संतों का साथ दुलर्भता से प्राप्त होता है - प्रन्यास प्रवर जिनेन्द्र विजयजी | Santo ka sath durlabta se prapt hota hai

संतों का साथ दुलर्भता से प्राप्त होता है - प्रन्यास प्रवर जिनेन्द्र विजयजी


अष्ट प्रभावक ने गुलाब विजय की मांगलिक श्रवण करवाकर जीवन वृतांत बताया

झाबुआ (मनीष कुमट) - बचपन में बहुमान करने के पांच कारण होते है, बचपन निर्दोष होता है, चिंता रहित होता है, हंसमुख होता है, कोतूहल वाला होता है और सबको प्यारा होता है।  

उक्त बात स्थानीय श्री ऋषभदेव बावन बावन जिनालय के पोषध शाला भवन मे 27 सितंबर, शुक्रवार को सुबह धर्मसभा में समाजजनों को प्रवचन देते हुए प्रन्यास प्रवर जिनेन्द्र विजयजी मसा ने कहीं। प्रन्यास प्रवर ने भरहेसर सज्झाय के माध्यम से आज दो महापुरूषों अर्निका पुत्र एवं अति मुक्तक के जीवन का वर्णन किया एवं बताया कि अति मुक्तक ने अपने जीवन के अंदर गौतम स्वामीजी के साथ गौचरी जाते समय मन में यह प्रण लिया कि मैं दीक्षा लूंगा। मां से संवाद किया और छोटे से बालक ने मां से कहा ‘मै जो जानता हूूॅ, वह नहीं जानता और जो नहीं जानता हूॅ, वह जानता हूॅ अर्थात मैं जानता हूॅ कि मुझे मृत्यु आएगी, परन्तु मर कर कहां जाऊंगा, यह नहीं पता। इसी प्रकार यह जानता हूॅ कि सुकृत करूंगा, तो मरने के बाद सुगति में ही जाऊंगा, है मां मुझे आज्ञा दीजिए। उन्होंने आगे कहा कि ताल मिले, राज मिले, लोक मिले, सब लोग मिले, परन्तु संत समागम दुलर्भता से प्राप्त होता है। अष्ट प्रभावक नरेन्द्र सूरीजी ने शुक्रवार को गुलाब विजयजी की मांगलिक सुनाकर उनका जीवन वृतांत बताया। 

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