खाद की 'ब्लैक मार्केटिंग' बेलगाम: रीवा संभाग में डीएपी ₹1350 नहीं, ₹1800 में बिक रही! — व्यापारी हड़ताल के सामने प्रशासन 'बैकफुट' पर Aajtak24 News

 खाद की 'ब्लैक मार्केटिंग' बेलगाम: रीवा संभाग में डीएपी ₹1350 नहीं, ₹1800 में बिक रही! — व्यापारी हड़ताल के सामने प्रशासन 'बैकफुट' पर Aajtak24 News

रीवा - रीवा संभाग में किसानों के लिए जीवनदायिनी खाद की कालाबाजारी बेलगाम हो चुकी है, जिसने सरकारी सब्सिडी के करोड़ों रुपये को सीधे निजी तिजोरियों तक पहुंचा दिया है। जो प्रशासनिक अभियान कुछ माह पूर्व मिलावटखोरों पर नकेल कसने के लिए शुरू हुआ था, वह खाद व्यापारियों की सामूहिक हड़ताल के दबाव में आकर पूरी तरह ठप पड़ गया है। किसानों में भारी आक्रोश है और वे सीधे आरोप लगा रहे हैं कि प्रशासन ने कालाबाजारियों को 'अप्रत्यक्ष लाइसेंस' दे दिया है।

💸 सब्सिडी का लाभ किसे? ₹1350 की डीएपी ₹1800 में!

किसानों का स्पष्ट कहना है कि केंद्र और राज्य सरकार द्वारा करोड़ों रुपये की सब्सिडी देने के बावजूद, इसका वास्तविक लाभ उन तक नहीं पहुंच रहा है। खुलेआम लूट का आलम यह है:

उत्पादसरकारी निर्धारित मूल्यबाजार में वसूली जा रही कीमतअंतर (प्रति बोरी)
डीएपी₹1350₹1700–₹1800₹350–₹450
यूरिया₹266₹500–₹700₹234–₹434

किसानों का आरोप है कि इस खुली लूट पर कोई प्रभावी कार्रवाई न होने से कालाबाजारियों के हौसले बुलंद हैं, और प्रशासन दबाव में आकर कार्यवाही करने से कतरा रहा है।

🚜 अन्नदाता का कटाक्ष: "हम भिखारी नहीं, मजबूर हैं"

खाद की किल्लत और मनमानी कीमतों से त्रस्त किसानों ने अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए कहा कि जब स्थानीय बाजार में खाद उपलब्ध नहीं होती है, तो उन्हें मजबूरी में पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश से ऊंचे दामों पर खाद लानी पड़ती है। किसानों ने बेहद मार्मिक कटाक्ष करते हुए कहा, "अन्नदाता कभी भिखारी नहीं होता, लेकिन प्रशासन की नीतियों ने किसानों को मजबूर जरूर कर दिया है।" उनका कहना है कि भ्रष्ट व्यापारी और बेईमान तंत्र मिलकर मिलावटखोरी और कालाबाजारी को निरंतर बढ़ावा दे रहे हैं, जिसका सीधा खामियाजा खेती और किसान को भुगतना पड़ रहा है।

🥶 हड़ताल के सामने प्रशासन की चुप्पी

प्रारंभ में, जिला कलेक्टर के निर्देश पर कृषि, राजस्व और पुलिस विभाग की संयुक्त टीमों ने निरीक्षण और सैंपलिंग का अभियान चलाकर कारोबारियों में सकते का माहौल पैदा किया था। लेकिन अधिकांश खाद विक्रेताओं ने संगठित होकर सामूहिक हड़ताल कर दी। किसान संगठनों का आरोप है कि इस हड़ताल के बाद प्रशासनिक विभाग ने खाद कारोबारियों से टकराव से बचने की कोशिश की है, जिसके कारण कार्रवाई का अभियान ठंडे बस्ते में चला गया है। किसानों ने दबी ज़ुबान में यह भी कहा कि "जब मिलावटखोरों पर कार्रवाई नहीं होती, तो हम विरोध करने से भी डरते हैं, क्योंकि संबंध बिगड़ने पर हमें खाद नहीं मिलेगी।"

💔 योजनाओं का सम्मान, पर खेती की रीढ़ टूटी

किसानों ने केंद्र और राज्य सरकार की महत्वाकांक्षी योजनाओं पर तंज कसते हुए कहा कि प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि, लाडली बहना, लाडली लक्ष्मी जैसी योजनाएं तो दी जा रही हैं, पर खाद की कालाबाजारी ने खेती की रीढ़ तोड़ दी है। किसानों का साफ कहना है कि योजनाओं के नाम पर दिया गया सम्मान तभी पूर्ण होगा, जब खेती के मूल संसाधन—बीज, खाद और पानी—उचित दरों पर उपलब्ध हों। रीवा संभाग में यह स्थिति प्रशासनिक इच्छाशक्ति की कमी को दर्शाती है, जहां संगठित व्यापारिक दबाव ने जनहित के अभियान को रोक दिया है। किसानों का स्पष्ट संदेश है कि जब तक वास्तविक दोषियों पर कड़ी कार्यवाही नहीं होगी, तब तक अन्नदाता शोषण का शिकार होता रहेगा और सरकार की सब्सिडी का पैसा बिचौलिए खाते रहेंगे।



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