रीवा-मऊगंज सहित प्रदेश के कई जिलों में शासकीय भूमि संरक्षण पर गंभीर सवाल Aajtak24 News

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रीवा/मऊगंज - प्रदेशभर में शासकीय भूमि की सुरक्षा और संरक्षण को लेकर लगातार बरती जा रही गंभीर लापरवाही अब एक बड़े भूमि घोटाले का रूप ले चुकी है। सामने आया है कि वर्ष 2004 के बाद से राजस्व खसरे और अन्य अभिलेखों में बड़े पैमाने पर हेराफेरी की गई है। सुनियोजित तरीके से सरकारी जमीनों को स्थानीय निकायों, प्रभावशाली व्यक्तियों, राजनैतिक हस्तियों और निजी संस्थाओं के नाम दर्ज कर दिया गया है। यह केवल एक कागजी गड़बड़ी न होकर, भू-माफिया और राजस्व अमले की मिलीभगत से चल रहा एक संगठित खेल है, जिसका सीधा खामियाजा अब प्रदेश की जनता और शासन दोनों को भुगतना पड़ रहा है।

हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी: बहुमूल्य भूमि बचाने रोडमैप पेश करे सरकार

इस गंभीर विषय पर ग्वालियर हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को कड़ी चेतावनी जारी की है। न्यायमूर्ति आनंद पाठक और अमित वर्मा की खंडपीठ ने स्पष्ट कहा है कि यदि सरकार ने तत्काल ठोस कदम नहीं उठाए, तो प्रदेश की बहुमूल्य शासकीय भूमि स्थायी रूप से भू-माफियाओं के अवैध कब्जे में चली जाएगी।

अदालत ने सरकार को शासकीय भूमि की सुरक्षा, संरक्षण और निगरानी के लिए एक ठोस नीति और स्पष्ट रोडमैप अगली सुनवाई में अदालत के समक्ष प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने प्रमुख सचिव (राजस्व) और प्रमुख सचिव (कानून) को अगली सुनवाई में ऑनलाइन उपस्थिति सुनिश्चित करने के निर्देश भी दिए हैं। कोर्ट ने यह भी कहा कि शासकीय भूमि के अभिलेखों का डिजिटलीकरण, सत्यापन और सीमा निर्धारण कार्य त्वरित गति से पूरा किया जाए।

 रीवा और मऊगंज में अवैध कब्जों की भयावह स्थिति

रीवा नगर निगम क्षेत्र आज राजस्व अभिलेखों में हेराफेरी और भू-माफियाओं के कब्जे का जीवंत उदाहरण बन चुका है। निगम क्षेत्र के अनेक वार्डों में शासकीय भूमि, मार्ग, स्कूल और यहां तक कि पार्क की भूमि तक निजी कब्जों में चली गई है। सड़कों की रोड पटरियां तक खसरे में दर्ज नहीं हैं, जिससे भविष्य में चौड़ीकरण असंभव हो सकता है। आरोप है कि नगर निगम की करोड़ों रुपये की भूमि को निजी प्लॉट्स में बांटकर प्रभावशाली लोगों को बेच दिया गया है, जिससे सरकार की संपत्ति कागजों से गायब हो चुकी है।

रीवा जिले के मऊगंज, हनुमना, गंगेव, लौर और नईगढ़ी जैसे ग्रामीण अंचलों में स्थिति और भी ज्यादा गंभीर है। गांवों में मार्ग, तालाब, मंदिर, श्मशान, स्कूल और आंगनबाड़ी केंद्र की भूमि को भी लोगों ने अवैध रूप से घेर कर बेच दिया है। राष्ट्रीय राजमार्ग-135 और प्रमुख राज्य मार्गों की अधिग्रहीत भूमि पर भी लोगों ने मकान बनाकर "स्वामित्व" का दावा करना शुरू कर दिया है।

 उदासीनता और कमजोर पैरवी से शासन को नुकसान

इस स्थिति के बिगड़ने में राजस्व अधिकारियों की उदासीनता और सरकारी अधिवक्ताओं की कमजोर पैरवी भी प्रमुख कारक है। सरकारी भूमि विवादों में शासन के अधिवक्ता अक्सर न्यायालय में अपना पक्ष सही ढंग से प्रस्तुत नहीं कर पाते, या कई मामलों में फाइलें अधूरी रहती हैं, जिससे सरकार अपनी ही जमीनें मुकदमों में हार जाती है। प्रशासनिक स्तर पर पटवारी, तहसीलदार और नायब तहसीलदार भूमि अभिलेखों के सत्यापन और कब्जों की जांच में गंभीरता नहीं दिखा रहे हैं, जिसके चलते हजारों एकड़ शासकीय भूमि निजी हाथों में पहुंच चुकी है।

जनता की उम्मीदें अब न्यायपालिका पर टिकी हैं कि हाईकोर्ट के हस्तक्षेप से न केवल राजस्व अमले की जवाबदेही तय होगी, बल्कि सरकारी भूमि को मुक्त कराने के लिए एक ठोस और प्रभावी अभियान शुरू होगा। शासकीय भूमि जनता की सामूहिक धरोहर है, जिसकी सुरक्षा के लिए अब जन-जागरूकता और प्रशासन की ओर से कड़ी कार्रवाई अपरिहार्य हो गई है।

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