संथारा ग्रहण कर मृत्युंजय आत्मा मीता चौहान के लिये सकल जैन संघ ने किया गुणानुवाद सभा का आयोजन
थान्दला (कादर शेख) - जैन दर्शन में अंतिम मनोरथ रूप मृत्युंजय के लिये संथारे का विधान है। जीवन भर साधक आत्मा आराधना करते हुए मृत्यु की निकट जानकर अंतिम समय समाधि मरण की भावना व्यक्त करते हुए सभी शारिरिक क्रियाओं का त्याग कर देता है वही पण्डित मरण संथारा कहलाता है। जैनेत्तर बहन श्रीमती मीता सुरेशचंद्र चौहान ने अपनी असाध्य रोग स्थिति में मृत्यु को निकट जानकर नगर में विराजित विदुषी साध्वी धैर्यप्रभाजी व निखिलशीलाजी म.सा. के मुखरविन्द से नवकार स्मरण करते हुए संथारा ग्रहण किया। जैनों को भी दुर्लभ संथारा उन्हें सहज प्राप्त हुआ और पूर्ण चेतना के साथ निर्मलता से पालन करते हुए अपने प्राण त्यागे। उनके निर्मल संथारा ग्रहण कर जैन दर्शन की आस्था भाव के गुण अनुमोदन में थान्दला के सकल जैन श्रीसंघ ने उनके लिये गुणानुवाद सभा का आयोजन किया वही चौहान परिवार का अभिनन्दन भी किया।
गुणानुवाद सभा मे प्रमुख वक्ता के रूप में पूज्य श्रीधर्मदास जैन स्वाध्यायी संघ के संचालक वरिष्ठ स्वाध्यायी भरत भंसाली ने पंडित मरण के व्यापक अर्थ बताते हुए कहा कि संथारा केवल अन्न जल का त्याग नही है अपितु शारीरिक इच्छाओं का त्याग भी है। उन्होंने आत्महत्या से भिन्न इसे महोत्सव बताया। स्वाध्यायी वीरेंद्र मेहता दिगम्बर समाज के नवागत सचिव धर्मेंद्र मिण्डा ने भी संथारा ग्रहण करने वाली आत्मा के गुण अनुमोदन में अपने भाव व्यक्त किये। स्थानकवासी जैन श्रीसंघ अध्यक्ष जितेंद्र घोड़ावत, दिगम्बर समाज अध्यक्ष अरुण कोठारी, मूर्तिपूजक श्रीसंघ से संजय फुलफगर, तेरापंथ महासभा आदि से भी अपने संघ परिवार कि ओर से मीता बहन के गुणानुवाद किया व चौहान परिवार के धर्म सहायक बनने पर उन्हें धन्यवाद दिया। इस अवसर पर सकल जैन संघ ने चौहान परिवार के साहस को नमन करते हुए उन्हें धन्यवाद स्वरूप अभिनन्दन पत्र भेंट किया। अभिनन्दन पत्र का वाचन ललित जैन नवयुवक मण्डल अध्यक्ष कपिल पीचा ने किया वही गुणानुवाद सभा का कुशल संचालन आईजा के प्रदेशाध्यक्ष संघ प्रवक्ता पवन नाहर ने किया। चौहान परिवार द्वारा गुणानुवाद सभा में पधारें सभी जनों का धन्यवाद ज्ञापित किया गया।
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