आप भगवान की पूजा करोगे, तो संसार आपकी पूजन करेगा - भगवताचार्य पं. अनुपानंदजी
झाबुआ (अली असगर बोहरा) - भागवत और भगवान एक समान है, यदि आप भगवान की पूजा करोंगे, तो संसार आपकी पूजन करेगा। ज्ञान यज्ञ, गंगा यज्ञ एवं साप्ताहिक भागवत कथा करवाना जीवन में बहुत जरूरी है। तीर्थों में जाकर भगवान की वाणी का श्रवण एवं दर्षन करना श्रेष्ठ होता है, किन्तु जो तीर्थ नहीं कर सके, वह भागवत कथा में उपस्थित होकर प्रभु का गुणानुवाद करता है, तो उसे सभी तीर्थों का लाभ स्वतः ही मिल जाता है।
उक्त प्रेरणादायी उद्गार स्थानीय पैलेस गार्डन पर श्रीमद् भागवत रसपास महोत्सव के प्रथम दिन 16 फरवरी, रविवार को दोपहर 12 बजे से शुरू हुई भावगत कथा में कानपुर (उत्तरप्रदेष) से पधारे भगवताचार्य पं. श्री अनुपानंदजी महाराज ने कथा का वाचन करते हुए कहीं। कथा आरंभ करने से पूर्व कथा की मुख्य यजमान श्रीमती आषा राषिनकर ने भागवत पुराण की पूजन कर वंदन किया एवं व्यासपीीठ पर विराजमान हुए पं. अनुपानंदजी महाराज का माल्यार्पण कर स्वागत किया। शहर की समस्त सामाजिक-धार्मिक संगठनों की ओर से श्रद्धेय अनुपानंदजी महाराज का स्वागत नीरजसिंह राठौर ने करने के पश्चात् संगीत मंडली का स्वागत उपस्थित संचालन एवं व्यवस्था समिति के वरिष्ठजनो में भागीरथ सतोगिया, शेषनारायण मालवीय, महेष पांडे, रविराजसिंह राठौर, बहादुर भाटी एवं महिलाओं में श्रीमती सुषीला भट्ट, कुंता सोनी, गायत्री सावलानी, शीतल जादौन ने किया। तत्पष्चात् संचालन करते हुए सेवानिवृत्त प्राचार्य एवं वरिष्ठ इतिहासकार डाॅ. केेके त्रिवेदी ने संक्षिप्त में श्रीमद् भागवत कथा के महत्व संबधी जानकारी दी एवं कथा का सार प्रस्तुत किया। तत्पष्चात् भजन उपरांत कथा आरंभ हुई। प्रथम दिन भगवताचार्य पं. अनुपानंदजी ने श्री प्रथम स्कंध भगवान के 24 अवतार, व्यास-नारदजी संवाद का वर्णन किया।
जीवन में सद्कर्म करना जरूरी आचार्य अनुपानंदजी ने कहा कि कलयुग के आरंभ पर संसार का भ्रमण करते हुए नारदजी ने देखा एक वयोवृद्धा, जिसने अपना नाम भक्ति बताया और उसकी गोद में वृद्ध, अकाल बीमार दो पुत्र ज्ञान और वैराग्य को देखा, जिससे मरमहत होकर देव ऋषि नारदजी ने श्रीमद् भागवत की कथा उन्हे सुनाई और वे भागवत कथा का श्रवण कर जीवंत और यौवन अवस्था को प्राप्त हुए। साथ ही उन्होंने सात्विक राजसी और तापसी के मन, कर्म और वचन का विषलेषण की व्याख्या की। नारद मुनिजी ने त्रिलोक का भमण करते हुए यह जाना कि ज्ञान और वैराग्य की स्थिति देखने के बाद उन्हे आभास हुआ कि जीवन में मनुष्य को सद्कर्म करना जरूरी है।
भगवान की जय बोलने में कंजूसी ना करे आचार्य ने आगे कहा कि हमे जीवन में भगवान की जय बोलने में कभी भी कंजूसी नहीं करना चाहिए। जय बोलने से हमारा तो भला होता है ओैर यदि यह जय यदि पड़ौसी की कान में सुनाई दिया, तो उसका भी अप्रत्यक्ष रूप से ही भला हो जाता है। यदि आप भगवान की पूजा करेंगे, तो संसार आपकी पूजा करेगा। मानव और पशु में अंतर यहीं है कि पशु अपना पेट भरने के लिए चलता है और मनुष्य वहीं होता है सभी के बारे में सोचता है। आज के कलयुगी काल में हम भगवान की जितनी पूजा करेंगे, उतना ही हमे लाभ प्राप् होगा। भागवत कथा सुनकर तो पापियों का भी कल्याण हो जाता है।
धन का संचय धर्म कार्य करने के लिए करना चाहिए
अनुपांनदजी ने धन का भी महत्व बताते हुए कहा कि धन का भी अपना महत्व है। जिस व्यक्ति के पास अधिक धन है, तो उसे उसका उपयोग धर्म कार्य करने के भी करना चाहिए। गगा द्वार अर्थात हरिद्वार, यह बद्रीनाथ भी है तो केदारनाथ भी है। बीच-बीच में धार्मिक भजनों में श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारी …. हे नाथ नारायण वासुदेवा …., भजलो रे मन राधा …. श्री राधा … श्री राधा जैसे संगीतमय समधुर भजन भी प्रस्तुत किए गए। प्रथम दिन कथा का श्रवण करने बड़ी संख्या में महिलाएं पहुंची। कथा प्रतिदिन दोपहर 12 बजे शाम 4.30 बजे तक चल रहीं है।
Tags
jhabua
