - स्वाध्याय के पांच भेद में धर्म कथा प्रमुख है धर्म कथा सुनने से कर्मों की निर्जरा होती है ,धर्म कथा सुनने से अधर्म की बुद्धि भावना शक्ति दूर होती है, धर्मकथा सुनने से अधर्मी व्यक्ति की धर्म कार्य में रुचि बढ़ती है व्याख्यान सुनने में मन लगता है अधर्म की भावना बुद्धि शक्ति नष्ट ना हो नष्ट हो तथा धर्म की भावना रुचि शक्ति बड़े व धर्म कथा है ,धर्मकथा सुनने से बुद्धि परिवर्तित होती है तथा उसकी धर्म के प्रति भावना उत्तरोत्तर बढ़ती जाती है ,जो शक्ति पाप कार्य में लगती थी उसका उपयोग आप धर्म कार्य करने में लगता है ,धर्मकथा सुनने से बालक, वृद्ध, युवा ,मूर्ख ,स्त्री ,पुरुष की रुचि धर्म में बढ़ती है दूसरों को देखकर प्रत्याख्यान, सामायिक,करने की भावना उत्पन्न होती है, अजैन भाई बहन में धर्म की भावना उत्पन्न होती है व्याख्यान ,मुहपत्ती का उपयोग करने लगते हैं तथा सामायिक करने भी लगते हैं ओर दीक्षा भी लेते है धर्म कथा सुनने से जो प्रवचन ग्रहण करता है तथा जीवन में कुछ पाकर पिछले पापों का पश्चाताप करता है तीर्थंकर भगवान की वाणी सुनकर भवि आत्मा साधुपन स्वीकार करते हैं धर्म कथा के माध्यम से अनेक शंकाएं दूर होती है श्रोता की इच्छा एवं रुचि अनुसार धर्म कथा कहने से श्रोताओं में धर्म की भावना जागृत होती है धर्म सभा में पूज्य गुरुदेव से 12 बच्चों ने होली नहीं खेलने पतंग नहीं उड़ा ने पटाखे नहीं फोड़ने किए बच्चों को प्रत्याख्यान दिए पूज्य अभय मुनि जी म सा प्रेरणा प्रदान की थी
पूज्य धर्मेंद्र मुनि जी म सा ने फरमाया की शरीर को जीव बनाता है भगवान का स्वरूप एवं भगवान बताते हैं केवली का स्वरूप केवली बताते हैं ध्यान दर्शन चरित्र और तप यह चारों एक साथ चलते हैं जीव अपने कर्म के कारण एक भव से दूसरे भव में जाता है जबसे जीवन है तब से कर्म है कर्म बदलते रहते हैं पर उनका प्रभाव हमेशा से चलता रहेगा कर्म सिद्धांत भूल जाने पर राग द्वेष बढ़ता है जीव स्वयं करता है ,मन वचन, काया की क्रिया चलती रहती है। धन व्यक्ति के पास होना ही उसका भाग्य नहीं है व्यक्ति के पास धन है पर स्वास्थ्य नहीं है परिवार साथ नहीं हो तो वह धन व्यर्थ है ,पुण्य की 42 प्रकृति है और पाप की 82 प्रकृति है, पुराने कर्म के उदय होने से भाग्य आता है ।धर्म सभा में महासती मंडल ने सुंदर स्तवन हम महावीर की संतान करें हम जीवन का निर्माण जय जय जिनशासन जय जय जिनशासन सुनाया धर्म सभा का संचालन श्री संघ के अध्यक्ष प्रदीप रुनवाल ने किया , उक्त जानकारी नवयुवक मंडल के सचिव पूर्वेश कटारिया ने दी
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