रीवा संभाग में 'मंथली सिस्टम' का बोलबाला, थानों से लेकर स्वास्थ्य और परिवहन विभाग तक रिश्वत का खुला खेल Aajtak24 News

रीवा संभाग में 'मंथली सिस्टम' का बोलबाला, थानों से लेकर स्वास्थ्य और परिवहन विभाग तक रिश्वत का खुला खेल Aajtak24 News

रीवा - समाज और प्रशासन में भ्रष्टाचार के बढ़ते प्रकोप को लेकर एक गंभीर विश्लेषण सामने आया है, जो बताता है कि भ्रष्टाचार के बीज अब वृक्ष बन चुके हैं—जिनकी गहरी छाया में पूरी प्रशासनिक व्यवस्था सड़ चुकी है। शासन-प्रशासन का शायद ही कोई स्तर बचा हो, जहाँ 'सेवा शुल्क' के नाम पर रिश्वत की गंध न हो। यह स्थिति तब और भयावह हो जाती है, जब वरिष्ठ अधिकारी और राजनेता स्वयं इस अनैतिक 'बाज़ार' के संरक्षक बन जाते हैं।

पदस्थापनाएं: नीति नहीं, 'सिफारिश' का परिणाम

प्रदेश के मुखिया का यह कथन कि "अधिकारियों की पदस्थापना माननीयों की अनुशंसा से होगी", स्वयं में एक गंभीर सवाल खड़ा करता है। क्या यह व्यवस्था भ्रष्टाचार की सबसे बड़ी जड़ नहीं बन चुकी है? थानों से लेकर जिलों तक, अब "मंथली सिस्टम" खुलेआम चल रहा है। सिपाही से लेकर थाना प्रभारी तक, पद की दरें तय हैं, और जब देना तय होता है, तो लेना भी अनिवार्य हो जाता है—यहीं से काले कारोबार का जाल बिछता है। यह 'सेवा शुल्क' व्यवस्था केवल पुलिस तक सीमित नहीं है। एक अस्पताल में मरीज की नस में सूई लगाने से लेकर डॉक्टर की पर्ची तक, हर सेवा का अलग रेट तय है। जब पदस्थापनाएं योग्यता या नीति के आधार पर नहीं, बल्कि राजनीतिक सिफारिश के आधार पर होती हैं, तो अधिकारियों से ईमानदारी की उम्मीद करना व्यर्थ है।

थानों की 'मंथली': काले धंधों की खुली छूट

रीवा और मऊगंज सहित संभाग के कई थानों में यह चर्चा आम है कि "मंथली" दिए बिना कोई अधिकारी अपने पद पर टिक नहीं सकता। इस मंथली की भरपाई के लिए ही अवैध कारोबार को अघोषित मंजूरी मिल जाती है। दारू, अवैध बालू खनन, नशीली कफ सिरप, टैबलेट और अन्य अवैध व्यापार—सबका हिस्सा "ऊपर" तक जाता है। मेडिकल दुकानों से लेकर खाद्यान्न दुकानों तक मिलावट का जाल फैला है, पर कोई रोक नहीं लगती। हर पदस्थापना से पहले "ऊपर की कृपा" और "नीचे की पूजा" दोनों जरूरी हो गई हैं।

स्वास्थ्य सेवा अब सेवा नहीं, रिश्वत का इंजेक्शन:

सरकारी अस्पतालों में स्वास्थ्य सेवा अब सेवा नहीं, बल्कि सौदा बन चुकी है। सुविधाओं की घोर कमी और निजी अस्पतालों में बेलगाम लूट, जनता को मजबूरी का कैदी बना चुकी है। मरीजों की नस तक पहुंचने के लिए भी कर्मचारियों की फीस तय है। डॉक्टर, कर्मचारी और बिचौलिए मिलकर एक अदृश्य चेन बना चुके हैं, जहाँ हर कदम पर मरीज और उसके परिजन को 'सेवा शुल्क' के नाम पर रिश्वत देनी पड़ती है।

परिवहन विभाग: सड़क पर लूट का साम्राज्य

परिवहन विभाग में लूट अब किसी से छिपी नहीं है। रीवा और मऊगंज जिलों में अनुमानित 7 से 8 हजार तीन और चार पहिया वाहन बिना स्वीकृति बच्चों की जान जोखिम में डालकर चल रहे हैं। न तो स्कूल की बसें मानक पर हैं, न ही चालकों के पास वैध प्रशिक्षण। दुर्घटनाओं के बाद कुछ दिन हल्ला मचता है, अधिकारी बयान देते हैं, लेकिन ऊपर से नीचे तक सांठगांठ इतनी गहरी है कि कार्रवाई "ट्रैफिक सिग्नल" की तरह होती है—लाल बत्ती जलती है, लेकिन रुकता कोई नहीं।

कानून का मज़ाक: नशा कारोबार को 'अघोषित वैधता'

शराब दुकानों के लिए स्पष्ट नियम है कि उनके आसपास लोग बैठकर शराब न पी सकें, लेकिन पूरे रीवा संभाग में इसका पालन कहीं नहीं होता। सड़क किनारे, ढाबों और होटलों के सामने खुलेआम लोग पीते हैं। दारू, गांजा, नशीली कफ सिरप और गोलियों का कारोबार अब "अघोषित वैधता" पा चुका है— बस ऊपर की कृपा बनी रहे तो नीचे सब चलता है।

किसान की जेब पर डाका: खाद की खुली लूट

किसानों के नाम पर योजनाएं बनती हैं, पर लाभ बिचौलियों के जेब में चला जाता है। जुलाई से सितंबर तक खाद वितरण की हड़ताल के बाद समझौता हुआ, किंतु मूल्य नियंत्रण नहीं हो सका। शासन द्वारा निर्धारित मूल्य डीएपी ₹1350 और यूरिया ₹266 प्रति बोरी होने के बावजूद, बाजार में डीएपी ₹1800 और यूरिया ₹600 में बिक रही है। अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों को यह सब दिखाई नहीं देता। ऐसा प्रतीत होता है कि यह नया नियम बन गया है—"लूटो, जब तक जनता चुप है।

धर्म का अर्थ केवल जयकारा नहीं, नीति भी है:

सरकारें बेशक धर्म के नाम पर "सनातन की सरकार" होने का जयकारा लगवा रही हैं, लेकिन जब जनता की समस्याएं, भ्रष्टाचार की लहरें और अन्याय की आवाजें उठती हैं, तो धर्म मौन हो जाता है। धर्म का अर्थ केवल पूजा नहीं, बल्कि नीति, न्याय और कर्तव्य का पालन भी है। जब सरकारें इस मूलभूत धर्म को भूल जाती हैं, तो समाज की जड़ें कमजोर हो जाती हैं। वर्तमान में, हर विभाग, हर कार्यालय सेवा केंद्र नहीं, बल्कि वसूली केंद्र बन चुका है। थानों में अपराध का भाव, अस्पतालों में इलाज का रेट, परिवहन में क्लियरेंस की कीमत, और खाद में मुनाफे की सीमा—सबका हिसाब तय है। अब प्रश्न जनता के सामने है— चुप रहें या बदलाव मांगे? भ्रष्टाचार की जड़ें काटने के लिए केवल आदेश नहीं, बल्कि एक बड़े जन-आंदोलन की आवश्यकता है।


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