शोले के गब्बर सिंह पहुंचे थांदला | Sholay ke gabbar singh pahuche thandla

शोले के गब्बर सिंह पहुंचे थांदला

शोले के गब्बर सिंह पहुंचे थांदला

थांदला (कादर शेख) - आजकल का जमाना टिकटोक का जमाना है लेकिन एक समय था जब शहर नगर गॉव में बहरूपिया लोगों का शोले के गब्बर सिंह पहुंचे थांदला कर अपना गुजर बसर करता था। आज लगभग दो वर्ष बाद नगर में शोले के गब्बरसिंग बहरूपिया देखने को मिला उसे देखकर आनंद भी आया और एक वेदना मन में उमड़ पड़ी। अपने पूर्वजों से प्राप्त हुनर की बखूबी निभाने वाले बाबूभाई भट्ट बहरूपिया 18 पीढ़ियों से विभिन्न वेशभूषा एवं भावाभिव्यक्ति के द्वारा लोगों का मनोरंजन करने आ रहे है। आज यह कला लगभग लुप्त हो चुकी है लेकिन फिर भी अपने व अपने परिवार का भरण पोषण करने के लिये बाबूभाई जो पिछले 40 बरस से इस नगर में आ रहे है आज भी उसी जोश के साथ कभी शंकर भोलेनाथ, नारदमुनि, मेरा गांव मेरा देश का डाकू जब्बरसिंह, जानी दुश्मन का खूंखार राक्षस, भिखारी, अपंग बनकर अपनी डायलॉग बोलने की सुंदर कला से 10 दिनों तक जनता का मनोरंजन करते हुए उनसे मिलने वाली दक्षिणा से अपना गुजारा करते है। वे लगभग सभी प्रांतों में अपना अभिनय बता चुके है वही गोवा फेस्टिवल के साथ विदेश मे भी जा चुके है। उन्होंने बताया कि उनके तीन बेटे भी इसी कला में पारंगत है व वे भी बहरूपिया बनकर अपना व अपने आश्रितों का पेट भरते है। इस प्रतिनिधि के माध्यम से उन्होंने जनता का शुक्रिया अदा करते हुए कहा कि वह इसी तरह का प्यार देते रहे वही सरकार से अपील की की उन्हें इस कला को जिंदा रखने के लिये कुछ प्रयास करना चाहिये। आज मोबाइल युग मे जब भी टिकटोक जैसे एप पर किसी को अभिनय करते देखता हूँ मुझे उस एप निर्माण में कहि ना कहि बाबू भाई जैसे पारंगत कलाकार का अप्रत्यक्ष हाथ जरूर दिखाई देता है। भारत सरकार, मध्यप्रदेश शासन प्रशासन को चाहिये की वह भी लुप्त होती बहरूपिया कला का शासकीय योजनाओं के प्रचार प्रसार में करते हुए उन्हें संजीवनी प्रदान करें।

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