प्रवर्तक श्रीजीनेन्द्रमुनिजी की 34वीं दीक्षा जयन्ति मनाई
पूज्य श्री ने प्रमोद भाव से गण के सभी संत-सतियों को आगे बढ़ाया
थांदला (कादर शेख) - जिन शासन गौरव आध्यात्म योगी पूज्य श्रीधर्मदास गण प्रमुख जैनाचार्य पूज्य श्रीउमेशमुनिजी म.सा. "अणु" के अंतेवासी प्रथम शिष्य वर्तमान गण प्रवर्तक आगम विशारद बुद्ध पुत्र प्रवर्तक पूज्य श्रीजीनेन्द्रमुनिजी म.सा. की दीक्षा पर्याय के 34 वर्ष पूर्ण होने व 35वें वर्ष प्रवेश पर थान्दला के आजाद चौक स्थित पौषध भवन पर उन्ही की आज्ञानुवर्ती विदुषी महासती पूज्या श्रीनिखिलशीलाजी आदि ठाणा - 4 की पावन निश्रा में स्थानकवासी जैन श्रावक संघ ने गुणानुवाद सभा का आयोजन किया। धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए पूज्या श्रीनिखिलशीलाजी म.सा. ने फरमाया की जीवन की दो दिशा है एक लक्ष्य युक्त व दूसरी लक्ष्य विहीन। लक्षययुक्त दिशा में भी यदि विद्यार्थी निरन्तर स्कूल व शिक्षक बदलता रहे, मरीज निरन्तर डॉक्टर बदलता रहे, व्यक्ति वकील बदलता रहे व व्यापारी अपना व्यापार बदलता रहे तो उसे सफलता नही मिलती इसी तरह आध्यत्मिक यात्रा में भी लक्ष्य की निरंतरता सद्गुरु द्वारा बताए मार्ग की साधना से ही प्राप्त होती है। आपने घाणी के बैल व ना समझ बालक व खम्भे के उदाहरण से बताया कि जैसे घाणी का बैल एक ही स्थान पर चक्कर लगाता है व जिस प्रकार ना समझ बच्चा खम्भे को पकड़कर चक्कर लगाकर गिर पड़ता है वैसे ही लक्ष्य विहीन व्यक्ति भी चार गति चौरासी लाख जीव योनि में भटकता ही रहता है। आपने बताया कि पूज्यश्री का जीवन आगम युक्त था उन्होंने स्वयं 18 आगम कंठस्थ किये थे, विगय त्याग, सप्ताह में गुप्त तपस्या की निरंतरता के साथ आप 5 समिति 3 गुप्ति युक्त निर्मल संयम पालक थे। आपके सानिध्य में जिनशासन महक रहा है। आपने प्रमोद भावों से अनेक साधक आत्माओं को ज्ञान-दर्शन-चारित्र रूपी रत्न त्रय की आराधना में आगे बढ़ाया है। इस अवसर पर पूज्याश्री ने अणु प्रार्थना अब जय हो अपनी अपनी भी की अनुप्रेक्षा भी की।
राग-द्वेष युक्त महारोग को संयम साधना से दूर किया
धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए पूज्या श्रीप्रियशीलाजी म.सा. ने फरमाया कि जन्म मरण का रोग मिटाने के लिये आध्य्यात्म के डॉक्टर के पास जाना पड़ता है। पूज्यश्री भी अपने माता - पिता श्रीमती मंगलादेवी रूपचन्दजी गादिया (कुशलगढ़) से आज्ञा पाकर दादा गुरुदेव पूज्य श्रीसूर्यमुनिजी, पूज्य श्रीरूपेंद्रमुनिजी व पूज्य श्रीउमेशमुनिजी की शरण में गए जहाँ उन्होंने माघ सुदी दशमी आज के दिन ही महावीर के जिन शासन रूपी कॉलेज में प्रवेश पाया था। उसके बाद से उन्होंने मोह-कषाय रूप 32 महारोग को प्रमाद तज कर शुभ क्रिया द्वारा दूर करने का निरन्तर अभ्यास किया है।
यह हुए आयोजन
धर्मसभा में गुरु गुणानुवाद सभा के साथ ही पूज्या श्रीदिप्तीश्री जी ने गुरु बधाई स्तवन से अपने भाव व्यक्त किये। सकल जैन संघ कि ओर से संघपति जितेंद्र घोड़ावत ने गुरु गुणानुवाद करते हुए कहा कि आज प्रवर्तक श्री की 34वीं दीक्षा जयन्ति है तो उनके साथ उनकी सांसारिक बहन पुण्य पुंज पुण्यशीलाजी म.सा. व आज से 24 वर्ष पूर्व इसी मार्ग का अनुसरण कर उमेशाचार्य के पास दीक्षित हुए वर्धमान परिवार के पूज्य श्रीवर्धमानमुनिजी, अणुवत्स पूज्य श्रीसंयतमुनिजी, पूज्या श्रीदिव्यशीलाजी व पूज्या श्रीप्रियशीलाजी म.सा. की भी दीक्षा जयन्ति है। सकल संघ आपके पावन सानिध्य में आध्य्यात्म यात्रा में आगे बढ़ रहा है इसके लिये आपके गुणगान करते हुए आप सभी चारित्र आत्माओं के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए आपके यशस्वी व दीर्घायु जीवन की मंगल कामना व्यक्त करता है। इस अवसर पर पूज्या महासती की प्रेरणा से कई श्रावक-श्राविकाओं ने व्रत प्रत्याख्यान ग्रहण किये। सायंकाल प्रतिक्रमण में तीन सामयिक का लक्ष्य रखा गया जिसकी प्रभावना का लाभ मनीष कुमार मनोज कुमार सेठिया परिवार ने लिया। व्याख्यान प्रभावना का लाभ शैलेष पीपाड़ा रतलामवालों ने लिया। इस अवसर पर शैतानमल लोढ़ा व आशा बहन लुनावाला ने विभिन्न संस्थाओं में द्रव्य सहयोग दिया। उक्त जानकारी संघ प्रवक्ता पवन नाहर ने दी।
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