ज्ञान रूपी उत्तम रसायन से व्याधि मुक्त करने वाले उपकारी गुरू उपाध्याय कहलाते हे - प्रन्यास प्रवर जिनेन्द्र विजयजी ‘जलज’, 9 अक्टूबर को साधु पद की होगी आराधना | Gyanrupi uttam rasayan se vyadhi mukt karne wale upkari guru

ज्ञान रूपी उत्तम रसायन से व्याधि मुक्त करने वाले उपकारी गुरू उपाध्याय कहलाते हे :- प्रन्यास प्रवर जिनेन्द्र विजयजी ‘जलज’, 9 अक्टूबर को साधु पद की होगी आराधना

ज्ञान रूपी उत्तम रसायन से व्याधि मुक्त करने वाले उपकारी गुरू उपाध्याय कहलाते हे :- प्रन्यास प्रवर जिनेन्द्र विजयजी ‘जलज’, 9 अक्टूबर को साधु पद की होगी आराधना

झाबुआ (मनीष कुमट) - स्थानीय श्री ऋषभदेव बावन जिनालय के भव्य प्रांगण में शाश्वती श्री सिद्ध चक्र नवपद ओलीजी की आराधना चल रहीं हे। नौ दिवसीय अखंड आराधना में नियमित रूप से साधक त्रिकाल, देववंदन, प्रतिक्रमण, कायात्सर्ग, जिन पूजा, पदक्षिणा, व्याख्यान श्रवण, सामायिक, मंत्र पद जाप के साथ व्रतपालन आदि सात्विक क्रियाएं अष्ट प्रभावक आचार्य नरेन्द्र सूरीश्वरजी मसा की पावन एवं शुभ निश्रा में कर रहे है

साथ ही प्रन्यास प्रवर, मालव भूषण, झाबुआ जिले की माटी के सपूत श्री जिनेन्द्र विजयजी मसा ‘जलज’ की मधुर शैली में श्रीपाल राजा-मयणा सुंदरी का रास शास्त्रीय रागो से गाते हुए एक-एक पद का सुंदर विवेचन अपने प्रवचन में कर रहे है। 8 अक्टूबर, मंगलवार को चतुर्थ दिन उपाध्याय पद की महत्व समझाते हुए प्रवचन में प्रन्यास प्रवर ने कहा कि मोह रूपी सर्प के काटने से जिनका ज्ञान-प्राण नष्ट हो गया हे, ऐसे जीवों को जो जांगुली मंत्रवादी की भांति अपूर्व ज्ञान सुनाकर नया चैतन्य प्रदान करते है, अज्ञान रूपी व्याधि से पीडि़त प्राणियां को जो धन्वंतरि वैद्य की भांति, श्रुत ज्ञान रूप, उत्तम रसायन देकर व्याधि मुक्त कर देते है, वे जैन शासन चतुर्थ पद पर विराजमान उपाध्याय गुरू भगवंत कहते है।

उपाध्याय को वंदन करने से कर्म रूपी वेदना दूर होती है

बावन अक्षर रूप, बावन चंदन के रस के समान अपने शुद्ध वचनों के द्वारा जो भव्य जीवों के अहित रूप ताप का सवर्था नाश करने वाले तथा धर्म शासन को उज्जवल करने वाले, पच्चीस गुणधारी-उपकारी उपाध्याय को वंदन करने से कर्म रूपी वेदना दूर हो जाती है। अंत में प्रन्यास प्रवर ने बताया कि आत्मा के शत्रुआें का जीतने का कारण को दशहरा पर्व कहते है।

‘नमो उवज्झायाणं’ के किए जाप

बावन जिनालय में मंगलवार को सुबह 6 बजे सिद्ध चक्र के यंत्र पर पंचामृत से अभिषेक किया गया। बाद केसर पूजन हुई। सिद्ध च्रक्रजी की स्नात्र पूजन पढ़ाई गई। आराधकां द्वारा तीसरे दिन 25 स्वस्तिक, 25 खमासमणे, 25 लोग्सय का काउसग्ग कर ‘नमो उवज्झायाणं’ के जाप किए गए। 20 माला अर्थात 2160 बार जाप किया गया। तत्पश्चात् सिद्ध चक्र की नवपदों की सामूहिक आरती हुई। दोपहर में आयंबिल का सभी आराधकों ने लाभ लिया। शाम को सामूहिक प्रतिक्रमण का आयोजन हुआ। 9 अक्टूबर, बुधवार को पांचवे दिन आराधक साधु पद की आराधना करेंगे।

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