राजस्थानी संस्कृति की झलक दर्शाते भेड़ पालकों की कहानी सबसे निराली | Rajasthani sanskrti ki jhalak darshate bhed palko ki kahani sabse nirali

राजस्थानी संस्कृति की झलक दर्शाते भेड़ पालकों की कहानी सबसे निराली

राजस्थानी संस्कृति की झलक दर्शाते भेड़ पालकों की कहानी सबसे निराली

धामनोद (मुकेश सोडानी) - राजस्थान में गर्मी और चारे-पानी की कमी के कारण मध्यप्रदेश में भेड़-बकरियां और ऊंटों के साथ कई परिवार आए हुए हैं। सैकड़ों किलोमीटर दूर से चलकर इनके साथ बच्चे भी आए हैं, जो पढ़ने और खेलकूद की उम्र में अपने परिवार के साथ कष्टों में जी रहे हैं।राजस्थान के जोधपुर जिले से शुरू होकर इन चरवाहों का काफिला रतलाम, मंदसौर, धार से होते हुए क्षेत्र में आता है। यह चरवाहे करीब 9 माह के लिए अपने परिवार के साथ आते हैं। ये चरवाहे ऊंट और कुत्ते भी लेकर चलते हैं। ऊंट  पर खाट, आटा-दाल और मेमने लाद दिए जाते हैं। कुत्ते रात के समय काफिला के लिए सुरक्षा करते हैं।

जोधपुर से आए तेज सिंह ने बताया कि वे करीब 600 भेड़ों को लेकर यहां आए हैं। जोधपुर के आसपास पानी की समस्या होती है। यह भेड़ें हमें ठेके पर दी जाती है। बाद में हम इन्हें वापस कर देते हैं। तेज सिंह के परिवार में करीब 22 लोग आए हैं। इनमें महिलाएं बेटे और पोते-पोती भी शामिल हैं।

चरवाहों के परिवार जीवन यापन करने के लिए बच्चों को भी साथ रखते हैं।

बच्चों को शिक्षा होती है प्रभावित

तेज सिंह ने बताया कि वे यदि बच्चों को पढ़ने के लिए गांव छोड़ आएंगे तो उनकी परवरिश कौन करेगा। इसलिए पेट पालने के लिए बच्चों को साथ लेकर ही आना मजबूरी है। तेज सिंह का कहना है कि जब हम जोधपुर में रहते हैं तो स्थानीय शिक्षक बच्चों को पढ़ाने बुला लेते हैं।

अगस्त-सितंबर में वापसी

यह चरवाहे गर्मी की दस्तक के पहले ही मध्य प्रदेश की ओर बढ़ जाते हैं और बारिश की दस्तक के साथ आगामी ठंड के मौसम के पहले ही लौटने लगते हैं।

काफिले की सुरक्षा के लिए करीब आधा दर्जन कुत्ते रखते हैं।

काफिले सुरक्षा के लिए आए हुए भेड़ पालक अपने साथ ऊंट भेड़ों के अलावा कुत्ते पालते हैं रात में जब यहां जहां पर भी रुकते हैं सोने पर कुत्ते इनकी पेड़ों की रक्षा करते हैं यह कुत्ते भी अपने साथ राजस्थान से ही लेकर आते हैं जो पूरी वफादारी से अपना काम करते है

खाद की पूर्ति होती है

यहां के खेत मालिकों का भी मानना है कि जब यह चरवाहे आते हैं तो सूखे पड़े खतों में हजारों भेड़े चरने से उन्हें खाद मिल जाती है। इससे फसलों को काफी फायदा होता है। इसके बदले में भेड़ पालक खेत में अपनी भेड़ों को चराते है

राजस्थान से आने वाले यह परिवार राजस्थानी पारंपरिक वेशभूषा में रहते हैं।

क्षेत्र में यह अपनी पारंपरिक वेशभूषा से कभी दूरी नहीं बनाते महिलाएं सफेद कलर की चूड़ियां जो की राजस्थान की निशानी मानी जाती है हाथों में पहनती है वही पुरुष भी अपने पारंपरिक परिधान में ही रहते हैं यही इन लोगों की पहचान है

भेड़ बेचकर करते हैं गुजारा

ठेके पर भेड़ चराने आते हैं और उनकी आय का साधन भी वहीं होता है। जरूरत पडने पर भेड़ें और मेमने बेचकर गुजारा करते हैं। एक भेड़ साल में औसतन दो बच्चे देती है। जिसमें मेमने की कीमत ढाई हजार रुपए के करीब होती है, जबकि भेड़ की कीमत पांच से छह हजार होती है।

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