श्राद्ध की तेरस पर महिलाओं एवं बालिकाओं ने मिलकर बनाया कला-कोट, 29 सितंबर की सुबह किया जाएगा विसर्जन
झाबुआ (मनीष कुमट) - श्राद्ध पक्ष के साथ ही संजा पर्व भी शुरू हो जाता है। इस दौरान विभिन्न समाजो की बालिकाएं अपने घरं-आंगनों में दीवारों पर गौबर और फूलों से संजा का निर्माण करती है। 16 दिनों तक संझा के गीत गाकर प्रतिदिन आरती एवं प्रसादी का आयोजन किया जाता है। समय के साथ अब गौबर और फूलों से संजा बनाने का प्रचलन काफी कम हो गया है। बालिकाएं बाजारों से ही रेडिमेड संजा खरीदकर अपने घरों की दीवारों पर चिपकाकर उनकी पूजन-आरती आदि करती है।
शहर के काॅलेज मार्ग पर अम्बे माता मंदिर के समीप भी युवा पार्षद पपीष पानेरी की नन्हीं बालिका हिरांषी पानेरी द्वारा रेडिमेड संजाकी स्थापना कर यहां महिलाओ एवं बालिकाओं द्वारा मिलकर उक्त पर्व के दौरान संजा की प्रतिदिन सुबह एवं शाम आरती कर प्रसादी वितरण के साथ गीत गाए जा रहे है। श्राद्ध की तेरस पर 26 सितंबर, गुरूवार शाम यहां रेखा अष्विन शर्मा, रीना शर्मा, सारिका नरेन्द्र राठौर, मीना पटेल, दीपाली पानेरी, त्रिषा राठौर, नारायणी शर्मा, स्नेहलता गेहलोत, माहेरा, हेमा आदि ने मिलकर गौबर और पीतल पान (चमकीली पन्नीयों) से करीब 2 घंटे की मेहनत कर दीवार पर सुंदर कलाकोट बनाया। बाद सभी ने मिलकर उनकी सामूहिक आरती की। इस दौरान पारंपरिक गीत ‘संजाबाई का लाड़ाजी, लुगाड़ों लाया जाड़ा जी ... असा कई लाया दारिका .. लाता गोट किनारी का .... संजा बाई तो ओल-पोल ... लुगड़ों लाया झोल-पोल के साथ संजा के पीछे मेंदी को झाड़-मंेदी को झाड़, एक-एक पत्ती चूठी जाय ... चूठी जाय ..., उधर से आयो मामो, लायों जरी की साड़ी, मामी लाई मेथी ... मेथी से तो माथों दुखे घी का घेवर भावे ... जैसे अनेक समुधर गीत महिलाओं एवं बालिकाओं ने मिलकर गाए।
16 वर्षों तक मनाया जाएगा संजा पर्व
रेखा शर्मा एवं दीपाली पानेरी ने बताया कि गौबर और पीतल पान से निर्मित कला कोट श्राद्ध के अंतिम दिन 28 सितंबर की रात तक रहेगा। इस दिन रात्रि में जागरण कर 29 सितंबर की सुबह इसे निकालकर तालाब में विसर्जन किया जाएगा। श्रीमती शर्मा एवं श्रीमती पानेरी के अनुसार प्रथम बार संजा पर्व मनाया गया। आगामी 16 वर्षों तक यह पर्व सत्त मनाकर बाद उद्यापन किया जाएगा।
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