धीक्कार है वह पुत्र, जो माँ-बाप की सेवा नही करता - पंडित मनमोहन जी | Dhikkar hai vah purt jo maa baap ki seva nhi krta

धीक्कार है वह पुत्र, जो माँ-बाप की सेवा नही करता - पंडित मनमोहन जी

धीक्कार है वह पुत्र, जो माँ-बाप की सेवा नही करता.. पंडित मनमोहन जी

अलीराजपुर (अली असगर बोहरा) - स्थानिय शेरूभाई माली की बाडी कुम्हारवाड़ा में चल रही भागवत कथा के दूसरे दिन पं. मनमोहन अत्रे ने कहा किः धीक्कार है वह पुत्र जो माँ-बाप की सेवा नही करता। एक माता चार पुत्रों का पालन पोषण कर लेती है। किन्तु चार पुत्र भी मिलकर एक माँ-बाप का पालन पोषण करना बोझ समझते है। माता-पिता का बँटवारा करने वाले पुत्र ईश्वर को ढूडने मंदिर में जाते है, जिस ईश्वर को देखा नही, उसके लिए पागलपन और घर में साक्षात बैठे हुए देवता रूपी माँ-बाप का तिरस्कार, माता-पिता का अपमान,अवहेलना, से बडकर संसार का कोई पाप नही है। अपने माँ-बाप को त्याग कर ससुराल में आयी बहु, यदि सांस-ससुर मे ही अपने माता-पिता की मूरत देखने लग जाए तो परिवार स्वर्ग बन जाए, बहू धन्य हो जाए।

पं. अत्रे ने आगे बताया कि, संतानहिनता संसार का सबसे बड़ा दुःख है। संतानहित का मुंख देखना भी लोग अपशकुन मानते है। संतानहित हर समय,हर पल दुःखी रहता है। संतानहिन के परिवार के सुने पन से उसका संसार ही सुना हो जाता है। उसे नाना प्रकार की चिंताए सताती है। अपना बुढ़ापा असहाय महसूस होता यदि मनुष्य के कुल में एक भी सुपुत्र जन्म ले ले तो वह उस परिवार की 21 पिडियों को तार देता है।
आत्महत्या जीवन का अंत नही।

आत्महत्या करने से जीवन का अंत नही होता वरन आत्महंता बहुत ही दुःखदायी प्रेतयोनी को प्राप्त हो जाता है। आत्महंता जिसकी आयु पूर्ण नही होती वह मरकर प्रेत बनकर नाना प्रकार के कष्ट भोगता, यहां,वहा कष्टकारी जगहों पर भटकता रहता है। और हर जगह से भगाया तिरस्कृत किया जाता है। व स्वयं तो कष्ट पाता ही है, संसार के लिए भी कष्टकारी रहता है। जीवित मनुष्यों को तंग करता है एवं भय निर्मित करता है। प्रेत स्वयं भयभीत रहता व उसे ईश्वर की उपस्थिति उसके नाम मात्र लेने, जयकारा सुनने से भी कष्ट होता है। भागवत कथा अनुसार धुंधकारी ने भी जीवन भर पाप, व्यभिचार, दुराचार किया माँ-बाप को सताया,प्राणीयों को सताया चोरी की कपट किया अंत में उसकी हत्या हुई व प्रेत बना, जिसे उसीके भाई गऊकरण ने भागवत कथा सुनाकर प्रेतयोनी से मुक्त करवाया। भागवत कथा है ही मोक्ष प्रदायीनी।

मुख्य यजमान शेरूभाई साखला ने बताया कि यह कथा प्रतिदिन दोपहर 12 से 4 बजे तक 23 सितम्बर तक चलेगी। 20 सितम्बर को कृष्ण जन्मोत्सव मनाया जाएगा। 21 सितम्बर को कृष्ण की बाल लीला, गोर्वधन पूजा, एवं छप्पन भोग लगाया जाएगा। 22 सितम्बर को कृष्ण रूकमणी विवाह होगा। 23 सितम्बर को सुदामा चरित्र,परिक्षित स्वर्गारोहण, कथा विश्राम एव हवन होगा।

पं. अत्रे ने आगे बताया कि कथा में आकर बैठ जाने मात्र से कथा का लाभ नही मिलता है। कथा को अपने हदय मैं बैठाना पड़ता है कथा के ज्ञान को ग्रहण करना पड़ता है सतसंग मे बताए ज्ञान को अपने जीवन में उतरना पड़ता है एवं उस अनुसार आचरण करना पड़ता है। हम कथाओ मे ईश्वर द्वारा खाद्य फल देने का वृतांत सुनते है। वह केवल पेड़ का फल नही होता, अपितु प्रदाता का पूरे जीवन की गई तपस्या, पुण्य सदकर्मां का रूप होता है। प्रदाता फल के रुप में अपना अर्जित सभी कुछ भक्त को दे देता है।

आज की कथा व्यवस्था संयोजन निंरजन मेहता ने किया आरती एवं हनुमान चालिसा पश्चात कथा प्रारंभ हुई दिनों-दिन भक्तों-श्रोताओं की संख्या बढ़ती जा रही है वर्षा के बाद भी श्रोताओं में कथा के प्रति काफी आकषर्ण रहा।

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