9 दिवसीय शाश्वती श्री सिद्ध चक्र नवपद ओलीजी की आराधना 5 अक्टूबर से होगी आरंभ
अष्ट प्रभावक एवं प्रन्यास प्रवर प्रतिदिन अलग-अलग पदों की करेंगे व्याख्या
झाबुआ (मनीष कुमट) - जैन तीर्थ श्री ऋषभदेव बावन जिनालय में 9 दिवसीय शाश्वती श्री सिद्ध चक्र नवपद ओलीजी की आराधना 5 अक्टूबर, शनिवार से आरंभ होगी। यह आराधना 70 से अधिक आराधक करेंगे। अष्ट प्रभावक नरेन्द्र सूरीश्वरजी मसा ‘नवल’ एवं प्रन्यास प्रवर जिनेन्द्र विजयजी मसा ‘जलज’ द्वारा प्रतिदिन अलग-अलग पदों की व्याख्या की जाएगी। इस विशेष आराधना के आयोजक श्वेतांबर जैन श्री संघ एवं श्री नवल स्वर्ण जयंती चातुर्मास समिति है।
जानकारी देते हुए श्वेतांबर जैन श्री संघ अध्यक्ष संजय मेहता एवं चातुर्मास समिति अध्यक्ष कमलेश कोठारी ने बताया कि शाश्वती श्री सिद्ध चक्र पद नवपद ओलीजी की आराधना के क्रम में नौ दिनों में प्रथम दिन अरिंहत, द्वितीय दिवस सिद्ध, तृतीय दिवस आचार्य, चैथे दिन उपाध्याय, पांचवे दिन साधु, छटवे दिन दर्शन, सातवे दिन ज्ञान, आठवे दिन चारित्र एवं नवें दिन तप पद की आराधना की जाएगी। आराधना में प्रत्येक आराधक इन पदों के क्रमानुसार स्वस्तिक, काउसक, खमासमणा, देववंदन, प्रतिक्रमण, के साथ ही प्रतिदिन आराधक द्वारा आयबिल तप की आराधना की जाएगाी। प्रत्येक पद की प्रतिदिन 2160 बार अर्थात 20 माला गिनी जाएगी। इसके साथ ही नौ दिनांे तक अष्ट प्रभावक एवं प्रन्यास प्रवर द्वारा अपने प्रवचनों में प्रतिदिन एक-एक पद की व्याख्या करने के साथ श्रीपाल राजा एवं मयणा सुंदरी के कथानक का वाचन किया जाएगा। प्रवचन सुबह 9 से 10 बजे तक होंगे।
पारणे के साथ आराधना होगी संपन्न
यह आराधना 5 अक्टूबर आसोज सुदी सप्तमी से आरंभ होकर 13 अक्टूबर, आसोज सुदी पूणिर्मा तक चलेगी। अंतिम दिन 14 अक्टूबर को पारणे के साथ संपन्न होगी। 14 अक्टूबर को सभी तपस्वियों (आराधकों) के पारणे होंगे। इस संपूर्ण आराधना एवं पारणे के लाभार्थी सुरेन्द्रकुमार, मनोजकुमार, हार्दिक बाबेल परिवार रहेगा।
श्वेतांबर जैन श्री संघ अध्यक्ष संजय मेहता ने श्री सिद्ध चक्र नवपद ओलीजी की आराधना का महत्व बताया कि सभी प्रकार के तपों में सवश्रेष्ठ तप आयंबिल तप (ओलीजी तप ) को माना गया है। इसमें नौ दिनों तक अलग-अलग पदों की आराधना करने से तपस्वी कीे शारीरिक तकलीफे दूर होने के साथ आत्मिक शांति प्राप्ति होती है एवं वह मोक्ष की ओर अग्रसर होता है। तपस्वी तपस्या से इस लोक में शरीर को स्वस्थ बनाता है वहीं पर लोक में मोक्ष के सुख को प्राप्त करने का अधिकारी बनता है। जन्म, जरा, मृत्यु के दुखों को दूर करने का वाला यह तप महान तप माना गया है। सिद्ध चक्रजी के यंत्र का अभिषेक पंचामृत से किया जाता है, उसका पक्षालन करने से अमृत के समान संचार प्राप्त होता है। इसका शरीर पर पक्षालन करने से आदि, व्याधि, उपाधि दूर होती है, इसलिए इस आराधना को करना अत्यंत आवश्यक है।
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