उम्रदराज हो चला नर्मदा नदी पर बना पुल
डिडौरी (पप्पू पड़वार) - जबलपुर से तीर्थस्थल अमरकंटक को सड़क मार्ग से जोड़ने वाला जिला मुख्यालय डिण्डौरी के समीप जोगीटिकरिया स्थित नर्मदा नदी पर बना पुल भले ही उम्रदराज हो चला हो लेकिन नर्मदा के प्रचंड वेग एवं लहरों के उग्र थपेड़ो के सामने आज भी डटकर कर खड़ा है। नर्मदा ने अनेकों बार जलमग्न कर इसके होंसलो को तोड़ने का भरसक प्रयास भी किया। लेकिन हर बार अपनी मजबूत ईच्छाशक्ति की बदौलत से जस का तस खड़ा है।
ब्रिटिश शासन काल में निर्मित यह पुल वर्षों बीत जाने के बाद भी क्षमता से कही अधिक भार वहन करने में मजबूर है। साथ ही इस पर आवागमन सुचारू रुप से चल सकता है।करीब 19 पिल्लर पर टिका हुआ आजादी के पहले निर्मित अपनी समय सीमा पार कर चुका यह पुल उफनती नर्मदा के वेग को सम्भालने में अभी तक सक्षम है।
नही है 30-40 टन माल लोड क्षमता
ट्रैफिक इंजीनियर व पीडब्ल्यूडी के अधिकारी बताते हैं कि जब जोगीटिकरियाका निर्माण हुआ होगा , उस समय न तो वाहनों की संख्या अधिक थी और न ही 30-40 टन माल लोड करने वाले भारी वाहन ही थे। लेकिन बीते तीन दशक में एेसे वाहन न सिर्फ बने बल्कि इनकी संख्या में कई गुना इजाफा भी हुआ है। इतना ही नहीं पुल की मरम्मत भी कभी उस ढंग से नहीं की गई, जिससे यह मजबूत बना रह सके।
पुल में हो जाते हैं सुराख
शहर के वरिष्ठ नागरिकों की माने तो जोगीटिकरिया पुल के पुराने होने का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि हर छः आठ महीने में पुल का हिस्सा टूट कर गिरने से बड़े-बड़े सुराख उभरकर सामने आ जाते हैं जिसे मरम्मत के नाम पर संबंधित विभाग खाना पूर्ति करते नजर आते हैं भारी वाहनों के आवागमन व ओव्हर लोडिंग के कारण इस पुल के नीचे की परते दरकने लगी हैं। औसतन इस पुल के ऊपर से प्रतिदिन सैकडों वाहन गुजरते हैं,
ब्रिटिश शासन काल में नर्मदा
नदी को सुरक्षित पार करने के लिए जब कोई ठोस विकल्प नहीं था तो ये पुल बनाया गया। लेकिन आजादी बाद संबंधित अधिकारी और क्षेत्र के नेता ये भूल गए कि तेजी से बढ़ रहे भारी वाहनों की संख्या देखते हुए विकल्प के रूप में एक और पुल का निर्माण कराना प्राथमिकता होनी चाहिए। अब खुदा न खास्ता अगर किसी अनहोनी बस ये पुल असुरक्षित घोषित करने की बात आए तो हमारे नेताओं व प्रशासन के पास कोई दूसरा विकल्प मुहैया कराने तक की स्थिति नहीं बचेगी।
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