अंधाधुंध कटाई से वन क्षेत्र बन रहे मरुस्थल जिम्मेदारों का ध्यान नहीं
धामनोद (मुकेश सोडानी) - क्षेत्र के वन अंधाधुंध कटाई के कारण वृक्ष विहीन होते जा रहे हैं। झाड़ियां ही वनों की अब शोभा बढ़ा रही हैं, वहीं कटाई से खाली हो रही वन भूमि अवैध कब्जेदारों की भेंट चढ़ रही है जबकि वन विभाग के जवाबदार अपने ऑफिस में बैठकर कागजी कार्रवाई पर ही विभाग को वाहवाही दिलाने में लगे है जबकि धरातल पर स्थिति कुछ और ही हालात बयां कर रही है
एक ओर प्रतिवर्ष वन महोत्सव एवं विश्व पर्यावरण दिवसों का आयोजन कर वृक्षों के मानव जीवन में उपयोग उनके लाभ पर लंबे चौड़े भाषण, प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है तो दूसरी तरफ वनों में प्राकृतिक रूप से उगे वृक्षों की सुरक्षा तक नहीं की जा रही। इस कारण हरे भरे वनों को चंद रुपयों के लिए काटकर खुलेआम भेजा जा रहा है जो नित्य का तथा हर व्यक्ति की मौजूदगी में खुलेआम हो रहा है। विंध्याचल की पहाड़ी क्षेत्र में इन दिनों कटाई बेरहमी से अंधाधुंध की जा रही है।जलावन एंव अन्य सामग्री के लिए हरे भरे वृक्षों को काटकर उन्हें चीरकर गट्ठर बना लोगो भेजा जा रहा है।
सूत्रों का कहना है कि रात्रि में कुछ लकड़ी माफिया के घरों तक वृक्षों की कटाई कर लकड़िया खुलेआम भेजी जाती हैं। लोगों का कहना है कि इस कार्य में कुछ बाहरी तत्व शामिल हैं जो स्वयं पर्दे के पीछे रहकर गरीब मजदूर वर्ग को आगे कर वनों की कटाई कराकर लकड़ी मांग के अनुसार मनचाही जगह भेज मोटी राशि अर्जित कर रहे हैं जबकि वन विभाग इस विषय में पूर्ण रूप से चुप्पी साध कर बैठा है लापरवाही के कारण क्षेत्र में वृक्षों की अंधाधुंध कटाई जारी है
विंध्याचल का अस्तित्व हो रहा खत्म
पहाड़ों के लगातार कटने से जहां पर्यावरण असंतुलित हो रहा है वही विंध्याचल जैसे धरोहर का अस्तित्व भी खत्म हो रहा है विंध्याचल के पहाड़ों में जाकर देखा तो कई पेड़ तने से कटे हुए पाए गए जो बेरहमी से बिना किसी निर्देश के लोगों के द्वारा काट लिए गए बताया जाता है कि क्षेत्र में लकड़ी माफिया भी सतर्क है जो भोले भाले आदिवासी लोगों के साथ मिलकर इन लकड़ियों को बहुत ही कम कीमत पर अर्जित कर बाद में फर्नीचर बनाने में इनका उपयोग लेकर लाखों कमा रहे विभाग के लिए अब यह एक बढ़ा प्रश्न चिन्ह है
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