दीपावली के नजदीक आते ही माटी कला के पुत्रों ने मिट्टी के दीपक बनाना किये शुरू | Dipawali ke nazdik aate hi kala ke putro ne mitti ke deepak banana kiye shuru

दीपावली के नजदीक आते ही माटी कला के पुत्रों ने मिट्टी के दीपक बनाना किये शुरू

दीपावली के नजदीक आते ही माटी कला के पुत्रों ने मिट्टी के दीपक बनाना किये शुरू

पेटलावद/रायपुरिया (मनीष कुमट) - जैसे-जैसे दीपावली पर्व नजदीक आता जा रहा है वैसे वैसे माटी कला के पुत्र अपनी तैयारी करने मे लग गए हैं सिर्फ बारिश रुकने का इंतजार कर रहे थे जैसे ही बारिश रुक गई वैसे ही अपनी परंपरा को निभाने के लिए प्रजापति समाज के लोग जुट गए समीप के गांव बनी के कैलाश भाई बताते हैं कि हम तो हमारे बुजुर्गों द्वारा बताए हुए कार्य कर रहे हैं हमें दीपक बनाने की करीब डेढ़ माह पहले से तैयारी करना पड़ती तब ग्रामीण अंचल के आदिवासी भाइयों के घर दीपक मटकी रख पाते हैं क्योंकि हमारे बुजुर्गों द्वारा गांव निर्धारित कर रखे हैं उन गांव में दीपक रखने के लिये जाना ही पड़ता है बदलें मे हम उनसे कोई पैसा नहीं लेते दिसंबर माह में अनाज लेने जाते हैं अपनी मेहनताना का वह कहते हैं कि आज की युवा पीढ़ी इस कार्य को करने के लिए तैयार नहीं होती है क्योंकि इस कार्य में काफी मेहनत करना पड़ती है दीपक व मटकी बनाने में मिट्टी में दिनभर रहना पड़ता है महंगाई के जमाने में अब एक ट्राली मिट्टी करीबन ₹7000 में मंगवानी पड़ती है वह भी दूर से उसके बाद उस मिट्टी को छन्नी से छाना जाता है फिर पानी में गलाया जाता है उसके बाद चौक पर रखकर बर्तन, दीपक व अन्य चीजें बनाई जाती लेकिन इतनी कला होने के बाद भी प्रशासन हम छोटे लोगों पर ध्यान नहीं देती अगर हमें आर्थिक सहायता मिल जाए तो हम ऐसी कई कला का इस्तेमाल कर सकते हैं मेरे पास कई गांव के समाज के लोग बुकिंग पर आते हैं दीपक की जैसे कि राजस्थान के बांसवाड़ा धार जिले के धार राजोद थांदला सारंगी पेटलावद के लोग मुझसे खरीद कर ले जाते वह भी अपने बुजुर्गों द्वारा बताए गए गांव में दीपक रखने जाते हैं गांव के कान्हा प्रजापत ने बताया कि हाथों से अगर हम दीपक मटकी बनाते हैं तो वह महंगी पड़ती दूसरी जगह से लाकर हम आदिवासी भाइयों के घर रखते हैं वह हमें सस्ती पड़ती है कैलाश भाई यूं तो वह विकलांग है लेकिन उनका दिमाग तो इतना चलता है कि कोई सी भी चीज इतनी बढ़िया मिट्टी से बना देते हैं वह आकर्षण करती है वह कहते हैं पहले चौक से हम दीपक मटके बनाते थे लेकिन मैं मजबूर होने से मुझे इलेक्ट्रॉनिक चाक का इस्तेमाल करना पड़ता है मेरा पैर काम नहीं करता लेकिन बिजली बिल भी इतना आता है कि वह हमें आर्थिक नुकसानी झेलना पड़ती लेकिन क्या करें खानदानी कार्य सौंपा गया तो उसे तो पूरा करना ही पड़ता है ।

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